शोषणकारी शर्तों पर हाई कोर्ट सख्त, कर्मचारियों से जबरन लिए गए हलफनामे अवैध करार
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा है कि कर्मचारियों को अपने कानूनी अधिकार छोड़ने के लिए मजबूर करना गैरकानूनी है। अदालत ने रंजीत सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया जिन्हें बकाया राशि छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था। अदालत ने रंजीत सिंह को पिछली सेवा अवधि की गिनती सहित सभी लाभ देने के निर्देश दिए हैं।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी कर्मचारी से उसकी वैधानिक अधिकारों को छोड़ने के लिए जबरन शर्तें या हलफनामे लेना अवैध है।
कोर्ट ने कहा कि कोई भी कर्मचारी अपने वैधानिक हक छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता और न ही नियोक्ता उसके आर्थिक हालात का फायदा उठाकर अपनी मनमानी कर सकते हैं।
जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने कहा कि अक्सर लंबे समय तक चली कानूनी लड़ाई के बाद पुन बहाल किए गए कर्मचारियों से हलफनामे लिए जाते हैं, जिनमें वे वेतन, सेवा निरंतरता, वेतन वृद्धि और पेंशन लाभ छोड़ने के लिए मजबूर किए जाते हैं।
ऐसे कर्मचारियों को कई बार नए नियुक्ति पत्र देकर पुरानी सेवा अवधि का लाभ भी नहीं दिया जाता, जिससे उनकी नियमितीकरण, वरिष्ठता और पेंशन अधिकार प्रभावित होते हैं।
यह आदेश रंजीत सिंह नामक ट्यूबवेल ऑपरेटर की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया। रंजीत सिंह ने 1992 में खन्ना नगरपालिका परिषद में नौकरी ज्वाइन की थी। 1994 में उनकी सेवा नियमित तो की गई, लेकिन उसी साल बिना नोटिस और जांच के सेवा समाप्त कर दी गई।
लंबे मुकदमेबाजी के बाद 2011 में औद्योगिक न्यायाधिकरण ने उनकी बहाली का आदेश दिया, साथ ही पिछली सेवा और बकाया वेतन देने के निर्देश भी दिए। लेकिन परिषद ने उन्हें मजबूर कर हलफनामा दिलवाया कि वे बकाया राशि का दावा नहीं करेंगे।
इसके बाद ही उन्हें नई नियुक्ति के रूप में ज्वाइन करवाया गया, जिससे उनकी पूरी पुरानी सेवा अवधि खत्म मानी गई। इससे उनकी वेतन वृद्धि और पेंशन संबंधी हक प्रभावित हुए।
इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि परिषद द्वारा अपनाए गए ये तरीके पूरी तरह मनमाने और अन्यायपूर्ण हैं। अदालत ने 3 मार्च 2025 का आदेश रद करते हुए रंजीत सिंह को पिछली सेवा अवधि की गिनती सहित सभी लाभ देने के निर्देश दिए।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।