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    अमेरिका से डिपोर्ट हुई हरजीत कौर ने बयां किया दर्द, गिरफ्तारी के बाद हुआ अपराधियों जैसा व्यवहार; बताई आपबीती

    Updated: Sat, 27 Sep 2025 03:41 PM (IST)

    अमेरिका में 32 साल बिताने के बाद डिपोर्ट की गईं पंजाब मूल की हरजीत कौर ने आपबीती सुनाई। मोहाली में रह रहीं 73 वर्षीय हरजीत कौर ने अमेरिकी पुलिस पर अपराधियों जैसा व्यवहार करने का आरोप लगाया। उन्होंने बताया कि पासपोर्ट न होने के कारण हर 6 महीने में हाजिरी लगानी पड़ती थी जहां उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

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    डिपोर्ट की गई पंजाब मूल की हरजीत कौर

    जागरण संवाददाता मोहाली। अमेरिका में तीन दशक से अधिक (32 साल) समय बिताने के बाद डिपोर्ट की गईं पंजाब मूल की 73 वर्षीय बुजुर्ग महिला हरजीत कौर का दर्द अब खुलकर सामने आया है। मोहाली में अपनी बहन के घर रह रहीं हरजीत कौर ने आरोप लगाते हुए कहा है कि गिरफ्तारी के बाद अमेरिकी पुलिस ने उनके साथ अपराधियों जैसा व्यवहार किया।

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    हरजीत कौर ने बताया कि पासपोर्ट नहीं होने के कारण उन्हें हर 6 महीने में अमेरिकी कार्यालय में हाजिरी लगानी पड़ती थी। वह तय तारीख पर हाजिरी लगाने गईं, जहां उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया।

    ठंडे कमरे में बंद: गिरफ्तारी के बाद उन्हें एक बेहद ठंडे कमरे में बंद कर दिया गया। जब उन्होंने ओढ़ने के लिए कुछ मांगा, तो सिर्फ एल्यूमीनियम फॉइल का एक टुकड़ा थमा दिया गया। उनकी आवाज़ किसी ने नहीं सुनी।

    10 दिन की यातना: अगली सुबह उन्हें हथकड़ियां और बेड़ियां लगाकर एरिजोना के बेक्सविड ले जाया गया, जहां उन्हें 10 दिन अलग-अलग डिटेंशन सेल में रखा गया। इस दौरान उन्हें एक छोटे से फट्टे का बेड दिया गया।

    ठंडा भोजन: खाने में उन्हें चीज लगी ठंडी ब्रेड और बीफ दिया जाता था, जो वह खा नहीं पाती थीं। इस कारण उन्होंने 10 दिन तक केवल चिप्स, दो बिस्किट और पानी पर गुजारा किया। उन्होंने कहा कि हिरासत में उन्हें लगा जैसे वह कोई बड़ा अपराधी हों।

    उल्लेखनीय है कि हरजीत कौर, जो 1992 में अपने दो बेटों के साथ अमेरिका गई थीं, को यूएस इमिग्रेशन एंड कस्टम्स इन्फोर्समेंट (ICE) ने 24 सितंबर को गैरकानूनी ढंग से रहने के आरोप में बेड़ियां लगाकर भारत डिपोर्ट किया था। उनके परिवार का तर्क है कि 3 दशक तक रहने के बावजूद उनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं रहा है।

    भावुक होते हुए बुजुर्ग महिला ने कहा कि भारत में उनका अपना कोई सगा नहीं है और वह रिश्तेदारों पर निर्भर हैं। उन्होंने कहा, "मैंने दशकों तक अपने पोते-पोतियों को पाला। अब जब वह वीडियो कॉल पर पूछते हैं कि दादी आपके पास बेड है, तो मुझे रोना आता है। ज़िंदगी के इस आख़िरी समय में मेरे अपने मुझसे बिछड़ गए।" उन्होंने यह भी बताया कि परिवार ने उन्हें अपने खर्च पर भेजने के लिए सरकार से थोड़ा समय मांगा था, लेकिन उनकी अपील को भी अनसुना कर दिया गया।