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जीना इसी का नाम है : दाेनों हाथ कट गए फिर भी हर चुनौती से किया दो-दो हाथ

चंडी़गढ़ के मोहिंदर सिंह के जज्‍बे को हर कोई सलाम करेगा। मूल रूप से हरियाणा के रहने वाले मोहिंदर के दोनों हाथ बचपन में ही हादसे में कट गए, लेकिन उन्‍होंने हार नहीं मानी।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sun, 15 Apr 2018 11:05 AM (IST)Updated: Mon, 16 Apr 2018 08:54 PM (IST)
जीना इसी का नाम है : दाेनों हाथ कट गए फिर भी हर चुनौती से किया दो-दो हाथ
जीना इसी का नाम है : दाेनों हाथ कट गए फिर भी हर चुनौती से किया दो-दो हाथ

चंडीगढ़, [विकास शर्मा]। हाथों की लकीरों पर यकीन मत करना, क्योंकि तकदीर तो उनकी भी होती है, जिनके हाथ नहीं होते..। यह शेर चंडीगढ़ के मोहिंदर सिंह के लिए ही शायद लिखा गया था। महज 12 वर्ष की उम्र में एक हादसे में दोनों हाथ कट जाने के बावजूद उन्होंने मुश्किलों आगे हथियार नहीं डाले और हर चुनौती से दो-दो हाथ किए। मोहिंदर ने ने अपने बेमिसाल जज्बा से अपने जैसे लोगों के लिए एक मिसाल कायम की।

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हरियाणा के करनाल जिले के गांव सेंगोआ में जन्मे मोहिंदर बेहद गरीब परिवार से ताल्‍लुक रखते हैं। पिता किसानों के यहां काम करते थे और मां लोगों के घरों में। घर की हालत ऐसी थी कि बचपन से ही जीविका के लिए मेहनत-मजदूरी शुरू करनी पड़ी। आजीविका के लिए जद्दोजहद के दौरान 1986 में महज 12 साल की उम्र में एक किसान के यहां घास काटने वाली मशीन से दोनों हाथ कट गए।

बेमिसाल जज्‍बा: अपने दा‍यित्‍व को निर्वाह करते मोहिंदर सिंह। 

इसका बाद जीवन दुखों से भर गया और सब कुछ अंधकार मय हो गया। घर की हालत और जिंदगी की मुश्किलों ने इस कदर मजबूर किया कि 13 वर्ष की उम्र में घर छोड़ दिया। फिर ट्रेनों में आम पापड़, इलायची के दाने और भुनी हुआ मक्का बेचना शुरू कर दिया। चार साल तक खानाबदोशों की तरह एक ट्रेन से दूसरी ट्रेन में कटे हाथ के साथ परेशानियों से दो-दो हाथ करते रहे।

निगम में मिली डेली वेज की नौकरी

मोहिंदर ने बताया कि ट्रेनों में भटकने के दौरान दूर के रिश्तेदार ने निगम के एमओएच डिपार्टमेंट में डेली वेज पर सफाईकर्मी की नौकरी दिला दी। 7 जून 1990 को निगम की नौकरी ज्वाइन की। इसी नौकरी की वजह से 1992 में सुशीला के साथ शादी हुई। सुशीला भी दोनों पैरों से अपाहिज हैं। माेहिंदर कहते हैं, सब ठीक चल रहा था तभी 1993 में डेली वेज पर रखे तमाम कर्मचारियों को निकाल दिया गया। मैं भी सड़क पर आ गया।

13 साल बिना हाथ के रिक्शा चलाया

इसके बाद भी मोहिंदर ने हिम्मत नहीं हारी और नौकरी से जो कुछ बचा था, उससे रिक्शा खरीद लिया। हाथ न होते हुए भी  रिक्शे को चलाकर अपना व परिवार को पेट पालते रहे। इसी दौरान किसी की सलाह पर उन्होंने निगम की अपनी नौकरी के लिए 1997 में कोर्ट में केस दायर किया।

हर दिन इसी तरह सुबह अपने काम पर निकल पडते हैं मोहिंदर सिंह।

आखिरकार वह केस जीते और निगम अधिकारियों ने 1 जून 2006 को नियमित सफाई कर्मचारी की नौकरी दे दी। तब से वह यहां काम कर रहे हैं। सेक्टर-सात की कुछ गलियों की सफाई का जिम्मा उनके पास है। उनके काम से लोग भी खासे खुश हैं। मोहिंदर खुद झाडू लगाते हैं और खुद ही कूड़े को उठाकर डंपिंग डस्टबिन में डाल कर आते हैं।

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'' आज मैं अपने जीवन से संतुष्ट हूं। मेरा इकलौता बेटा गुरबख्श सिंह बीटेक कर नौकरी कर रहा है। पूर्व एडवाइजर नीरू नंदा ने मुझे झुग्गी से सेक्टर-26 में रहने को घर दिला दिया। बुरे वक्त में कई लोगों ने मदद की। मैं ये सब नहीं भूल सकता। 

                                                                                                                             - मोहिंदर सिंह।


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