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    पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का फैसला, पत्नी के जीवित रहने तक भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है पति

    पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा कि आर्थिक रूप से सक्षम पति को अपनी पत्नी का भरण-पोषण करना होगा जब तक वह जीवित है भले ही पत्नी अपने बेटों से सहायता प्राप्त कर सकती है। जस्टिस शालिनी सिंह नागपाल ने 86 वर्षीय पति को 77 वर्षीय पत्नी को 15 हजार रुपये मासिक गुजारा भत्ता देने के पारिवारिक अदालत के आदेश को बरकरार रखा।

    By Jagran News Edited By: Suprabha Saxena Updated: Tue, 26 Aug 2025 09:47 AM (IST)
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    पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि एक पति, जिसकी आर्थिक स्थिति अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने के लिए सक्षम है, उसे कानून और नैतिकता के अनुसार तब तक भरण-पोषण करना होगा जब तक वह जीवित है।

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    जस्टिस शालिनी सिंह नागपाल ने यह टिप्पणी करते हुए एक पारिवारिक अदालत के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें 86 वर्षीय सेवानिवृत्त सैनिक को अपनी 77 वर्षीय पत्नी को 15 हजार रुपये मासिक अंतरिम गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था। न्यायालय ने कहा कि यद्यपि पति की उम्र अधिक है, लेकिन पत्नी की स्थिति भी समान है, जो अपने भरण-पोषण में असमर्थ है। यह तर्क कि पत्नी अपने बेटों से सहायता मांग सकती है, उसके भरण-पोषण के दावे को कमजोर नहीं करता।

    पति, जिसके पास पत्नी का भरण-पोषण करने की आर्थिक क्षमता है, उसे अपनी पत्नी का भरण-पोषण करना अनिवार्य है। यह भी स्पष्ट किया गया कि पत्नी कोई लाभकारी नौकरी नहीं कर रही है और उसे अभाव से बचाने की आवश्यकता है। 80 वर्षीय बुजुर्ग के वकील ने नारनौल स्थित पारिवारिक न्यायालय के 30 अप्रैल के आदेश को चुनौती दी थी।

    उन्होंने कहा कि पति एक लकवाग्रस्त व्यक्ति है और उसकी देखभाल उसके बेटे कर रहे हैं। हालांकि, अदालत को बताया गया कि बेटे अपनी मां की देखभाल करने से मना कर रहे हैं। पारिवारिक न्यायालय ने 15 हजार रुपये का अंतरिम गुजारा भत्ता इस आधार पर निर्धारित किया था कि पति को 42,750 रुपये पेंशन मिलती है और वह 2.5 एकड़ जमीन के मालिक हैं। ॉ

    हालांकि, एक प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया गया था, जिसमें कहा गया था कि बुजुर्ग शारीरिक रूप से असमर्थ हैं और उनकी संपत्ति उनके बेटों के कब्जे में है। न्यायालय ने कहा कि पति की आय और पत्नी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए 15 हजार रुपये का भरण-पोषण उचित है। अंततः, याचिका खारिज कर दी गई।