Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    'सहमति से बना संबंध दुष्कर्म नहीं...', पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने प्रेमी पर लगे रेप केस को खारिज करते हुए और क्या कहा?

    उच्च न्यायालय ने एक फैसले में दुष्कर्म के मामले में सजायाफ्ता की सजा को रद कर दिया। कोर्ट ने कहा कि विवाहिता जो दो बच्चों की मां है और आरोपित से बड़ी है उससे सहमति से संबंध बनाने के परिणामों को समझने में सक्षम थी। अदालत ने निचली अदालत के फैसले को रद कर दिया और कहा कि ऐसे मामले में दुष्कर्म का आरोप नहीं लगाया जा सकता।

    By Dayanand Sharma Edited By: Sohan Lal Updated: Tue, 26 Aug 2025 05:07 PM (IST)
    Hero Image
    हाईकोर्ट ने कहा कि दो वर्षों तक सहमति से बनाए गए संबंधों को अचानक दुष्कर्म कहना न्यायसंगत नहीं है।

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में उस व्यक्ति की दोषसिद्धि और नौ साल की सजा को रद कर दिया, जिसे शादी का झांसा देकर संबंध बनाने के आरोप में दुष्कर्म का दोषी ठहराया गया था। यह मामला एक विवाहित महिला की शिकायत से संबंधित था, जिसने दावा किया था कि आरोपित ने शादी करने का वादा कर उससे शारीरिक संबंध बनाए। कोर्ट ने कहा कि विवाहिता दो बच्चों की मां है और परिणाम जानने में सक्षम है, ऐसे में सहमति से संबंध दुष्कर्म नहीं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जस्टिस शालिनी सिंह नागपाल की पीठ ने मामले की गहन सुनवाई करते हुए स्पष्ट कहा कि जब कोई विवाहित महिला लंबे समय तक सहमति से यौन संबंध बनाए रखती है तो इसे धोखे का परिणाम नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि यह व्यभिचार, अनैतिकता और विवाह संस्था की अवमानना तो हो सकती है, लेकिन इसे झूठे वादे के तहत बनाए गए संबंध नहीं कहा जा सकता।

    ऐसी स्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 90 लागू नहीं की जा सकती और न ही आरोपित पर दुष्कर्म का अपराध सिद्ध किया जा सकता है। अदालत ने पाया कि शिकायतकर्ता पहले से विवाहित थी और दो बच्चों की मां थी। उसने यह स्वीकार भी किया कि वर्ष 2012-13 में उसने आरोपित के साथ 55-60 बार शारीरिक संबंध बनाए, वह भी अपने ससुराल में रहते हुए।

    महिला का कहना था कि उनका वैवाहिक जीवन ठीक नहीं चल रहा था और तलाक की बातचीत हो रही थी। लेकिन कोर्ट ने माना कि यह दावा सतही और झूठा है, क्योंकि महिला लगातार अपने ससुराल में ही रह रही थी और उसने कभी तलाक या पति के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की। कोर्ट ने यह भी कहा कि अभियोग लगाने वाली महिला उम्र में आरोपित से 10 साल बड़ी थी।

    जस्टिस नागपाल ने टिप्पणी की अभियोग लगाने वाली महिला न तो मासूम थी और न ही अनभिज्ञ युवती, बल्कि वह विवाहित होते हुए दो बच्चों की मां और समझदार महिला थी, जो अपने कृत्यों के परिणाम जानती थी। पीठ ने कहा कि लगभग दो वर्षों तक सहमति से बनाए गए संबंधों को अचानक दुष्कर्म कहना न्यायसंगत नहीं है।

    हाई कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि आरोपित किसी भी तरह से महिला को विवाह का प्रलोभन देकर संबंध बनाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता था यह मामला दरअसल प्रतिशोध की भावना में दर्ज कराई गई शिकायत है। अंत में अदालत ने माना कि यह एक ऐसा मामला है जहां सहमति से बना संबंध बाद में बिगड़ गया।

    कहा कि इसे धारा 376 आईपीसी (दुष्कर्म) के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। आरोपी भले ही नैतिक दृष्टि से निर्दोष न हो, परंतु उसे दुष्कर्म के आरोप में दंडित करना न्यायसंगत नहीं है। इस प्रकार, हाईकोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए निचली अदालत का आदेश रद कर दिया और आरोपित को सजा से बरी कर दिया