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    पंजाब यूनिवर्सिटी में शिक्षक भर्ती में आरक्षण की व्यवस्था की मांग, हाई कोर्ट ने UGC और सरकार को जारी किया नोटिस

    Updated: Wed, 09 Apr 2025 10:20 PM (IST)

    पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट (High Court) में याचिका दाखिल कर पंजाब विश्वविद्यालय (Punjab University) द्वारा 2023-24 में जारी शिक्षक भर्ती विज्ञापनों को रद्द करने की मांग की गई है। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि विज्ञापन केंद्रीय शैक्षिक संस्थान (आरक्षण) अधिनियम 2019 का पालन नहीं करते और ओबीसी समेत आरक्षित वर्गों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। कोर्ट ने नोटिस जारी किया है।

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    पंजाब यूनिवर्सिटी में शिक्षक भर्ती में आरक्षण की व्यवस्था की मांग (File Photo)

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ की शिक्षक भर्ती के लिए 2023 और 2024 में जारी विज्ञापनों को रद्द करने या उन पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब विश्वविद्यालय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, भारत सरकार और अन्य को नोटिस जारी करते हुए स्पष्ट किया है कि याचिका के लंबित रहने के दौरान प्रतिवादियों को अंतिम निर्णय लेने की स्वतंत्रता है।

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    डॉ. निरवैन सिंह और गुरमेल ने याचिका दाखिल करते हुए पंजाब विश्वविद्यालय द्वारा 53 शिक्षकों की भर्ती के लिए जारी किए गए विवादित विज्ञापनों को रद्द करने की मांग की है।

    26 शिक्षकों की भर्ती के लिए जारी हुआ विज्ञापन

    पंजाब विश्वविद्यालय ने 2023 में 23 और 2024 में 26 शिक्षकों की भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया था। याची ने कहा कि विज्ञापन भारत सरकार द्वारा केंद्रीय शिक्षा संस्थान (शिक्षक संवर्ग में आरक्षण) अधिनियम, 2019 का अनुपालन करने में विफल रहे हैं।

    केंद्रीय शैक्षिक संस्थान (शिक्षक संवर्ग में आरक्षण) अधिनियम, 2019, केंद्रीय शैक्षिक संस्थानों में शिक्षण पदों पर अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (ओबीसी) और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षण को अनिवार्य बनाता है।

    आरक्षण OBC समुदाय का मौलिक अधिकार

    याचिका में कहा गया है कि पंजाब विश्वविद्यालय में ओबीसी आरक्षण की मांग संविधान के तहत निर्धारित संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप है। कानून द्वारा अनिवार्य आरक्षण का लाभ प्राप्त करना ओबीसी समुदाय का मौलिक संवैधानिक अधिकार है और पंजाब विश्वविद्यालय के अधिकारियों द्वारा इन प्रावधानों को लागू करने में विफलता उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।