पंजाब HC के मनमाने आउट-ऑफ-टर्न प्रमोशन पर सवाल, कहा- 'इससे पुलिस बल में असंतोष पैदा हो रहा'
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब पुलिस के महानिदेशक द्वारा पुलिस अधिकारियों को मनमाने ढंग से आउट-ऑफ-टर्न प्रमोशन देने पर सवाल उठाए हैं। अदालत ने कहा कि इससे पुलिस बल में असंतोष पैदा हो रहा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि आउट-ऑफ-टर्न प्रमोशन में सुविचारित और उचित कारण दर्ज किए जाएं। याचिकाकर्ता ने अपनी सेवा के आधार पर समान अवसर की मांग की थी।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब पुलिस के महानिदेशक की पुलिस अधिकारियों को मनमाने और “मेकैनिकल तरीके” से आउट-ऑफ-टर्न प्रमोशन देने पर सवाल उठाए है। अदालत ने साफ कहा कि ऐसे फैसलों से पुलिस बल के भीतर असंतोष पैदा हो रहा है।
जस्टिस जगमोहन बंसल ने निर्देश दिया कि पंजाब पुलिस नियमावली की धारा 13.21 के तहत दी गई विवेकाधीन शक्तियों का इस्तेमाल न्यायसंगत और तर्कसंगत तरीके से किया जाए। उन्होंने कहा कि किसी भी अधिकारी को आउट ऑफ टर्न प्रमोशन देने से पहले स्पष्ट कारण दर्ज करना जरूरी है।
हाईकोर्ट ने टिप्पणी की, डीजीपी द्वारा कई अधिकारियों को आउट-ऑफ-टर्न प्रमोशन दिया गया है, जिससे असंतोष और नाराजगी की स्थिति बनी है। इस शक्ति का उपयोग कानून और अदालत के पूर्व निर्णयों के अनुरूप होना चाहिए, न कि मनमाने ढंग से।
धारा 13.21 के तहत डीजीपी को प्रमोशन से जुड़ी किसी भी शर्त को शिथिल करने का अधिकार है, लेकिन अदालत ने कहा कि यह शक्ति मनमाने या अनुचित तरीके से इस्तेमाल नहीं की जा सकती।मामले में याचिकाकर्ता 1989 में कांस्टेबल भर्ती हुआ था और अपने करियर में उसे 125 प्रशंसा पत्र मिले।
डीएसपी, एसएसपी और डीआईजी ने भी उसकी सिफारिश की थी, फिर भी उसे प्रमोशन नहीं दिया गया। वहीं, एक जूनियर अधिकारी को बिना किसी विशेष योग्यता के प्रमोशन दे दिया गया। इससे आहत होकर याचिकाकर्ता ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। पुलिस विभाग के वकील ने कहा कि आउट ऑफ टर्न प्रमोशन का अधिकार डीजीपी के पास है, और हर अधिकारी को यह हक नहीं मिल सकता।
नीति के अनुसार, 2012 के बाद ही ऐसी सुविधा लागू है, जबकि याचिकाकर्ता का मामला इससे पहले का था।इस आधार पर कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि आउट ऑफ टर्न प्रमोशन में सुविचारित और उचित कारण दर्ज किए जाएं व विभाग को नीति का पालन करना चाहिए, ताकि अनावश्यक विवाद उत्पन्न न हो।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता अपने जूनियर के प्रमोशन का विरोध नहीं कर रहा, बल्कि अपनी सेवा के आधार पर समान अवसर चाहता है। अदालत ने यह भी कहा कि आउट-ऑफ-टर्न प्रमोशन कोई मौलिक या सुनिश्चित अधिकार नहीं है। प्रत्येक मामले की स्वतंत्र रूप से समीक्षा होती है और अदालत डीजीपी को किसी अधिकारी को प्रमोशन देने के लिए मजबूर नहीं कर सकती।
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