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    सीबीआई जांच से नहीं बच पाएंगे चंडीगढ़ पुलिस के अफसर, याचिकाएं खारिज

    Updated: Mon, 01 Sep 2025 07:14 PM (IST)

    पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ पुलिस के अधिकारियों की सीबीआई जांच को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है। अदालत ने याचिकाकर्ताओं पर जुर्माना लगाया और सीबीआई को जांच जारी रखने की अनुमति दी। मामला सुबूतों से छेड़छाड़ और भ्रष्टाचार के आरोपों से जुड़ा है जिसमें पुलिस अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध पाई गई थी।

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    भ्रष्टाचार और सुबूतों से छेड़छाड़ मामले में सीबीआई जांच को दी थी चुनौती।

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने चंडीगढ़ पुलिस अधिकारियों द्वारा कथित भ्रष्टाचार और सुबूतों से छेड़छाड़ मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जांच को चुनौती देने वाली दो रिट याचिका खारिज कर दीं। चीफ जस्टिस शील नागू ने याचिकाओं को बेकार और परेशान करने वाली बताते हुए याचिकाकर्ताओं पर 50 हजार रुपये जुर्माना लगाया। जुर्माना 30 दिनों के भीतर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पास जमा कराना होगा।

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    इस आदेश से सीबीआई के लिए मामले में अपनी जांच जारी रखने का रास्ता साफ कर दिया। यह मामला अप्रैल 2022 में भारतीय दंड संहिता की धाराओं 354 (महिला की गरिमा पर हमला), 506 (आपराधिक धमकी) और 384 (जबरन वसूली) के तहत दर्ज एफआईआर से जुड़ा है।

    चंडीगढ़ के इंडस्ट्रियल एरिया थाने में एफआईआर दर्ज होने के बाद आरोपित अनिल विश्वनाथ मल्होत्रा को गिरफ्तार कर लिया गया और सिम कार्ड सहित एक आईफोन 12 जब्त कर लिया गया। थाना प्रभारी राम रतन के निर्देश पर सब-इंस्पेक्टर सत्यवान ने मामले की जांच की। जुलाई 2022 तक पुलिस ने एक रद्दीकरण रिपोर्ट दाखिल की, जिसे 8 अगस्त को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने स्वीकार कर लिया और एफआईआर बंद कर दी।

    दिसंबर 2022 में चंडीगढ़ के डीजीपी ने जांच के दौरान अवैध और भ्रष्ट गतिविधियों को चिह्नित किया और सीबीआई को मामले की जांच करने का आदेश दिया। जनवरी 2023 में तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कुलदीप चहल के खिलाफ प्रारंभिक जांच शुरू हुई। सीबीआई ने बाद में पाया कि महत्वपूर्ण सुबूत नष्ट कर दिए गए थे।

    अदालत के निष्कर्षों के अनुसार, मल्होत्रा से जब्त किया गया असली आईफोन 12 उन्हें वापस कर दिया गया और उसकी जगह बिना सिम कार्ड वाला आईफोन 7 दे दिया गया, जिसे फिर फोरेंसिक लैब भेज दिया गया। असली जब्ती मेमो नष्ट कर दिया गया और उसकी जगह एक फर्जी मेमो लगा दिया गया।

    इसके बाद सीबीआई ने अप्रैल 2024 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17 ए के तहत अनिवार्य मंजूरी प्राप्त की और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराधों के साथ-साथ सुबूतों को गढ़ने, रिकॉर्ड नष्ट करने और साजिश का आरोप लगाते हुए एक नई प्राथमिकी दर्ज की।

    मल्होत्रा ने पहली याचिका में तर्क दिया कि एफआईआर पहले ही रद कर दी गई है, इसलिए सीबीआई की आगे की कोई भी कार्रवाई एजेंसी के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। सत्यवान और राम रतन द्वारा दायर दूसरी याचिका में दावा किया गया कि सीबीआई ने धारा 17 ए के तहत बिना अनुमति के कार्रवाई की, जिससे उसकी जांच "अवैध" हो गई।

    दोनों याचिकाओं में सीबीआई को बलपूर्वक कार्रवाई करने से रोकने की भी मांग की गई थी। इस साल की शुरुआत में अंतरिम रोक लगने से सीबीआई जांच अस्थायी रूप से रुक गई थी। अदालत ने कहा कि 2022 में रद्दीकरण रिपोर्ट स्वीकार किए जाने के बाद मूल एफआईआर अपनी मृत्यु मर चुकी है, जिससे पहली याचिका निष्फल हो गई।

    सीबीआई ने उचित प्रक्रिया का पालन किया

    दूसरी याचिका पर अदालत ने कहा कि सीबीआई ने दोनों पुलिस अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले पूर्व अनुमति प्राप्त करके उचित प्रक्रिया का पालन किया था। चीफ जस्टिस नागू ने कहा कि सीबीआई जांच में लगाए गए आरोप मूल एफआईआर में लगाए गए आरोपों से अलग हैं, क्योंकि वे जांच के दौरान पुलिस कर्मियों के दुर्व्यवहार से संबंधित हैं।

    दोनों याचिकाओं को न्यायिक समय की बर्बादी बताते हुए अदालत ने 25-25 हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए खारिज कर दिया तथा चेतावनी दी कि 30 दिनों के भीतर जुर्माना अदा न करने पर मामले को अनुपालन के लिए सूचीबद्ध कर दिया जाएगा

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