पिता जासूस थे, पाकिस्तान में भुगती दस साल की सजा; बेटे ने मांगी पंजाब पुलिस में सब-इंस्पेक्टर पद की नौकरी
पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब सरकार को खुफिया एजेंट के बेटे को सब-इंस्पेक्टर नियुक्त करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया। जस्टिस जगमोहन बंसल ने कहा कि नीति के अभाव में अदालत उच्च पद पर नियुक्ति का निर्देश नहीं दे सकती। याचिकाकर्ता ने पिता की देशसेवा का हवाला देते हुए नौकरी मांगी थी लेकिन सरकार ने कांस्टेबल पद की पेशकश की थी। अदालत ने याचिका खारिज कर दी।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक आदेश में पंजाब सरकार को यह निर्देश देने से इनकार कर दिया कि वह एक व्यक्ति को राज्य पुलिस में सब-इंस्पेक्टर नियुक्त करे, भले ही उसके पिता ने देश के लिए खुफिया एजेंट के रूप में काम किया हो और पाकिस्तान की जेल में दस साल की लंबी सजा भुगती हो।
जस्टिस जगमोहन बंसल की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि जब तक इस प्रकार की नियुक्ति के लिए राज्य सरकार की कोई स्पष्ट या निहित नीति मौजूद नहीं है, तब तक अदालत किसी को उच्च पद पर नियुक्त करने का निर्देश नहीं दे सकती।
यह आदेश नीरज शर्मा द्वारा दायर याचिका पर सुनाया गया, जिसमें उन्होंने पंजाब सरकार द्वारा 7 फरवरी 2024 को जारी आदेश और उससे पूर्व व बाद में विभिन्न तिथियों पर उनकी नियुक्ति संबंधी मांगों को ठुकराने वाले आदेशों को रद्द करने की अपील की थी। याचिकाकर्ता नीरज शर्मा ने अदालत को बताया कि उनके पिता भारतीय खुफिया ब्यूरो के लिए एक गुप्तचर थे, जिन्हें दिसंबर 1968 में पाकिस्तान की सेना ने जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया था।
वहां उन्हें सैन्य अदालत ने दोषी ठहराते हुए 10 वर्ष की सज़ा सुनाई और वे दिसंबर 1974 में रिहा होकर वाघा-अटारी बार्डर के रास्ते भारत लौटे थे।याचिका में बताया गया कि नीरज शर्मा ने 6 अगस्त 2008 को पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री को एक प्रार्थना पत्र भेजा था, जिसमें उन्होंने अपने पिता की देशसेवा का हवाला देते हुए सरकारी नौकरी देने की अपील की थी।
उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे होशियारपुर निवासी कश्मीर सिंह को, जो पाकिस्तान में 35 साल कैद रहने के बाद रिहा हुए थे, सरकार ने राहत दी थी।इसके बाद, फाजिल्का (तत्कालीन फिरोज़पुर) के उपायुक्त ने 27 नवंबर 2013 को एक रिपोर्ट में बताया कि याचिकाकर्ता का पारिवारिक मासिक आय मात्र 6,000 रुपये थी और उनके पास केवल तीन मरले का एक मकान था।
इसके आधार पर तत्कालीन मुख्यमंत्री ने 24 दिसंबर 2014 को 50,000 रुपये की आर्थिक सहायता मंजूर की थी।बाद में, 7 जुलाई 2018 को नीरज शर्मा ने एक और आवेदन मुख्यमंत्री को भेजकर ऐसी ही स्थिति वाले लोगों की तर्ज पर उन्हें भी सरकारी नौकरी देने की मांग की।
दुर्भाग्यवश, उनके पिता का निधन 22 अक्टूबर 2018 को हो गया। याचिकाकर्ता ने अपनी शैक्षणिक योग्यता डिप्लोमा इन फार्मेसी और बीएससी (मेडिकल) का हवाला देते हुए कहा कि वे योग्य हैं और उन्हें सब-इंस्पेक्टर या कम से कम असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर की नियुक्ति मिलनी चाहिए।
हालांकि सरकार ने उन्हें पुलिस विभाग में कांस्टेबल पद की पेशकश की, जिसे उन्होंने स्वीकार भी कर लिया, लेकिन वह लगातार उच्च पद की मांग करते रहे। उनके वकील ने अदालत में यह दलील दी कि ऐसे ही मामलों में अन्य लोगों को ग्रेड-बी पद प्रदान किए गए हैं, तो समानता के आधार पर नीरज शर्मा को भी कम से कम एएसआई का पद दिया जाना चाहिए।
पंजाब सरकार की ओर अदालत को बताया कि राज्य के पास ऐसा कोई स्पष्ट या परंपरागत नीति नहीं है, जिसके तहत जासूसों के परिजनों को पुलिस में सीधे उच्च पद दिए जा सकें। इसलिए सरकार ने जो पद आफर किया, वह नीति अनुरूप ही था।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने कहा कि राज्य सरकार की किसी नीति के अभाव में, चाहे वह स्पष्ट हो या निहित, अदालत किसी नागरिक को सीधे सब-इंस्पेक्टर जैसे उच्च पद पर नियुक्त करने के लिए सरकार को बाध्य नहीं कर सकती, खासकर तब जब याचिकाकर्ता पहले ही कांस्टेबल के पद पर नियुक्ति स्वीकार कर चुके हैं और उस पद के नियमों व शर्तों का पालन नहीं कर रहे। इस निर्णय के साथ हाई कोर्ट ने नीरज शर्मा की याचिका को खारिज कर दिया।
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