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    चंडीगढ़ PGI में घोटाला: डाॅक्टरों की फर्जी मुहरें लगाकर मुफ्त में लेते दवा, फिर बाजार में बेचते थे

    By Sohan Lal Edited By: Sohan Lal
    Updated: Sun, 21 Dec 2025 01:08 PM (IST)

    चंडीगढ़ पीजीआई में 1.14 करोड़ का घोटाला सामने आया है। आरोपित फर्जी मुहरें लगाकर मुफ्त में दवा लेते थे और उन्हें बाजार में बेच देते थे। इस घोटाले का मा ...और पढ़ें

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    पीजीआई में प्राइवेट ग्रांट सेल में हुए 1.14 करोड़ के घोटाले से पहले आयुष्मान और हिमकेयर जैसी सरकारी योजनाओं में भी करोड़ों का फर्जीवाड़ा हो चुका है।

    रवि अटवाल, चंडीगढ़। पीजीआई में प्राइवेट ग्रांट सेल में हुए 1.14 करोड़ के घोटाले से पहले आयुष्मान और हिमकेयर जैसी सरकारी योजनाओं में भी करोड़ों का फर्जीवाड़ा हो चुका है। हैरानी की बात है कि इन घोटालों का मास्टरमाइंड भी दुर्लभ कुमार ही था।

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    वह अपने साथियों की मदद से पीजीआई की अमृत फार्मेसी से फर्जी मरीजों के रिकाॅर्ड से मुफ्त में दवा लेता और फिर उन्हें बाजार में 15-20 डिस्काउंट पर बेच देता था। यह फर्जीवाड़ा पीजीआई के डाॅक्टरों की फर्जी मुहरें लगाकर किया जाता था।

    पीजीआई की गोल मार्केट में फोटोकाॅपी की दुकान चलाने वाले दुर्लभ और पीजीआई के छह कर्मचारियों पर सीबीआई ने तीन दिन पहले ही एफआईआर दर्ज की थी। इसी साल दुर्लभ को चंडीगढ़ पुलिस की क्राइम ब्रांच ने भी गिरफ्तार किया था।

    उसे आयुष्मान भारत और हिमकेयर योजना के नाम पर हुए फर्जीवाड़ा में पकड़ा गया था। इस घोटाले में सरकारी योजनाओं के तहत मिलने वाली मुफ्त दवाएं फर्जी मरीजों के नाम पर निकालकर उन्हें निजी मेडिकल दुकानों पर बेचा जाता था।

    इस फर्जीवाड़े का पर्दाफाश फरवरी 2025 में तब हुआ, जब एक युवक आयुष्मान कार्ड पर अमृत फार्मेसी से करीब 60 हजार रुपये की दवाइयां लेने पहुंचा। फार्मेसी से मुफ्त दवाएं मिलने के बाद जब सुरक्षा कर्मियों को उस पर शक हुआ, तो उसकी तलाशी ली गई।

    युवक के पास से फर्जी मुहरें, इंडेंट फॉर्म और विभिन्न विभागों के दस्तावेज बरामद हुए। वह युवक कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश निवासी रमन कुमार था। उसके खिलाफ सेक्टर-11 पुलिस थाने में केस दर्ज किया गया था। पुलिस जांच में दुर्लभ कुमार का भी नाम सामने आया।

    जांच के दौरान पता चला कि यह एक बड़ा गिरोह था जिसका मास्टरमाइंड दुर्लभ कुमार, आयुष्मान कार्ड बनवाने वाले अजय कुमार और अमृत फार्मेसी से जुड़े कर्मचारियों की मदद से मरीजों का रिकाॅर्ड हासिल करता था।

    इसके बाद मरीजों के नाम पर फर्जी पर्चियां बनतीं, जिन पर महंगी दवाएं लिखी जातीं और डाक्टरों और पीजीआइ के विभागाध्यक्षों की नकली मुहरें लगाई जाती थीं। रमन कुमार इन पर्चियों को लेकर अमृत फार्मेसी से मुफ्त में दवा लेता और उन्हें चंडीगढ़ के एक नामी केमिस्ट शाप पर पहुंचाता, जहां दुर्लभ कुमार उन्हें बाजार मूल्य से 10-15 फीसदी डिस्काउंट पर बेचता था।

    गरीब मरीजों को मिलने वाली ग्रांट में घोटाला

    पीजीआई के प्राइवेट ग्रांट सेल में गरीब और जरूरतमंद मरीजों को आर्थिक सहयोग दिया जाता है। जिसमें बड़े स्तर पर घोटाला किया जा रहा था। गरीब और जरूरतमंद मरीजों को मिलने वाली रकम आरोपित अपने खातों में ट्रांसफर कर रहे थे। यहां तक कि जो मरीज मर चुके हैं, उनके नाम पर भी ग्रांट ली जा रही थी।

    इस घोटाले में सीबीआई ने फोटोकापी दुकान के मालिक दुर्लभ कुमार और उसके पार्टनर साहिल सूद के खिलाफ केस दर्ज किया है। उसके अलावा आरोपितों में पीजीआइ के जूनियर एडमिनिस्ट्रेटिव असिस्टेंट (रिटायर्ड) धर्मचंद, मेडिकल रिकार्ड क्लर्क सुनील कुमार, लोअर डिवीजन क्लर्क प्रदीप सिंह, चेतन गुप्ता, हाॅस्पिटल अटेंडेंट नेहा और प्राइवेट ग्रांट सेल के कर्मचारी गगनप्रीत सिंह शामिल हैं।

    मिलीभगत से फर्जी क्लेम फाइलें प्रोसेस कीं

    सीबीआई को जांच में पता चला है आरोपित चेतन गुप्ता, सुनील कुमार, प्रदीप सिंह, गगनप्रीत सिंह, धर्म चंद और नेहा ने आपसी मिलीभगत से फर्जी क्लेम फाइलें प्रोसेस कीं। फर्जी लाभार्थियों के खातों में डाली गई रकम बाद में दुर्लभ कुमार और साहिल सूद सहित अन्य निजी व्यक्तियों और उनके रिश्तेदारों के खातों में ट्रांसफर कर दी जाती थी। जिसे आरोपित बाद में आपस में बांट लेते थे। सीबीआई ने पीजीआई के मुख्य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) से मिली शिकायत के आधार पर जांच की और एफआईआर दर्ज की गई।