'चेक बाउंस नैतिक पतन नहीं', हाईकोर्ट ने मृत कर्मचारी के परिवार को दिया इंसाफ; विभाग को लगाई फटकार
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि चेक बाउंस होना नैतिक पतन नहीं है। अदालत ने एक मृत कर्मचारी के परिवार को न्याय देते हुए विभाग को फटकार लगाई और बकाया राशि का भुगतान करने का आदेश दिया। न्यायालय ने विभाग के रवैये पर नाराजगी व्यक्त करते हुए मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की सलाह दी। यह फैसला परिवार के लिए एक बड़ी राहत है।

चेक बाउंस होना नैतिक पतन का अपराध नहीं माना जा सकता: हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए कहा कि निजी क्षमता में जारी चेक बाउंस होना नैतिक पतन का अपराध नहीं माना जा सकता।
अदालत ने पंजाब स्टेट सिविल सप्लाई कारपोरेशन को आदेश दिया कि मृत चौकीदार को 15 जून 2022 तक सेवा में माना जाए और उसके परिवार को ग्रेच्युटी, लीव एनकैशमेंट सहित सभी सेवा लाभ ब्याज सहित दिए जाएं।
यह मामला फिरोजपुर निवासी एक चौकीदार की पत्नी और बेटे की याचिका से संबंधित था, जिन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें चेक बाउंस के मामले में दोषी ठहराए जाने के आधार पर 2020 में गलत तरीके से नौकरी से हटा दिया गया और बाद में परिवार को सेवा लाभ देने से भी मना कर दिया गया।
जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने कहा कि यह चेक बाउंस का मामला उसकी निजी आर्थिक परेशानी से जुड़ा था, किसी अपराधी इरादे से नहीं। उन्होंने स्पष्ट किया कि न तो कोई भ्रष्टाचार हुआ और न ही निगम को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई, इसलिए इसे नैतिक पतन जैसे अपराधों के समकक्ष नहीं रखा जा सकता।
अदालत ने यह भी माना कि पहले की सजा के बाद अचानक नौकरी चले जाने से कर्मचारी गंभीर आर्थिक संकट में आ गया था और मजबूरी में कर्ज लेकर गुजारा कर रहा था।
कोर्ट ने 24 जनवरी 2023 को जारी कार्मिक विभाग की सूची का हवाला देते हुए कहा कि नैतिक पतन के अपराधों में भ्रष्टाचार, नशा तस्करी, मनी लान्ड्रिंग, बच्चों के खिलाफ यौन अपराध, मानव तस्करी और हथियारों से जुड़े अपराध शामिल हैं, जबकि चेक बाउंस इनमें नहीं आता।
अंत में कोर्ट ने बर्खास्तगी और परिवार का मांग पत्र खारिज करने वाले आदेशों को रद कर दिया और कहा कि केवल चेक बाउंस एक्ट की सजा के आधार पर सेवा लाभ रोकना कानूनन गलत है। अदालत ने याचिका स्वीकार करते हुए परिवार को सभी लाभ देने और बेटे के मामले को सहानुभूति नीति के अनुसार देखने का निर्देश दिया।

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