Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    'खेल' की भनक लगी तो सिद्धू ने भरोसेमंद ओएसडी को हटाया

    By Sunil Kumar JhaEdited By:
    Updated: Tue, 20 Feb 2018 06:46 PM (IST)

    पंजाब के स्‍थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने खास आएसडी डा. अमर सिह को हटा‍ दिया है।

    'खेल' की भनक लगी तो सिद्धू ने भरोसेमंद ओएसडी को हटाया

    चंडीगढ़, [मनोज त्रिपाठी]। स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने ओएसडी (ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी) डा. अमर सिंह को हटा दिया है। सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी अमर सिंह को सिद्धू ने ही करीब आठ माह पहले अपने साथ ओएसडी व सलाहकार के तौर पर रखा था। अभी उनको हटाए जाने का कारण तो नहीं पता चला है, लेकिन बताया जा रहा है सिद्धू ने अपने विभाग में चल रहे किसी 'खेल' का पता चलने के बाद यह कदम उठाया है। सिद्धू भ्रष्‍टाचार के प्रति बेहद सख्‍त हैं और यही कारण है कि कई अधिकारी उनके साथ काम करने से कतरातेे रहे हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    रिटायर आइएएस अमर सिंह को आठ माह पहले रखा था, मुख्यमंत्री ने नहीं दी थी नियुक्ति को मंजूरी

    डा. अमर सिंह की सिद्धू के अोएसडी के रूप में नियुक्ति को मुख्‍यमंत्री अमरिंदर सिंह ने अाठ माह बाद भी मंजूरी नहीं दी थी। इसके बावजूद भरोसे के चलते सिद्धू ने उन्हें साथ रखा था और दफ्तरी कामों में उनकी क्लीन चिट मिलने के बाद ही किसी फाइल पर मंजूरी देते थे।

    डा. अमर सिंह ही दफ्तरी कामों की फाइलों संबंधी सारे फैसले लेते थे। यह भी कहा जाता है कि जिस फाइल पर ग्रीन स्याही से डा. सिंह का कोडवर्ड होता था उसी फाइल को सिद्धू क्लीयर करते थे। करीब एक महीने बाद विभाग के अधिकारियों को भी इसकी भनक लग गई थी। उसके बाद से ही निकाय विभाग में बड़े पदों पर तैनात रहे अफसरों ने सिद्धू से किनारा करना शुरू कर दिया था। कई अफसरों ने सरकार से भी गुहार लगाई थी कि उन्हें किसी दूसरे विभाग में तैनात कर दिया जाए।

    डा. सिंह की हीरो से जीरो की छवि सिद्धू की नजरों में कैसे बन गई, इसका खुलासा फिलहाल नहीं हो पाया है। लेकिन, सूत्र बताते हैं कि एक बड़े प्रोजेक्ट को क्लीयर करवाने से लेकर मुलाजिमों व छोटे स्तर के अफसरों के तबादलों व प्रमोशन में भी डा. सिंह की ही चलती थी। इस प्रकार के कुछ मामलों का खुलासा सिद्धू के सामने हो गया था। इनमें अमर सिंह के रायकोट क्षेत्र के भी कुछ केस शामिल हैं। इसके बाद सिद्धू ने उन्हें जमकर फटकार लगाई और किनारा कर लिया। मामले को लेकर सिद्धू ने कोई टिप्पणी नहीं की है। डा. सिंह से कई बार फोन पर संपर्क करने की कोशिश्‍ा की गई, लेकिन उन्‍होंने फोन नहीं उठा।

    कौन हैं अमर सिंह

    डा. अमर सिंह मध्य प्रदेश कॉडर के आइएएस अफसर थे। लंबे समय तक  तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के करीबी अधिकारियों के रूप में तैनात रहे हैं। वह रायकोट (लुधियाना) के पूर्व विधायक गुरचरन सिंह बोपाराय के भाई हैं।

    सिद्धू की पत्नी नहीं बन सकती हैं सलाहकार

    सिद्धू की कोशिश है कि अब इस पद पर किसी अति भरोसेमंद की तैनाती की जाए, जो किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार में लिप्त न रहा हो और गुंजाइश भी न हो। सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर अकाली-भाजपा सरकार में मुख्य संसदीय सचिव रह चुकी हैं और उन्हें सरकारी कामकाज के बारे में अच्छी जानकारी भी है। यही वजह है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले सिद्धू अंदरखाते चाहते हैं कि उनकी पत्नी अब दफ्तरी काम को संभालें।

    सरकारी सूत्रों का कहना है कि सिद्धू की पत्नी उनके विभाग में आधिकारिक तौर पर सेवाएं नहीं संभाल सकती हैं। सरकारी नियमों के अनुसार यह संभव नहीं है और विधानसभा में अगले बजट सत्र में कान्फ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट (हितों का टकराव) संबंधी बिल भी पेश किया जाना है। यह बिल पास होने पर किसी भी कीमत पर यह संभव नहीं हो पाएगा कि किसी भी सरकारी पद पर बैठे मंत्री या अन्य अपने सगे संबंधियों की सेवाएं अपने कामकाज में ले सके।

    ------

    कौन दे रहा था अमर सिंह का साथ?

    निकाय विभाग में इस बात को लेकर खासी चर्चा है कि गोलमाल में अमर सिंह का साथ कौन दे रहा था। किसके साथ मिलकर अमर सिंह सारे गोरखधंधे कर रहे थे। सिद्धू भ्रष्टाचार के बाबत अपने विभाग के अधिकारियों सहित लोगों को भी विभिन्न मंचों से खुलकर संदेश दे चुके हैं कि वे कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे।

    ------

    पार्टी की सियासत में फिर फंसे सिद्धू, अगला नंबर किसका

    नवजोत सिद्धू एक बार फिर से पार्टी की सियासत में फंस गए हैं। उन्होंने निकाय विभाग संभालने के बाद भ्रष्टाचार के आरोप में तत्कालीन सीवीओ एके कांसल सहित कई अफसरों को उनके पदों से हटा दिया था। इसके बाद फौज से रिटायर अफसर सुदीप सिंह माणक व ओएसडी के तौर पर डा.अमर सिंह को तैनात किया था। दोनों ही नियुक्तियों को अंदरूनी सियासत के चलते सरकार ने मंजूरी नहीं दी।