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    हरियाणा: पुरुष कॉन्स्टेबल की भर्ती के लिए अदालत का ट्रायल नहीं बनेगा बाधा, हाई कोर्ट ने डीजीपी को दिए आदेश

    Updated: Wed, 19 Nov 2025 02:52 PM (IST)

    पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा के डीजीपी को एक पुरुष कांस्टेबल उम्मीदवार की उम्मीदवारी पर पुनर्विचार करने का आदेश दिया है, जिसकी नियुक्ति सड़क दुर्घटना मामले में ट्रायल लंबित होने के कारण रद्द कर दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि मामला नैतिक अधोपतन का नहीं है और उम्मीदवार ने ईमानदारी से जानकारी दी थी। कोर्ट ने डीजीपी को निर्देश दिया कि वे मामले की समीक्षा करें और नियुक्ति पर विचार करें।

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    हाईकोर्ट ने हरियाणा के डीजीपी को युवक की उम्मीदवारी पर विचार करने का दिया आदेश

    राज्य ब्यूरो, पंचकूला। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक आदेश पारित करते हुए हरियाणा के डीजीपी को निर्देश दिया है कि वे पुरुष कॉन्स्टेबल (जीडी) पद के एक उम्मीदवार की उम्मीदवारी पर पुनर्विचार करें।

    उम्मीदवार अमित कुमार की नियुक्ति केवल इस आधार पर ठुकरा दी गई थी कि उसके खिलाफ सड़क दुर्घटना से जुड़े मामले में ट्रायल लंबित था। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह मामला न तो नैतिक अधोपतन से संबंधित है और न ही ऐसा अपराध है, जिसकी सजा तीन वर्ष या उससे अधिक हो सकती है। ऐसे में नियुक्ति से इनकार नियमों के विपरीत है।

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    जस्टिस जगमोहन बंसल की एकल पीठ ने कहा कि पंजाब पुलिस नियम, जो हरियाणा में भी लागू हैं, केवल उन्हीं मामलों में उम्मीदवार को अयोग्य ठहराने की अनुमति देते हैं, जिनमें आरोप नैतिक अधोपतन वाले हों या जिनकी अधिकतम सजा तीन वर्ष या उससे अधिक हो।

    याचिकाकर्ता पर जिन धाराओं में मामला दर्ज था, वे इस श्रेणी में शामिल नहीं होतीं। महेंद्रगढ़ निवासी अमित कुमार ने पुरुष कॉन्स्टेबल के पद के लिए आवेदन किया था और उसने सभी चरण सफलता से पार कर लिए थे।

    इसी दौरान एक सड़क दुर्घटना मामले में एफआइआर दर्ज हुई, जिसकी जानकारी उसने सत्यापन फार्म में पूरी ईमानदारी के साथ दी। सितंबर 2023 में पुलिस एवं जिला अटार्नी ने बताया कि मामला ट्रायल में है। बाद में तीन मई 2025 को ट्रायल कोर्ट ने उसे बरी कर दिया, क्योंकि शिकायतकर्ता का बयान सुनी-सुनाई बातों पर आधारित पाया गया।

    इसके बावजूद 18 अगस्त 2025 को अमित की उम्मीदवारी यह कहते हुए खारिज कर दी गई कि बरी होने का आदेश सत्यापन प्रक्रिया पूरी होने के बाद आया। हाई कोर्ट ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए कहा कि नियमों का गलत अर्थ लगाया गया है और केवल इसलिए उम्मीदवार को बाहर नहीं किया जा सकता कि बरी होने का फैसला बाद में आया।

    कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले रविंद्र कुमार बनाम स्टेट आफ यूपी का हवाला देते हुए कहा कि भर्ती प्राधिकरण को आरोपों की प्रकृति, घटना का समय, उम्मीदवार के आचरण और मामले के अंतिम परिणाम को समग्र रूप से देखना चाहिए। यहां न केवल आरोप गंभीर नहीं थे, बल्कि उम्मीदवार ईमानदारी से पूरी जानकारी देता रहा और अंतत अदालत से पूरी तरह बरी भी हो गया।

    इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हाई कोर्ट ने हरियाणा के डीजीपी को निर्देश दिया कि वे उम्मीदवार के मामले की दोबारा समीक्षा करें और यदि उसे उपयुक्त पाया जाए, तो उसकी ज्वाइनिंग की निर्धारित तिथि को ही उसकी नियुक्ति की प्रभावी तिथि माना जाए, ताकि उसे सभी सेवा लाभ निर्बाध रूप से मिल सकें।