कैंसर की ‘वापसी’ रोकने को वैश्विक शोध तेज, नई दवाओं पर नजर, PU में इप्सकॉन कॉन्फ्रेंस में हुई चर्चा
कैंसर के उपचार के बाद दोबारा होने का खतरा एक बड़ी चुनौती है। इप्सकॉन कॉन्फ्रेंस 2025 में डॉ. निकोलस कलेर ने बताया कि कैंसर की पुनरावृत्ति रोकने के लिए शोध तेज हो गया है। वैज्ञानिक ट्यूमर बायोलॉजी को नई तकनीकों से समझ रहे हैं। "प्रोटोमी" सॉफ्टवेयर विकसित किया जा रहा है। भविष्य में कैंसर की वापसी रोकने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

वैज्ञानिक डॉ. निकोलस कलेर।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। कैंसर उपचार पूरा होने के बाद भी इसके दोबारा लौट आने का खतरा चिकित्सा विज्ञान के सामने सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है। पंजाब विश्वविद्यालय में आयोजित इप्सकॉन कॉन्फ्रेंस 2025 में फ्रांस के यूनिवर्सिटी ऑफ एंगर्स से आए वैज्ञानिक डॉ. निकोलस कलेर ने बताया कि कैंसर की पुनरावृत्ति रोकने की दिशा में विश्वभर की रिसर्च लैबों ने पिछले कुछ वर्षों में शोध कार्य तेज किया है।
उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक अब ट्यूमर बायोलॉजी को नई तकनीकों—विशेषकर आएएनए सीक्वेंसिंग, 3-डी मॉडलिंग और प्रोटीन विश्लेषण—की मदद से गहराई से समझ रहे हैं। इन तकनीकों का लक्ष्य यह जानना है कि इलाज के बाद कैंसर सेल्स किस परिस्थिति में फिर सक्रिय हो जाते हैं।
डॉ. कलेर ने बताया कि “प्रोटोमी” नामक अत्याधुनिक सॉफ्टवेयर विकसित किया जा रहा है, जो 3-डी में यह विश्लेषण करेगा कि एंडोथीलियल सेल्स कैंसर फैलाव में कैसे भूमिका निभाते हैं। आने वाली दवाएं इन कोशिकाओं को लक्ष्य बनाकर मेटास्टेसिस को रोकने की दिशा में प्रभावी साबित हो सकती हैं।
उन्होंने चेताया कि दवाओं की ‘रेजिस्टेंस’ अब भी बड़ी बाधा है, विशेषकर त्वचा (मायलोमा) और जटिल ट्यूमर मामलों में। फेफड़ों के कैंसर को उन्होंने दुनिया के सबसे आक्रामक कैंसरों में बताते हुए कहा कि इसकी पहचान अक्सर देर से होती है, जिससे इलाज चुनौतीपूर्ण बन जाता है।
डॉ. कलेर के अनुसार भविष्य की थेरेपी का फोकस सिर्फ इलाज नहीं, बल्कि कैंसर की “वापसी” रोकने पर होगा, ताकि मरीज को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सके।

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