कर्जदारों की संपत्तियां बैंकों को दिलाने में बिलंब करने वाले जिला मजिस्ट्रेटों को पढ़ाएं : हाई कोर्ट
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने बैंकों और वित्तीय संस्थानों को सशक्त बनाने के लिए सरफेसी अधिनियम 2002 की धारा 14 के तहत जिला मजिस्ट्रेटों द्वारा आदेशों के क्रियान्वयन में देरी पर चिंता व्यक्त की है। अदालत ने चंडीगढ़ न्यायिक अकादमी को पंजाब हरियाणा और चंडीगढ़ के उपायुक्तों और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेटों के लिए एक महीने के भीतर पाठ्यक्रम आयोजित करने का निर्देश दिया है।

दयानंद शर्मा, चंडीगढ़। बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों को खराब ऋणों की वसूली के लिए सशक्त बनाने के लिए सरफेसी अधिनियम 2002 है जिसके माध्यम से ऋणदाता संस्थान उधार चुकाने में विफल रहने वाले उधारकर्ताओं की संपत्तियां बिना लंबी अदालती प्रक्रिया के जब्त कर सकते हैं या बेच सकते हैं।
इस कानून की धारा 14 के अंतर्गत जिला मजिस्ट्रेटों पर इस संबंध में आदेश देने व उनके क्रियान्वयन कराने की जिम्मेदारी है। कानून में ऐसे आदेश 30 से 60 दिनों के भीतर पारित करने और बिना किसी देरी के उन पर अमल कराने का प्रविधान है परंतु जिला मजिस्ट्रेट आदेशों के क्रियान्वयन में बार-बार देरी कर रहे हैं।
इस स्थिति को देखते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने बुधवार को चंडीगढ़ न्यायिक अकादमी को निर्देश दिया कि वह एक महीने के भीतर पंजाब, हरियाणा व चंडीगढ़ के उपायुक्तों व मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेटों के लिए पाठ्यक्रम आयोजित करे।
चीफ जस्टिस शील नागू व जस्टिस रमेश कुमारी की खंडपीठ ने कहा कि स्पष्ट न्यायिक निर्देशों के बावजूद जिला मजिस्ट्रेट व अधीनस्थ राजस्व अधिकारी अक्सर महीनों तक फाइलों पर बैठे रहते हैं जिससे सरफेसी अधिनियम की मूल योजना ही विफल हो जाती है।
धारा 14 जिला मजिस्ट्रेट या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को यह अधिकार देती है कि वे डिफाल्ट साबित होने के बाद सुरक्षित संपत्तियों को अपने कब्जे में लेने में बैंकों की सहायता करें। सुनवाई में बैंकों के वकीलों ने पीठ को बताया कि छोटे कर्जदारों के मामलों का फैसला शीघ्र हो जाता है लेकिन 100 करोड़ व उससे अधिक के मामलों में राजनीतिक या बाहरी कारणों से आदेश देने या उन्हें लागू करने में देरी होती है।
उच्च एवं निम्न मूल्य के मामलों के बीच किसी भी भेद को खारिज करते हुए पीठ ने निर्देश दिया कि यह अपेक्षा की जाती है कि अब आदेश 60 दिनों के भीतर पारित किए जाएंगे। साथ ही कड़ी चेतावनी भी दी कि यदि कोई जिला मजिस्ट्रेट या डिप्टी कमिश्नर धारा 14 में अपने कर्तव्य का पालन करने में विफल पाए जाते हैं तो यह कोर्ट की अवमानना होगी।
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