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    चंडीगढ़: लीवर रोगों पर शोध को मिलेगी रफ्तार, औषधिय पौधे दिखा रहे नई उम्मीद

    Updated: Wed, 03 Dec 2025 11:55 AM (IST)

    चंडीगढ़ में लासाइकान 2025 सम्मेलन में लीवर रोगों पर चर्चा हुई। विशेषज्ञों ने बताया कि लीवर रोग एक बड़ी चुनौती है, जिसके लिए प्राकृतिक औषधियों पर शोध क ...और पढ़ें

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    लीवर रोगों पर शोध को मिलेगी नई रफ्तार, प्राकृतिक औषधियों में भी दिखी उम्मीद (फोटो: जागरण)

    सुमेश ठाकुर, चंडीगढ़। लीवर रोग वर्तमान समय में सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभर रहे। यह जानकरी इंस्टीट्यूट आफ माइक्रोबाइल टेक्नोलाजी (इमटेक), सेक्टर-39 चंडीगढ़ में आयोजित तीन दिवसीय लैबोरेटरी एनिमल साइंस एसोसिएशन ऑफ इंडिया (लासाइकान 2025) सम्मेलन में स्पष्ट हुआ है।

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    दो दिसंबर तक आयोजित तीन दिवसीय सम्मेलन में विश्व भर से 35 विशेषज्ञों ने विभिन्न जानवरों पर होने वाले परीक्षण, नई तकनीकों और प्राकृतिक औषधीय घटकों के प्रभाव पर विस्तृत चर्चा की।

    विशेषज्ञों ने बताया कि वैश्विक स्तर पर लिवर से जुड़ी बीमारियां कुल मौतों का लगभग चार प्रतिशत कारण हैं। इसमें सबसे बड़ा खतरा फैटी लीवर का है, जो वायरल संक्रमण, शराब सेवन और जीवनशैली में बदलाव के कारण तेजी से बढ़ रहा है।

    विशेषज्ञों के अनुसार भारत में यह स्थिति और चिंताजनक है क्योंकि यहां मेटाबोलिक डिसफंक्शन और मोटापे की दर लगातार बढ़ रही है।

    लीवर रोगों के उपचार में प्राकृतिक उत्पादों की भूमिका पर भी शोध किया जा रहा है। पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में पिक्रोराइज़ा कुर्रोआ, स्वेरिटिया और जेंटियाना प्रजातियों का उपयोग लीवर सुरक्षा और उपचार में होता आया है।

    विशेषज्ञ मानते हैं कि इन प्राकृतिक उत्पादों की सुरक्षा और प्रभावशीलता को वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित करना आवश्यक है। केवल पारंपरिक ज्ञान के आधार पर इन्हें दवा का दर्जा देना सुरक्षित नहीं होगा।

    विशेषज्ञों के अनुसार शोध कार्य में उन्नत तकनीकों का उपयोग तेजी से बढ़ा है। इन-सिलिको (कंप्यूटर आधारित) तकनीक दवाओं के संभावित टारगेट्स की भविष्यवाणी करने में मदद कर रही है जिससे प्रारंभिक स्क्रीनिंग की प्रक्रिया काफी तेज होती है।

    इन-विट्रो सेल कल्चर और ऑर्गनाइड माडल्स मानव लिवर कोशिकाओं पर औषधि के वास्तविक प्रभाव को समझने में उपयोगी साबित हो रहे हैं।

    वहीं जैब्राफिश मॉडल दवा की विषाक्तता और कारगरता की शुरुआती जांच के लिए एक प्रभावी विकल्प बनकर उभरा है।

    सम्मेलन में विशेषज्ञों ने बताया कि लीवर रोग कई बार शुरुआती चरण में कोई लक्षण नहीं दिखाते, इसलिए लोग इसे अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं।

    अनियमित खानपान, शराब सेवन, मोटापा और तनाव इसके मुख्य कारण हैं, इसलिए जीवनशैली में बदलाव बेहद जरूरी है।

    नियमित जांच और जागरूकता से इस बीमारी को शुरुआती चरण में ही रोका जा सकता है। प्राकृतिक औषधियों और आधुनिक विज्ञान का सम्मिलित प्रयास ही लिवर रोगों के सुरक्षित और प्रभावी उपचार की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकता है।

    लेकिन इसके लिए संपूर्ण प्रीक्लिनिकल मूल्यांकन और मानव परीक्षण से पहले वैज्ञानिक सुरक्षा मानकों का पालन अत्यंत आवश्यक है।

    सम्मेलन में यह भी बताया गया कि अब के कारण पशुओं पर होने वाले दवा परीक्षण में बड़ी क्रांति आई है। इस तकनीक से चूहों, गिलहरियों जैसे छोटे जानवरों की बिना बलि दिए पूरी बॉडी कुछ सेकंड में स्कैन हो जाती है।

    इससे न केवल पशु क्रूरता में कमी आई है बल्कि शोध के नतीजे भी तुरंत प्राप्त हो जाते हैं। शोधकर्ताओं ने इसे समय और संसाधनों की बचत के लिहाज से अत्यंत उपयोगी बताया।