पंजाब में गैंगस्टरों की गिरफ्त में कबड्डी; अखाड़े में अब पसीने के साथ बह रहा खून; अब तक 12 खिलाड़ी गंवा चुके हैं जान
पंजाब में कबड्डी, जो कभी गांवों में देसी घी और ट्रैक्टर के इनाम वाला खेल था, अब गैंगस्टरों के वर्चस्व का मैदान बन गया है। खिलाड़ी अब करोड़ों कमा रहे ह ...और पढ़ें
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पंजाब में कबड्डी: गांव की चौपाल से गैंगस्टरों के वर्चस्व तक का सफर।
रोहित कुमार, चंडीगढ़। कभी पंजाब के गांवों में जब कबड्डी का दंगल लगता था तो इनाम के तौर पर देसी घी के कनस्तर, गेहूं की बोरियां, भैंस या नया ट्रैक्टर दिया जाता था। अखाड़े के चारों ओर खड़े लोग तालियां बजाते, ढोल की थाप पर खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाते और जीतने वाला खिलाड़ी पूरे गांव की शान बन जाता था। तब कबड्डी सिर्फ ताकत और हिम्मत का खेल थी। उन दिनों जीत का मतलब सिर्फ पैसा नहीं, बल्कि गांव की इज्जत होता था।
वक्त बदला और कबड्डी का चेहरा भी बदलता चला गया। जैसे-जैसे इस पारंपरिक खेल में दर्शक बढ़े, वैसे-वैसे पैसा भी आने लगा। आज हालात यह हैं कि पंजाब के कई गांवों में होने वाले कबड्डी टूर्नामेंटों पर दो-तीन दिन में करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं। जब से गैंग्स्टरों की नजर इसके खिलाड़ियों पर पड़ी तब से यह खेल अब वर्चस्व का मैदान बन गया है। गैंग्स्टरों ने इस खेल को अपनी नाक का सवाल बनाना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे यह खेल अब खूनी खेल का रूप धारण करने लगा है।
हालात ऐसे हो गए हैं कि गैंग्स्टर ही तय करने लगे हैं कि कौन सा खिलाड़ी किस क्लब में खेलेगा और जो खिलाड़ी उनकी बात नहीं मानता तो उसकी हत्या तक गैंग्स्टर करवाने लगे हैं। अन्य खेलों के बजाय कबड्डी पर गैंग्स्टरों की नजर का एक बड़ा कारण यह भी है कि इसके खिलाड़ी शारीरिक रूप से ज्यादा ताकतवर दिखाई देते हैं। गैंग्स्टर इन खिलाड़ियों को अपने साथ जोड़कर ग्रामीण इलाकों में भी अपनी धाक कायम रखना चाहते हैं।
अब यह मिलते है ईनाम, 2010-11 से शुरू हुआ बदलाव
कपूरथला के भोलाथ में हुए एक टूर्नामेंट में महज दो दिनों में करीब 3.5 करोड़ रुपये खर्च किए गए। इनाम इतने बड़े हो गए हैं कि एक खिलाड़ी एक ही दिन में कई बुलेट मोटरसाइकिलें जीत लेता है। खेल से जुड़े लोगों के मुताबिक, पंजाब के टाप 30 खिलाड़ी एक सीजन में एक करोड़ रुपये से अधिक कमा रहे हैं, जबकि करीब 150 खिलाड़ी 40 से 50 लाख रुपये तक की आमदनी कर रहे हैं। कबड्डी में इस बड़े बदलाव की शुरुआत 2010-11 में मानी जाती है, जब पहली बार वर्ल्ड कबड्डी कप का आयोजन हुआ। विजेता टीम को एक करोड़ रुपये का इनाम दिया गया।
टीवी कवरेज, बड़े मंच और बॉलीवुड सितारों की मौजूदगी ने इस खेल को गांव की चौपाल से निकालकर अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। इसका असर सीधा गांवों में होने वाले टूर्नामेंटों पर पड़ा। आयोजकों ने भी बड़े इनाम घोषित करने शुरू कर दिए और रात के समय फ्लड लाइटों में मुकाबले होने लगे। हालांकि, पैसों की इस दौड़ ने कबड्डी के सामने नई चुनौतियां भी खड़ी कर दीं।
अनुभवी खिलाडी़ और आयोजक मानते हैं कि खेल के लिए कोई मजबूत और एकीकृत व्यवस्था नहीं बन पाई। डोपिंग जांच, खिलाडिय़ों की फिटनेस, मैचों की पारदर्शिता और समयबद्ध प्रतियोगिताओं पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। कई बार खिलाड़ी लगातार रात-रात भर खेलने को मजबूर होते हैं, जिससे उनकी सेहत पर भी असर पड़ता है। इसके बावजूद, कबड्डी की जड़ें आज भी पंजाब के गांवों में मजबूत हैं।
यह खेल आज भी युवाओं को पहचान, रोजगार और सम्मान देता है। कई गांवों में बच्चों और महिलाओं के लिए अलग प्रतियोगिताएं शुरू की जा रही हैं, ताकि आने वाली पीढ़ी भी इस खेल से जुड़ी रहे। बुजुर्गों का कहना है कि कबड्डी ने गांवों को एकजुट रखा है और यह पहचान का सवाल है।
अब तक 12 खिलाड़ियों की जान गई
2020 से अब तक 12 खिलाड़ियों की जान जा चुकी है। बीते दिनों मोहाली में कब्ड्डी खिलाड़ी राणा बलाचौरिया की जान गई। इससे पहले बीते नवंबर में लुधियाना के समराला में गुरविंदर सिंह, अक्टूबर में लुधियाना के तेजपाल, नवंबर 2024 में सुखविंदर सिंह सोनी के अलावा संदीप सिंह नंगल अंबिया, अरविंदर जीत सिंह पड्डा जैसे खिलाड़ी अपनी जान गंवा चुके है।

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