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    'बच्चे की मौत माता-पिता के लिए सबसे बड़ा दर्द...', सड़क हादसे में मारे गए 9 साल के कमल के लिए HC ने कही बड़ी बात

    Updated: Sun, 26 Oct 2025 03:11 PM (IST)

    पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक सड़क दुर्घटना में मारे गए नौ वर्षीय बच्चे के मामले में मुआवजे की राशि बढ़ाई। कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के पूर्व आदेश को संशोधित करते हुए मुआवजे को 3.59 लाख से बढ़ाकर 8.81 लाख कर दिया। कोर्ट ने कहा कि बच्चे की मृत्यु माता-पिता के लिए सबसे बड़ा दुख है और मुआवजा कानून द्वारा दी गई न्यूनतम राहत है।

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    फाइल फोटो

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक निर्णय में उस मां को राहत दी है, जिसने अपने नौ वर्षीय बेटे की सड़क हादसे में मृत्यु के बाद बढ़े हुए मुआवजे की मांग की थी। जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की एकलपीठ ने सिरसा मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल द्वारा दिए पुराने मुआवजे के आदेश को संशोधित करते हुए राशि 3.59 लाख से बढ़ाकर 8.81 लाख कर दी।

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    कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि बीमा कंपनी दो माह के भीतर यह राशि ब्याज सहित अदा करे। कोर्ट ने कहा कि बच्चे की मृत्यु माता-पिता के जीवन की सबसे बड़ी पीड़ा है, जिसे केवल आर्थिक मुआवजा नहीं भर सकता, परंतु यह कानून द्वारा दी जाने वाली न्यूनतम राहत अवश्य है।

    14 दिसंबर 2010 को सिरसा में हुए सड़क हादसे में सोनिया के बेटे मास्टर कमल (उम्र 9 वर्ष) की दर्दनाक मौत हो गई थी। मां ने धारा 166 मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत ट्रिब्यूनल में दावा दायर किया था। ट्रिब्यूनल ने 24 जुलाई 2012 को 3,59,365 रुपये का मुआवजा 7.5 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित मंजूर किया था। सोनिया ने इसे अपर्याप्त बताते हुए हाई कोर्ट में अपील दायर की थी। हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि नाबालिग बच्चे की मृत्यु को “नान-अर्नर” (गैर-आय अर्जक) की श्रेणी में रखकर मुआवजा तय करना अनुचित है।

    हाई कोर्ट ने कहा कि बच्चे का भविष्य संभावनाओं से भरा होता है, इसलिए उसकी आय का निर्धारण राज्य में कुशल श्रमिक के न्यूनतम वेतन 5,000 प्रतिमाह के आधार पर किया जाना चाहिए। हाई कोर्ट ने भविष्य की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए कुल मिलाकर 8,81,915 रुपये का मुआवजा तय किया। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि बीमा कंपनी यह राशि नौ प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित जमा करे और ट्रिब्यूनल यह राशि मां के बैंक खाते में जारी करे। कोर्ट ने कहा कि बच्चे की मृत्यु माता-पिता के जीवन की सबसे बड़ी पीड़ा है, जिसे केवल आर्थिक मुआवजा नहीं भर सकता, परंतु यह कानून द्वारा दी जाने वाली न्यूनतम राहत अवश्य है।