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    हीर से इश्क देख मां डर जाती थी कि बेटा फकीर न बन जाए : लखविंदर

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 11 Sep 2017 03:01 AM (IST)

    ओजस्कर पाण्डेय, चंडीगढ़ लखविंदर वडाली को रुहानी संगीत की लोरी बचपन से मिली, जबकि उनका सपन ...और पढ़ें

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    हीर से इश्क देख मां डर जाती थी कि बेटा फकीर न बन जाए : लखविंदर

    ओजस्कर पाण्डेय, चंडीगढ़

    लखविंदर वडाली को रुहानी संगीत की लोरी बचपन से मिली, जबकि उनका सपना क्रिकेटर बनने का था। इन दिनों वह अपनी नई एलबम 'इश्क दा जाम' से चर्चा में हैं। आधुनिक दौर में भी बाबा बुल्ले शाह, बाबा फरीद, सुल्तान बाहू व वारिस शाह जैसे सूफी संतों द्वारा जलाई गई सूफीवाद की जोत को सहेज कर रखने में वडाली बंधुओं का बड़ा नाम है। इसी धरोहर को पद्मश्री पूरण चंद वडाली के पुत्र लखविंदर वडाली सहेज कर नई पीढ़ी के लिए भी परोस रहे हैं। अमृतसर स्थित गुरु की वडाली में जन्मे लखविंदर वडाली के पिता उस्ताद पूरण चंद वडाली तथा चाचा उस्ताद प्यारे लाल वडाली के सूफियाना कलाम सुनकर बड़े हुए। लखविंदर ने इन्हीं दोनों से संगीत की शिक्षा भी पाई। उन्होंने अखियां उड़ीक दियां और छेवा दरिया नामक पंजाबी फिल्मों में भी काम भी किया है। 'नैना दे बूहे' एलबम में 'अज सजना तेरा ना लै के. ' खूब लोकप्रिय हुआ था।

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    चंडीगढ़ हेरिटेज फेस्टिवल के अंतिम दिन प्रस्तुति देने के बाद टैगोर थिएटर में उनसे बातचीत के अंश।

    आपके उस्ताद आपके पिता हैं बेटे और शागिर्द में संतुलन कैसे रखते हैं?

    लखविंदर वड़ाली बताते हैं कि है तो मुश्किल लेकिन थोड़ी से मशक्कत करनी पड़ती है। उनका शागिर्द होते हुए इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि जो पैमाना गायकी का उन्होंने स्थापित किया है उसको कायम रखा जाए। जबतक मैं गायक होता हूं तो मैं केवल और केवल उनके शागिर्द के रूप में होता हूं और जब पारिवारिक माहौल में होता हूं तो बेटा बन जाता हूं। वे एक सख्त उस्ताद और नरम पिता हैं।

    -लगता है आपको हीर से खासा लगाव है आपकी कई एलबम में हीर को जगह मिली है खास वजह?

    लखविंदर बताते हैं आप कह सकते हैं कि हीर से मुझे इश्क है। मैंने सुना है कि कोई अगर डूबकर हीर का किस्सा पढ़ने बैठ जाता है तो पूरा पढ़ नहीं पाता। जिसने पूरा पढ़ा या तो वो फकीर हो जाता है या अपने आप में खो जाता है। उन्होंने बताया कि मेरे पिताजी के पास हीर का किस्सा था मैं उसे लेकर अपने कमरे में कुंडी लगाकर उसे पढ़ता था तो रोने लगता। चीखने लगता मेरी मां डर जाती कि बेटा कहीं फकीर ही न बन जाए। दो तीन बार ऐसा हुआ तो पिता जी ने हीर का किस्सा ही अपने पास रख लिया और हिदायत दी कि उनकी उपस्थिति के बिना मैं इसे नहीं पढ़ूंगा। जब कभी किसी गीत के संबंध में जानना होता था तो वो मुझे पन्ना खोल कर देते थे।

    क्या नया एलबम 'इश्के दा जाम' में सूफी कलाम हैं?

    जी नहीं, इस एलबम में सूफी संगीत के साथ-साथ लोक संगीत भी श्रोताओं को सुनने को मिलेंगे। इसके आठ गीतों में से दो पूरी तरह पंजाबी फोक पर आधारित हैं। एक सूफी कलाम मैंने पिताजी तथा चाचाजी के साथ गाया है। शरणजीत सिंह उर्फ फिदा बटालवी के लिखे इस गीत के बोल तुझे तकिया तो लगा मुझे. है। इसके अलावा एलबम का जुगनी. गीत भी लोगों को पसंद आएगा। इस गीत के बोल नए हैं। इसे मैंने अलग ढंग से गाया है।

    संगीत में बढ़ती अश्लीलता के बारे में आपका क्या कहना है?

    मेरा मानना है कि पंजाबी संस्कृति की खूबसूरती पर्दे में अच्छी लगती है। यह पर्दे में ज्यादा झलकती है, जबकि खुलेपन में यह कहीं खो जाती है। इसलिए पंजाबी विरासत को बचाने के लिए हमें इस बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए।

    आपको गुस्सा कब आता है?

    यूं तो मैं बहुत कूल रहने वाला हूं, लेकिन जब कभी कोई चीज मेरे सोच के मुताबिक नहीं होती तो गुस्सा आता है। वैसे हमारे घर का माहौल ही ऐसा है कि गुस्सा आता ही नहीं। पिताजी का मजाकिया स्वभाव हमें दिनभर हंसाता रहता है।