9 साल बाद फिर वही खेल! चंडीगढ़ में LG की नियुक्ति को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच बवाल तय
चंडीगढ़ में उपराज्यपाल की नियुक्ति का मामला फिर गरमा रहा है। केंद्र सरकार ने 2016 में भी ऐसा प्रयास किया था, लेकिन पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और कैप्टन अमरिंदर सिंह के विरोध के कारण फैसला वापस लेना पड़ा था। अब केंद्र सरकार फिर से एलजी नियुक्त करने की तैयारी में है, जिससे विवाद बढ़ने की आशंका है। पंजाब और हरियाणा दोनों चंडीगढ़ पर अपना दावा करते हैं।

चंडीगढ़ में एलजी की नियुक्ति नहीं होगी आसान (फोटो: जागरण)
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। केंद्र सरकार की ओर से चंडीगढ़ में प्रशासक के तौर पर लेफ्टिनेंट गवर्नर की नियुक्ति को लेकर बिल लाने की खबरों के साथ ही मामले को लेकर विवाद बढ़ना तय माना जा रहा है।
केंद्र सरकार की ओर से अगस्त 2016 में भी चंडीगढ़ के लिए अलग से एडमिनिस्ट्रेटर की नियुक्ति को लेकर फैसला ले लिया गया था। केंद्र सरकार ने पूर्व आइएएस अधिकारी और भाजपा नेता के अलफोंस को चंडीगढ़ का एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्ति करने को लेकर घोषणा जारी कर दी थी।
लेकिन उस समय पंजाब में अकाली दल के मुख्यमंत्री और एनडीए के सहयोगी मख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मिलकर केंद्र सरकार के फैसले का विरोध किया था।
केंद्र को पहले भी फैसला लेना पड़ा था वापिस
मामले में केंद्र सरकार को अलफोंस की नियुक्ति के फैसले को पंजाब की राजनीति के भारी दबाव में अपने फैसले को वापस लेना पड़ा था। अब फिर से चंडीगढ़ को लेकर फिर से विवाद खड़ा होना तय माना जा रहा है।
चंडीगढ़ पर पंजाब और हरियाणा दोनों ही अपना हक जताते हैं, अब तो हिमाचल भी इस लड़ाई में लगातार कूद रहा है। केंद्र सरकार की ओर से चंडीगढ़ को पूरी तरह से स्वायत्ता देने को लेकर एलजी की नियुक्ति करने की तैयारी है।
बीते काफी समय से चंडीगढ़ में कई मामलों को लेकर विवाद चल रहे हैं। ताजा मामले में पंजाब यूनिवर्सिटी सीनेट को लेकर अभी भी विवाद जारी है। पीयू की गवर्निंग बाडी सीनेट में सदस्यों की संख्या 90 से 31 किए जाने को लेकर हाल ही में उपराष्ट्रपति की ओर से मंजूरी के बाद मिनिस्ट्री आफ एजुकेशन की ओर से नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया था।
पंजाब के सभी राजनीतिक दल विरोध में उतरे
मामले में पंजाब के सभी राजनैतिक दल विरोध में उतर आए और भारी दबाव के बीच केंद्र सरकार को नोटिफिकेशन वापस लेना पड़ा। मामले को लेकर अभी भी पंजाब यूनिवर्सिटी में लगातार धरने प्रदर्शन जारी हैं।
पंजाब के सभी संगठन मिलकर इस मामले में एकजुट हैं। सीनेट चुनाव की तिथि घोषित करने को लेकर भी 26 नवंबर को बड़े प्रदर्शन की पहले ही घोषणा की जा चुकी है। उधर 2008 में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार के समय पंजाब यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी घोषित करने की पूरी तैयारी कर ली गई थी।
उस समय अकाली दल सरकार की ओर से भी इस मामले में एनओसी (नान आब्जेक्शन सर्टिफिकेट) जारी कर दिया गया। लेकिन एक दिन के भीतर ही पंजाब के सभी राजनैतिक दलों ने इसका कड़ा विरोध किया और अकाली दल को एनओसी वापस लेना पड़ा।
पीयू से भी जुड़े हैं तार?
पंजाब यूनिवर्सिटी को सेंट्रल स्टेटस मिलते मिलते रह गया और आज तक पीयू की आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब है। केंद्र सरकार 80 प्रतिशित और पंजाब सरकार को 20 प्रतिशत बजट का हिस्सा देना होता है।
लेकिन पंजाब सरकार कभी भी अपने हिस्से का पूरा बजट नहीं दे रहा। अप्रैल 2022 से यूटी में सेंट्रल सर्विस रुल्स लागू कर दिए गए हैं। इससे पहले चंडीग़ढ़ प्रशासन में पंजाब सर्विस रुल्स लागू होते थे। आने वाले दिनों में चंडीग़ का मुद्दा काफी विवाद ले सकता है।

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