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    25 साल बाद मिला न्याय, चंडीगढ़ सुपर बाजार के कर्मचारियों के पक्ष में हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

    Updated: Fri, 26 Sep 2025 02:00 AM (IST)

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ के पूर्व सुपर बाजार के 100 से अधिक बर्खास्त कर्मचारियों को राहत दी है। कोर्ट ने सेवा लाभ नोटिस वेतन और मुआवजे के तत्काल भुगतान का आदेश दिया है जो सोसायटी की संपत्ति से दिया जाएगा। सोसायटी 2000 में बंद हो गई थी जिसके बाद कर्मचारियों को निकाला गया था।

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    प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर। (जागरण)

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने 25 वर्ष पुराने विवाद का पटाक्षेप करते हुए चंडीगढ़ के पूर्व सहकारी उपभोक्ता स्टोर सुपर बाजार के 100 से अधिक बर्खास्त कर्मचारियों को बड़ी राहत दी है।

    जस्टिस हरसिमरन सिंह सेठी और जस्टिस विकास सूरी की खंडपीठ ने कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए सेवा लाभ, नोटिस वेतन और मुआवजे की तत्काल अदायगी का आदेश दिया है। यह राशि सोसायटी की परिसमाप्त संपत्तियों से दी जाएगी।

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    सोसायटी वर्ष 2000 में बंद कर दी गई थी, जिसके चलते 10 अक्टूबर 2000 को सभी कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त कर दी गई थीं। तब से कर्मचारी अपने अधिकारों और बकाए लाभों के लिए संघर्षरत थे।

    अदालत ने स्पष्ट किया कि कर्मचारियों के दावों को अनुचित ढंग से खारिज किया गया था और प्रशासनिक अपीलें टिकाऊ नहीं हैं। 

    ब्याज सहित दिए जाएं सेवालाभ

    अदालत ने आदेश दिया कि कर्मचारियों को पूर्ण ग्रेच्युटी, अवकाश नकदीकरण और अन्य सेवा लाभ ब्याज सहित (6 प्रतिशत वार्षिक) दिए जाएं। नोटिस अवधि के बदले तीन महीने का वेतन भी 2000 से बकाया ब्याज सहित अदा किया जाए।

    कर्मचारी भविष्य निधि संगठन को 32.05 लाख रुपये (वर्ष 2012 तक के ब्याज सहित) आठ सप्ताह के भीतर श्रमिकों को उपलब्ध कराए जाएं।

    न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि चंडीगढ़ प्रशासन ने कर्मचारियों को अन्य विभागों में समायोजित करने का आश्वासन दिया था, परंतु वह वादा पूरा नहीं किया गया।

    आज कई कर्मचारी नई नौकरी पाने की स्थिति में नहीं हैं, इसलिए उनकी दशकों पुरानी सेवा और वर्तमान कठिनाइयों को देखते हुए उचित मुआवजे का आदेश दिया गया है।

    सोसायटी की परिसंपत्तियों की अनुमानित कीमत 11.50 करोड़ रुपये से अधिक बताई गई है, जिसमें ब्याज अर्जित करने वाली सावधि जमाएं भी शामिल हैं।

    अदालत ने निर्देश दिया कि सभी भुगतानों के बाद शेष राशि तीन वर्ष तक रजिस्ट्रार, सहकारी समितियों के पास सुरक्षित रखी जाए ताकि भविष्य में कोई दावा लंबित न रह सके।