चंडीगढ़ PGI में फोटोकाॅपी की दुकान से चल रहा था घोटाले का खेल, गरीब मरीजों को मिलने वाली सरकारी ग्रांट पर डाका
चंडीगढ़ पीजीआई में एक फोटोकॉपी की दुकान से घोटाले का खेल चल रहा था। इस घोटाले में गरीब मरीजों को मिलने वाली सरकारी ग्रांट पर डाका डाला गया है। 1.14 क ...और पढ़ें

चंडीगढ़ पीजीआई में 1.14 करोड़ का घोटाला सामने आया है। सीबीआई मामले की जांच में जुटी है।
रवि अटवाल, चंडीगढ़। देश के नामी स्वास्थ्य संस्थानों में शामिल पीजीआई में गरीब और जरूरतमंद मरीजों को मिलने वाली सरकारी ग्रांट में 1.14 करोड़ का बड़ा घोटाला सामने आया है। सीबीआई की जांच में सामने आया है कि यह घोटाला पीजीआई की ही गोल मार्केट में फोटोकाॅपी की दुकान से चल रहा था।
इस दुकान के मालिक का पीजीआई के प्राइवेट ग्रांट सेल के अधिकारियों से लगातार संपर्क था। इन्हीं के जरिए फर्जी बैंक खाते जुटाए गए, जिनमें मरीजों को मिलने वाली ग्रांट की रकम ट्रांसफर की जाती थी और उन्हें मिलने वाली दवाओं को अवैध रूप से बाजार में बेचा जाता था। सीबीआई ने दुकान के मालिक दुर्लभ कुमार और पार्टनर साहिल सूद के खिलाफ भी केस दर्ज किया था।
अन्य आरोपितों में पीजीआई के जूनियर एडमिनिस्ट्रेटिव असिस्टेंट (रिटायर्ड) धर्मचंद, मेडिकल रिकाॅर्ड क्लर्क सुनील कुमार, लोअर डिवीजन क्लर्क प्रदीप सिंह, चेतन गुप्ता, हाॅस्पिटल अटेंडेंट नेहा और प्राइवेट ग्रांट सेल के कर्मचारी गगनप्रीत सिंह शामिल हैं। सीबीआई इस घोटाले में शामिल अन्य लोगों का भी पता लगा रही है।
इसके अलावा दवा कंपनी एचएलएल लाइफ केयर, मेसर्स आर.कुमार मेडिकोस, कुमार एंड कंपनी और मारुति मेडिकोस की भी भूमिका की जांच की जा रही है, हालांकि उन्हें अभी आरोपित नहीं बनाया गया है। सीबीआई को जांच में पता चला है कि आरोपित चेतन गुप्ता, सुनील कुमार, प्रदीप सिंह, गगनप्रीत सिंह, धर्मचंद और नेहा ने आपसी मिलीभगत से फर्जी क्लेम फाइलें प्रोसेस कीं।
फर्जी लाभार्थियों के खातों में डाली गई रकम बाद में दुर्लभ कुमार और साहिल सूद सहित अन्य निजी व्यक्तियों और उनके रिश्तेदारों के खातों में ट्रांसफर कर दी जाती थी। जिसे आरोपित बाद में आपस में बांट लेते थे। सीबीआई ने पीजीआई के मुख्य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) से मिली शिकायत के आधार पर जांच की और एफआईआर दर्ज की गई थी।
प्राइवेट ग्रांट सेल में हुई गड़बड़ियां
जांच के दौरान पीजीआई, संबंधित विभागों और विभिन्न बैंकों से रिकाॅर्ड एकत्र किए गए। रिकाॅर्ड में पीजीआई के प्राइवेट ग्रांट सेल में गंभीर वित्तीय अनियमितताएं सामने आईं। यह सेल स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष, राष्ट्रीय आरोग्य निधि, हंस कल्चर सोसायटी और अन्य सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाओं से मिलने वाली ग्रांट के प्रबंधन का काम करता है। इसी सेल में गरीब और जरूरतमंद मरीजों को वित्तीय सहायता और दवाएं उपलब्ध करवाई जाती हैं।
ऐसे पकड़ में आया घोटाला
घोटाले का पर्दाफाश तब हुआ जब एक लाभार्थी मरीज कमलेश देवी (फाइल नंबर 18796) के पति दवाओं के लिए स्वीकृत ढाई लाख की ग्रांट का लाभ लेने प्राइवेट ग्रांट सेल पहुंचे। वहां पता चला कि यह फाइल नष्ट कर दी गई थी। उसका डिजिटल रिकाॅर्ड भी डिलीट कर दिया गया था और 22,01,839 रुपये की राशि आरटीजीएस के माध्यम से निवास यादव नामक एक निजी व्यक्ति के खाते में ट्रांसफर कर दी गई थी। इस व्यक्ति का मरीज से कोई संबंध भी नहीं था।
इसके बाद पीजीआई ने अपने स्तर पर जांच शुरू की तो और भी मरीजों के साथ ऐसे घोटाले का पता चला। एक मरीज अरविंद कुमार (फाइल नंबर 20404) को मिलने वाली राशि में से 90 हजार रुपये पीजीआई की ही कर्मचारी नेहा के खाते में भेजे गए थे। इस पर संज्ञान लेते हुए पीजीआई प्रशासन ने स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड कम्युनिटी मेडिसन के प्रोफेसर व अध्यक्ष डाॅ. अरुण कुमार अग्रवाल की अध्यक्षता में एक आंतरिक जांच समिति गठित की।
फर्जी आश्रित दिखाकर लाखों का भुगतान
समिति को जांच के दौरान 11 ऐसे लोगों के मैंडेट फार्म मिले जो न तो मरीज थे और न ही किसी मरीज के परिजन। उन्हें फर्जी तरीके से मरीजों का आश्रित दिखाकर 19,00,759 रुपये निजी बैंक खातों में ट्रांसफर करवा दिए गए। इतना ही नहीं दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित पांच मरीजों के इलाज के लिए राष्ट्रीय आरोग्य निधि और अन्य एजेंसियों से मिले 61.75 लाख में से 38,00,946 बिना किसी डाॅक्टर की पर्ची के दवा विक्रेताओं के खातों में ट्रांसफर कर दिए गए।
चौंकाने वाली बात यह रही कि इन पांच में से दो मरीजों की पहले ही मौत हो चुकी थी। 2017 से अक्टूबर 2021 तक के रिकाॅर्ड की छानबीन में 70 अतिरिक्त मामलों में वित्तीय अनियमितताएं पाई गईं। 17 मामलों में दवा आपूर्तिकर्ता की मूल बिलों में हेराफेरी कर दोहरा भुगतान लिया गया, जबकि 37 मरीजों की मूल फाइलें रिकाॅर्ड से गायब मिलीं।
इस मामले में सीबीआई ने पीजीआई के छह कर्मचारियों समेत आठ आरोपितों के खिलाफ आईपीसी की धारा 406, 409, 420, 471, 120 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज कर ली गई है।

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