Updated: Tue, 27 May 2025 07:00 PM (IST)
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने सुधीर परमार की याचिका खारिज करते हुए कहा कि अनुशासनात्मक कार्रवाई में समय पर जवाब न देना लापरवाही है। कोर्ट ने चार्जशीट के बाद 45 दिन की समय सीमा का हवाला दिया। भ्रष्टाचार के आरोपों में निलंबित परमार को जवाब दाखिल करने का और मौका नहीं मिला। कोर्ट ने जांच में देरी पर चिंता जताई और समयबद्ध कार्रवाई के निर्देश दिए।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा सुपीरियर ज्यूडिशियल सर्विस के अधिकारी सुधीर परमार की याचिका को सख्त टिप्पणियों के साथ खारिज करते हुए स्पष्ट किया है कि अनुशासनात्मक कार्यवाही के दौरान न्यायिक अधिकारी का समय सीमा में जवाब नहीं देना पूरी प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करता है और यह दर्शाता है कि संबंधित अधिकारी ने स्वेच्छा से अपना अवसर गंवा दिया है।
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कोर्ट ने कहा कि हरियाणा सिविल सेवा (दंड और अपील) नियमावली 2016 के अनुसार चार्जशीट मिलने के 45 दिन के भीतर जवाब देना अनिवार्य है और समय बीतने पर अधिकारी स्वयं ही उस अधिकार से वंचित हो जाता है। सुधीर परमार, जिन्हें वर्ष 2001 में हरियाणा न्यायिक सेवा में नियुक्ति मिली और 2016 में उच्च न्यायिक सेवा में पदोन्नत किया गया था, उनके विरुद्ध 17 अप्रैल 2023 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम व भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी के तहत एफआइआर दर्ज की गई थी।
उस समय वे पंचकूला की सीबीआइ विशेष अदालत में पीठासीन अधिकारी थे। इसके आधार पर 27 अप्रैल 2023 को उन्हें निलंबित कर दिया गया और 24 जुलाई 2023 को चार्जशीट जारी की गई। बाद में 10 अगस्त 2023 को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उन्हें गिरफ्तार किया और वे दो नवंबर 2023 तक न्यायिक हिरासत में रहे।
परमार ने कोर्ट से अनुरोध किया कि हिरासत के दौरान बीते समय को नजरअंदाज करते हुए उन्हें जवाब दाखिल करने का अवसर दिया जाए। लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चार्जशीट की सेवा से लेकर गिरफ्तारी से पहले के 16 दिन और रिहाई के बाद के 29 दिन जोड़ने पर नियम अनुसार निर्धारित 45 दिन पूरे हो चुके थे और उस समय तक उन्होंने कोई उत्तर प्रस्तुत नहीं किया था।
दो सितंबर 2024 को हाई कोर्ट की सतर्कता एवं अनुशासन समिति ने विभागीय जांच का आदेश दिया और जांच अधिकारी व प्रस्तुतिकर्ता अधिकारी की नियुक्ति की। परमार ने अंतत: सात जनवरी 2025 को जवाब तैयार किया और आठ जनवरी को जमा करने की अनुमति मांगी।
लेकिन तब तक समय सीमा बहुत पहले समाप्त हो चुकी थी। इस दौरान विभाग की ओर से गवाहियों की प्रक्रिया भी आरंभ हो चुकी थी और 23 जनवरी 2025 से अब तक अधिकांश गवाहों की गवाही पूरी हो चुकी है। कोर्ट ने माना कि चार्जशीट जारी होने से लेकर पहले गवाह के बयान तक लगभग 18 माह का विलंब अत्यधिक है और यह जांच अधिकारी व सतर्कता समिति की निष्क्रियता को दर्शाता है।
कोर्ट ने सख्ती से कहा कि अनुशासनिक कार्यवाही छह से सात माह में पूरी होनी चाहिए और अगर इसमें देरी होती है, तो उसके पीछे ठोस व लिखित कारण होने चाहिए। अंत में, हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता के पास उत्तर दोबारा दाखिल करने का अब कोई वैधानिक अधिकार नहीं बचा है।
इसलिए उनकी याचिका खारिज की जाती है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि जांच अधिकारी शीघ्र रिपोर्ट सौंपें और उच्च न्यायालय समयबद्ध निर्णय ले। इसके साथ ही कोर्ट ने चेतावनी दी कि भविष्य में अनुशासनिक जांचों में समय सीमा का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जाए, अन्यथा लापरवाही करने वाले जांच अधिकारियों पर भी कार्रवाई की जाएगी।
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