एचएस फूलका ने किसानों को चेताया- संभल जाओ, खेती में बदलाव नहीं किया तो बंजर हो जाएगी जमीन
आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता एवं वरिष्ठ वकील एचएस फूलका ने किसानों को चेताया कि अगर उन्होंने खेती में बदलाव नहीं किया तो जमीन बंजर पड़ जाएगी। बहुत से किसानों को यह अपने ही जीवनकाल में यह देखना पड़ सकता है।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। धान की सीधी बिजाई करने वाले किसानों को 1500 रुपये प्रति महीना देने के सरकार के ऐलान के बाद आज प्रसिद्ध वकील एचएस फूलका ने भूजल को बचाने के लिए मेरी जमीन, मेरी जिम्मेदारी नाम से मुहिम शुरू की है। मुहिम धान की खेती के लिए डायरेक्ट सीडिंग आफ राइस (डीएसआर) की जगह एनरोबिक सीडिंग आफ राइस (एएसआर) विधि अपनाने के लिए है। इसमें 80 से 90 फीसदी पानी की बचत होती है।
यही नहीं, इस विधि से धान लगाने में डीएसआर विधि की तरह नदीन का कोई खर्च नहीं आता और न ही पारंपरिक तरीके से लगने वाले लेबर खर्च को वहन करना पड़ेगा। यह दावा सीनियर वकील एचएस फूलका ने आज यहां किया।
उन्होंने आह्वान किया धान के कारण पंजाब में पूरे साल भर में होने वाली बरसात से दोगुणा ज्यादा पानी उपयोग होता है, इसीलिए पंजाब तेजी से बंजर होने की ओर बढ़ रहा है। फूलका ने किसानों से कहा, आपकी जमीन बंजर होने से बचाने के लिए सरकारें आगे नहीं आएंगी, आपको खुद ही अपनी जमीन बचानी पड़ेगी, इसीलिए हम मेरी जमीन, मेरी जिम्मेदारी मुहिम चलाने जा रहे हैं।
एचएस फूलका ने विदेशों में बैठे पंजाबियों से भी अपने अपने गांव की जमीन बचाने की अपील करते हुए कहा कि उन्होंने जिन किसानों को अपनी जमीन ठेके पर दी हुई है उसे 50 डालर, लगभग 3600 रुपये की ठेके में छूट दे दें। सीधी बीजाई करने वालों को 1500 रुपये सरकार देगी। इस विधि को अपनाने से 6000 हजार रुपये लेबर और अन्य बचतें होने से किसान इस विधि को तेजी से अपनाएंगे, जिससे दो तीन साल में ही भूजल रिवाइव होने लगेगा।
फूलका ने एएसआर विधि को डेवलप करने वाले फगवाड़ा के निवासी अवतार सिंह के साथ मीडियाकर्मियों से बात करते हुए कहा कि यदि धान की खेती में कोई बदलाव नहीं लाए तो जमीन बंजर हो जाएगी। बहुत से किसानों को तो अपने जीवनकाल में ही यह देखना पड़ सकता है।
उन्होंने सरकार की ओर से सीधी बिजाई करने वाले किसानों को 1500 रुपये प्रति एकड़ देने के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि किसान इसे कम बताकर कद्दू वाली तकनीक पर ही जोर दे रहे हैं। किसानों का रवैया खतरनाक है।
फूलका ने इस मौके पर जिला गुरदासपुर के गांव बद्री नंगल के लेक्चरार हरजीत सिंह, मोगा के किसान इकबाल सिंह , रोपड़ के किसान नरेंद्र सिंह और गुरप्रीत सिंह को भी पेश किया जिन्होंने पिछले चार से पांच साल तक इस विधि के जरिए धान की खेती की है।
सभी किसानों ने बताया कि इससे जहां 6000 रुपये प्रति एकड़ लेबर खर्च बच जाता है, वहीं इसमें मात्र दस से बीस फीसदी पानी ही लगता है। एएसआर विधि डेवलप करने वाले अवतार सिंह फगवाड़ा ने बताया कि धान की खेती का कुदरतीकरण करना होगा।
उन्होंने बताया कि धान की खेती के लिए जमीन को हवा मुक्त करना होता है। कद्दू करने वाली विधि में जमीन पर पानी जमा रखकर किसान ऐसा करते हैं, लेकिन हम जमीन को छह बार दो क्विंटल भार लादकर प्रेस करके उसकी हवा निकाल लेते हैं। उसके बाद गेहूं की तरह ड्रिल करके बीज लगा देते हैं। पहला पानी 21 दिन बाद लगाना पड़ता है।
अवतार सिंह ने बताया कि ऐसा करने से नदीन नहीं आते क्योंकि जमीन के नीचे हवा नहीं होती, जबकि पारंपरिक तरीके से कद्दू करके धान लगाने में 22 दिन तक लगातार पानी खड़ा रखना पड़ता है।
यूएन ने भी इस विधि पर रिसर्च शुरू की : ज्योति शर्मा
भूजल पर काम करने वाली फोर्स ट्रस्ट की ज्योति शर्मा ने इस मौके पर बताया पारंपरिक तरीके से धान की खेती करने पर एक साल में पंजाब में जितनी बरसात होती है उससे दोगुणा पानी लगता है। अगर एएसआर विधि को अपनाते हैं तो 80 से 90 फीसदी पानी की बचत होती है। यूएन ने भी इस विधि को सही माना है और आजकल वे विभिन्न यूनिवर्सिटियों में इसकी रिसर्च करवा रहे हैं। उन्होंने बताया कि आज पंजाब के पानी को बचाना सबसे ज्यादा जरूरी है।
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