पंजाब की नई कृषि नीति काे केरल ने सराहा, सरकार से की जल्द लागू करने की अपील
सभी वक्ताओं ने पंजाब की इस नीति को “पूर्ण रूप से स्वीकार” करते हुए इसकी सराहना की। उन्होंने पंजाब सरकार से जल्द से जल्द इसे लागू करने की अपील की। साथ ही कहा कि केरल सहित अन्य राज्यों को भी अपनी जरूरतों के अनुसार इनमें से कई सिफारिशें अपनानी चाहिए।

केरल ने सराही पंजाब की नई कृषि नीति। फोटो जागरण
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब राज्य किसान एवं खेत मजदूर आयोग के अध्यक्ष प्रो. सुखपाल सिंह ने पंजाब की प्रस्तावित राज्य कृषि नीति का केरल में विस्तृत प्रस्तुतीकरण दिया। केरल के कोझिकोड़ के टाउन हॉल में भरे हुए सभागार में मौजूद श्रोताओं में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति चमलेश्वरम, प्रो. एम.एन. करासेरी, विधायक के.के. रेमा, कलपेटा नारायणन, जोसेफ सी. मैथ्यू, फ्रेडी के. तारथ सहित कई प्रमुख हस्तियां शामिल थीं।
प्रो. सुखपाल सिंह ने कहा कि पंजाब का कृषि संकट अब जीवन-मरण का प्रश्न बन चुका है। गेहूं-धान की एकफसली खेती के कारण 113 ब्लॉक अति-दोहन की श्रेणी में आ चुके हैं, भूजल का सालाना घाटा 13.27 अरब घन मीटर पहुंच गया है। खाद का उपयोग राष्ट्रीय औसत से दोगुना (245 किलो/हेक्टेयर) हो गया है। 60-90% किसान कर्ज में डूबे हैं, आत्महत्या के अधिकांश मामले कर्ज से जुड़े हैं, न कि शादी-ब्याह या नशे से जैसा प्रचार किया जाता है।
नीति की प्रमुख सिफारिशें जिन्हें केरल के प्रतिनिधियों ने पूरे जोश के साथ सराहा
सबसे ज्यादा संकटग्रस्त 15 ब्लॉकों में लंबी अवधि वाले धान की फसल पर चरणबद्ध प्रतिबंध और मुआवजे के साथ मक्का, कपास, गन्ना, सब्जियां व बागवानी में अनिवार्य बदलाव किया जाए। सूक्ष्म सिंचाई, सौर ऊर्जा चालित ट्यूबवेल, नहरों का आधुनिकीकरण करने की जरूरत पर बल दिया।
बासमती (सुगंधित व कम पानी वाली किस्में), कपास मिशन, मक्का, दालें, तिलहन, फल-सब्जी मूल्य श्रृंखला को मजबूत करना। सहकारिता आधारित 13 सेंटर ऑफ एक्सीलेंस, 5 कार्यशील सीओई, कृषि विपणन अनुसंधान संस्थान, प्रगतिशील किसान सोसाइटी जैसी नई संस्थाएं।
जमीन के ठेका कानून में सुधार, डिजिटल पट्टा रजिस्ट्री, भूमिहीनों को सामुदायिक जमीन पर पट्टा। आत्महत्या पीड़ित परिवारों को 10 लाख रुपये की सहायता, किसान पेंशन, कर्ज माफी योजनाएं। खेत मजदूरों के लिए पंजीकरण, मनरेगा को 100 से बढ़ाकर 200 दिन करना।
सभी वक्ताओं ने पंजाब की इस नीति को “पूर्ण रूप से स्वीकार” करते हुए इसकी सराहना की। उन्होंने पंजाब सरकार से जल्द से जल्द इसे लागू करने की अपील की। साथ ही कहा कि केरल सहित अन्य राज्यों को भी अपनी जरूरतों के अनुसार इनमें से कई सिफारिशें अपनानी चाहिए।
यह कार्यक्रम इसलिए भी ऐतिहासिक माना जा रहा है क्योंकि पंजाब का कृषि संकट अब सिर्फ पंजाब का नहीं, पूरे देश का संकट बन चुका है और केरल जैसे दूरस्थ राज्य के बुद्धिजीवी व जन-किसान नेता भी इसे अपनी लड़ाई मान रहे हैं।

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