चंडीगढ़ नगर निगम में बायो माइनिंग घोटाला, अफसरों की मिलीभगत से करोड़ों का नुकसान; अधिकारियों ने ऐसे खेला खेल
चंडीगढ़ नगर निगम में अफसरों की मिलीभगत से 4 से 5 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इंजीनियरिंग विभाग ने बायो माइनिंग का काम क्यूबिक मीटर पर देने की बजाय पसंदीदा कंपनियों को बल्क डेंसिटी पर दे दिया जिससे निगम को भारी नुकसान हुआ। पहले यह काम आकांक्षा एंटरप्राइजेज कर रही थी। बल्क डेंसिटी .6 मानकर काम देने से गड़बड़ी हुई और निगम को अतिरिक्त भुगतान करना पड़ेगा।

बरीन्द्र सिंह रावत, चंडीगढ़। अफसरों की मिलीभगत ने नगर निगम को 4 से 5 करोड़ रुपये का नुकसान कर दिया। निगम के इंजीनियरिंग विभाग ने बायो माइनिंग का काम क्यूबिक मीटर पर अलॉट करने की बजाय चहेती दो कंपनियों को बल्क डेंसिटी पर अलॉट कर दिया। जबकि यही काम पहले एक कंपनी क्यूबिक मीटर पर कर रही थी।
क्यूबिक मीटर की बजाय बल्क डेंसिटी पर काम बहुत ही चालाकी से किया गया। निगम में डंपिंग ग्राउंड से कचरा उठाने का काम पहले आकांक्षा एंटरप्राइजेज क्यूबिक मीटर के हिसाब से कर रही है।
इस बार डेढ़ लाख टन कचरे का अनुमान लगाकर निगम ने बिना किसी फाइनेंशियल बीड के काम बल्क डेंसिटी पर दे दिया ओर बल्क डेंसिटी .6 मान ली
ऐसे किया अफसरों ने खेल....
नगर निगम ने बिना किसी जांच के मनमानी तरीके से बल्क डेंसिटी .6 मान ली। रेट 511 रुपये क्यूबिक मीटर के अनुसार बायो माइनिंग का काम कर रही कंपनी आकांक्षा एंटरप्राइजेज का प्रति टन रेट 851 रुपये आता है। यदि बल्क डेंसिटी.7 है तो 730 रुपये , .8 है तो 638 रुपये , .9 है तो 567 रुपये , .1 है तो 511 रुपये , .1.1 है तो 464 रुपये और 1.2 है तो प्रति टन रेट 425 रुपये आता है।
नगर निगम इसी काम को अन्य एजेंसियों को क्यूबिक मीटर में काम देता तो रेट डिफरेंस नहीं आता। .6 बल्क डेंसिटी मानते हुए देते ही रेट दोगुने हो जाते हैं, क्योंकि टन पर काम कर रही एजेंसियों को पेमेंट वजन के अनुसार मिलती है। यहां पड़े गार्बेज की बल्क डेंसिटी.6 से ज्यादा आते ही नगर निगम लॉस में जाता है और अतिरिक्त भुगतान करना पड़ता है। असली बल्क डेंसिटी को छुपाकर ही अनुचित लाभ पहुंचाया गया।
दूसरे तरीके से यूं समझें ....
.6 की बल्क डेंसिटी मानते हुए जिस क्षेत्र में 150000 टन कूड़े का होना दर्शाया गया है, यदि बल्क डेंसिटी उससे ज्यादा आ जाती है तो वहां कूड़ा डेढ़ लाख टन की सीमा को पार कर जाएगा।
उदाहरण के लिए बल्क डेंसिटी 1 है जैसा कि सूत्र बताते हैं तो उस क्षेत्र से डेढ़ लाख टन के बजाय 3 लाख टन कूड़ा निकलेगा और नगर निगम को 150000 टन कूड़े का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ेगा।
होना यह चाहिए था
नई एजेंसी का रेट मौके पर पड़े कूड़े की असली बल्क डेंसिटी चेक करने के बाद उसी अनुसार रेट तय होना चाहिए था। उस अनुसार प्रति टन रेट कम आता, जो अनुमान लगाकर लगभग दोगुना दे दिया गया।
अफसरों की चुप्पी मिलीभगत दर्शाती है
निगम के सीनियर अफसरों की चुप्पी इस तरफ इशारा करती है कि उनकी मिलीभगत भी इस खेल में शामिल है। पहले से घाटे पर चल रहे नगर निगम को डुबोने में अफसरों की बड़ी भूमिका है। इसमें सबसे अधिक जिम्मेदारी इंजीनियरिंग विभाग की है।

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