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    जड़ से लिया एक बाल भी डीएनए प्रोफाइल बनाने के लिए काफी, MBA छात्रा की दुष्कर्म के बाद हत्या केस में हुआ साबित

    By Sohan Lal Edited By: Sohan Lal
    Updated: Fri, 28 Nov 2025 12:59 PM (IST)

    एक एमबीए छात्रा के बलात्कार और हत्या के मामले में, बाल की जड़ से लिए गए डीएनए नमूने से डीएनए प्रोफाइल बनाने की क्षमता साबित हुई है। इस खोज ने डीएनए प्रोफाइलिंग की शक्ति को बढ़ाया है, जिससे अपराध स्थलों से मिले छोटे नमूनों से भी अपराधियों की पहचान की जा सकती है। यह खोज भविष्य में ऐसे मामलों को सुलझाने और पीड़ितों को न्याय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

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    दुष्कर्म के बाद एमबीए की छात्रा की हत्या का पूरा केस डीएनए टेस्ट पर टिका था।

    रवि अटवाल, चंडीगढ़। जड़ से लिया गया एक बाल भी डीएनए प्रोफाइल बनाने के लिए काफी होता है। 21 वर्षीय एमबीए की छात्रा की दुष्कर्म के बाद हत्या के 15 साल पुराने केस में आखिरकार डीएनए ही सबसे बड़ा सबूत साबित हुआ। पूरा केस ही डीएनए टेस्ट पर टिका था। 14 साल तक सुरक्षित रखे गए डीएनए नमूनों ने ही सीरियल किलर मोनू कुमार को दोषी करार दिलाया।

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    साल 2010 में सेक्टर-38 में दुष्कर्म के बाद एमबीए छात्रा की हत्या कर दी गई थी। इस केस से जुड़े एक फारेंसिक विशेषज्ञ के मुताबिक, घटना के बाद सीएफएसएल टीम ने मौके से बड़ी मात्रा में सैंपल इकट्ठा किए थे जोकि पीड़िता के कपड़ों और आंतरिक शरीर से लिए गए थे। इन नमूनों की वर्ष 2012 में सीएफएसएल चंडीगढ़ की डीएनए डिविजन ने पहली बार जांच की थी और इन्हें 100 से अधिक संदिग्धों से मिलाया गया था।

    फारेंसिक विशेषज्ञ के मुताबिक डीएनए प्रोफाइल बनाने के लिए मात्र 0.5 से 2 नैनोग्राम डीएनए ही काफी होता है। इसलिए इसे बड़े ही सुरक्षित तरीके से रखा जाता है ताकि यह कई साल तक खराब न हो। इस केस में भी कुछ ऐसा ही हुआ था।

    2024 में मिला सबसे पहला सबूत

    2024 में मोनू कुमार को चंडीगढ़ पुलिस ने पकड़ा। उसने पूछताछ में एमबीए छात्रा की हत्या की वारदात कबूल कर ली थी। इसके बाद उसके खून के नमूने डीएनए जांच के लिए सीएफएसएल भेजे गए। अगस्त 2024 में डीएनए डिविजन ने रिपोर्ट दी कि मोनू का डीएनए प्रोफाइल पीड़िता के शरीर और कपड़ों से मिले सुरक्षित नमूनों से पूरी तरह मेल खाता है।

    नमूनों को ऐसे रखा जाता है संरक्षित

    विशेषज्ञ के मुताबिक अगर जैविक नमूने को सही तरीके से सुखाकर, नमी, फंगस और माइक्रोबियल संक्रमण से दूर रखे जाएं, तो वह तीन दशक तक भी डीएनए प्रोफाइलिंग के लिए सक्षम रहते हैं। इन्हीं नमूनों से अलग अलग डीएनए प्रोफाइल बनाई जाती रही।