बेटा नालायक है तो सास-ससुर बहू को नहीं कर सकते बेदखल, सीनियर सिटीजन ट्रिब्यूनल ने सुनाया फैसला
एडीसी सचिन राणा ने इस फैसले के साथ शिकायतकर्ता मां-बाप की याचिका को खारिज कर दिया है। साथ ही उन्हें आदेश दिया है कि वे अपनी बहू को घर में ही रहने दें।
चंडीगढ़, [विशाल पाठक]। यदि बेटा नालायक है तो भी सास-ससुर अपनी बहू को बेदखल नहीं कर सकते हैं। यह फैसला सीनियर सिटीजन ट्रिब्यूनल ने सुनाया है। इस दिलचस्प फैसले में ट्रिब्यूनल ने साफ कहा है कि यदि बेटा मां-बाप के कहने में नहीं है या नालायक तो उसके खिलाफ बेदखली की कार्रवाई नहीं की जा सकती, क्योंकि इसकी सीधा प्रभाव उसकी पत्नी पर पड़ेगा। बेटे और बहू को रंजिशन भी घर से बेदखल नहीं किया जा सकता। एडीसी सचिन राणा ने इस फैसले के साथ शिकायतकर्ता मां-बाप की याचिका को खारिज कर दिया है। साथ ही उन्हें आदेश दिया है कि वे अपनी बहू को घर में ही रहने दें।
यह है पूरा मामला
चंडीगढ़ के ड्डूमाजरा कॉलोनी सेक्टर-38 वेस्ट के रहने वाले 63 वर्षीय एक बुजुर्ग ने अपने बेटे व बहू के खिलाफ सीनियर सिटीजन ट्रिब्यूनल में द मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट-2007 के सेक्शन-21 और 22 के तहत शिकायत दी थी। शिकायत में 63 वर्षीय बुजुर्ग ने अपने बेटे और बहू पर आरोप लगाए थे कि शादी के 13 साल बाद बेटा और बहू उन्हें घर से बाहर निकालने के लिए प्रताड़ित कर रहे हैं। बुजुर्ग ने अपनी याचिका में बेटे और बहू पर आरोप लगाया था कि वह आए दिन प्रॉपर्टी को उनके नाम ट्रांसफर करवाने का दबाव बना रहे हैं। इस पर ट्रिब्यूनल ने शिकायत पर दूसरे पक्ष यानी शिकायतकर्ता के बेटे और बहू को ट्रिब्यून में अपना पक्ष रखने को कहा था।
बहू की दलील के आगे झूठे साबित हुए सास-ससुर
63 वर्षीय शिकायतकर्ता की बहू ने ट्रिब्यूनल में अपना जवाब दाखिल करते हुए बताया कि 3 मार्च 2004 को उसकी शादी शिकायतकर्ता के बेटे के साथ मनसा देवी कॉम्प्लेक्स में हुई थी। 26 मार्च 2004 को यह शादी हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत रजिस्टर्ड भी कराई गई। यह उनकी लव मैरिज थी। उसने अपने मां-बाप की मर्जी के खिलाफ यह शादी की। मगर शादी पति के परिवार की सहमति और मंजूरी से हुई। शिकायतकर्ता की बहू ने अपनी दलील में कहा कि उसके पति कोई काम नहीं करते थे। इस वजह से वह डड्डूमाजरा स्थित एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर घर का पूरा खर्चा चलाती थी। वह अकसर स्कूल के प्रिंसिपल से उधार लेकर घर के खर्चे को पूरा करती थी। यहां तक कि डड्डूमाजरा में जो उसका घर (ससुराल) है, उस के फर्स्ट फ्लोर के निर्माण के लिए उसने अपने पिता के नाम पर बैंक से लोन लिया। इस लोन का भुगतान भी उसने अपनी सैलरी में से किया।
ट्रिब्यूनल ने बहू के हक में दिया फैसला
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद एडीसी सचिन राणा ने शिकायतकर्ता 63 वर्षीय बुजुर्ग की याचिका खारिज कर दी। ट्रिब्यूनल ने फैसला में कहा कि यदि बेटा कोई काम नहीं करता है। या सास-सुसर की बहू से कोई रंजिश है तो वह अपने बेटे और बहू को घर से बेदखल नहीं कर सकते।
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