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    पंजाब-हरियाणा HC का बड़ा फैसला, पत्नी के साथ न रहने को आत्महत्या के ‘उकसावे’ के समान नहीं माना जा सकता

    By Dayanand Sharma Edited By: Suprabha Saxena
    Updated: Sun, 12 Oct 2025 12:00 PM (IST)

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि उकसाने में केवल शारीरिक क्रियाएं ही नहीं, बल्कि ऐसे आचरण भी शामिल हैं जो किसी व्यक्ति को आत्महत्या के लिए प्रेरित करते हैं। जस्टिस यशवीर सिंह राठौर ने एक मामले में एफआईआर रद करते हुए कहा कि पत्नी का पुन: सहवास से इनकार करना उकसावा नहीं माना जा सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप तभी सही माना जाएगा जब आरोपी के आचरण में अपराध करने की स्पष्ट मंशा दिखे।

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    पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

    दयानंद शर्मा, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने की परिभाषा स्पष्ट करते हुए कहा है कि किसी व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाने का अर्थ केवल शारीरिक कार्रवाई नहीं है, बल्कि यह किसी व्यक्ति को “आगे बढ़ाने या उकसाने” वाले आचरण से भी जुड़ा हो सकता है। अदालत ने कहा कि यह उकसावा शब्दों, कर्मों, जानबूझकर की गई चुप्पी या निरंतर नकारात्मक व्यवहार के रूप में भी सामने आ सकता है।

    जस्टिस यशवीर सिंह राठौर ने यह टिप्पणी एक मामले में एफआईआर रद करते हुए की, जिसमें एक पत्नी और उसके परिवार पर पति को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था। अदालत ने कहा कि पत्नी का पति के साथ पुन सहवास करने से इनकार करना “उकसावे” की श्रेणी में नहीं आता और इस आधार पर दर्ज एफआईआर को जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।

    मोनिका मित्तल ने अपने और अपने परिवार के खिलाफ दर्ज एफआईआर (तारीख 13 अक्टूबर 2022, थाना सिटी-I, अबोहर, जिला फाजिल्का) को रद करने की याचिका दाखिल की थी। एफआईआर में भारतीय न्याय संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाने) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

    एफआईआर के अनुसार, साहिब सिंह, जो अबोहर में मोबाइल की दुकान चलाते थे, ने अपनी पत्नी और उसके परिजनों पर आरोप लगाया था कि वे उसकी पत्नी और बच्चों को उसके साथ रहने नहीं दे रहे थे, जिससे परेशान होकर उसने आत्मदाह कर लिया। घटना 12 अक्टूबर 2022 की थी, जबकि सिंह की मृत्यु 19 अक्टूबर को इलाज के दौरान हुई। पुलिस ने एक हस्तलिखित नोट भी बरामद किया था जिसमें मृतक ने अपने ससुराल पक्ष को “परिवार बर्बाद करने” का दोषी ठहराया था।

    याचिकाकर्ता की ओर से उसके वकील ने दलील दी कि मृतक शराब का आदी था और अक्सर आत्महत्या की धमकियां देकर पत्नी और ससुराल वालों को फंसाने की कोशिश करता था। विवाह टूटने का कारण घरेलू हिंसा था, जिसके चलते मोनिका ने 406, 498-ए जैसी धाराओं के तहत शिकायतें दर्ज की थीं, साथ ही घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 और सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भी आवेदन किए थे।

    याची के वकील ने बताया कि घटना वाले दिन दोनों पक्ष अबोहर स्थित मध्यस्थता केंद्र में उपस्थित हुए थे, जहां पत्नी ने सुरक्षा कारणों से पति के साथ रहने से इनकार कर दिया। इससे गुस्से में आकर साहिब सिंह ने आत्मदाह करने से पहले एक वीडियो बनाकर आत्महत्या की धमकी दी और खुद को आग लगा ली।

    वहीं, अभियोजन पक्ष ने दलील दी कि पत्नी और उसके परिवार का लगातार विरोध और दुर्व्यवहार मानसिक उत्पीड़न के समान था, जिसने मृतक को आत्महत्या के लिए मजबूर किया।

    लेकिन अदालत ने कहा कि केवल वैवाहिक विवाद या अलग रहने का निर्णय, आत्महत्या के लिए उकसाने के समान नहीं माना जा सकता। न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसावे का आरोप तभी टिकता है जब उसके आचरण में स्पष्ट अपराध करने की मानसिक इच्छा पाई जाए।

    अंततः हाईकोर्ट ने एफआईआर को रद्द करते हुए कहा कि इस मामले में कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है जो यह साबित करे कि पत्नी या उसके परिजनों ने मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाया था। अदालत ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में मुकदमा जारी रखना न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।

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