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    चंडीगढ़ में गैस सिलेंडर से भरे स्टोर में हुआ था धमाका, कई घायल हुए, गवाही देने नहीं आए, आरोपित बरी

    By Sohan Lal Edited By: Sohan Lal
    Updated: Thu, 27 Nov 2025 03:56 PM (IST)

    चंडीगढ़ की अदालत ने 10 साल पहले गांव फैदां में हुए गैस सिलेंडर ब्लास्ट के मामले में दो आरोपियों को सबूतों की कमी के कारण बरी कर दिया। पुलिस आरोपितों के खिलाफ आरोप साबित नहीं कर पाई और धमाके में घायल लोग भी गवाही देने नहीं आए। संजय शाह पर अवैध रूप से गैस सिलेंडर रखने का आरोप था, जिसके कारण 2015 में एक बड़ा धमाका हुआ था।

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    आरोपितों की पहचान और भूमिका साबित न होने के कारण संदेह का लाभ देते हुए अदालत ने बरी किया।

    जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। 10 साल पहले गांव फैदां में हुए गैस सिलेंडर ब्लास्ट मामले में जिला अदालत ने दोनों आरोपितों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। बरी होने आरोपित 43 वर्षीय संजय शाह और 26 वर्षीय लालू शाह हैं।

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    इन दोनों के खिलाफ सेक्टर 31 थाना पुलिस ने आइपीसी की धारा 336,337,338 और एसेंशियल कमाडिटीज एक्ट के तहत केस दर्ज किया था। इनके खिलाफ आरोपों को पुलिस अदालत में साबित नहीं कर सकी। इस धमाके में घायल होने वाले लोग भी गवाही देने अदालत नहीं पहुंचे।

    पुलिस ने इसी गांव के रहने वाले बबलू शाह के बयान पर यह केस दर्ज किया था। उसने बताया था कि आठ दिसंबर 2015 को शाम करीब 7:35 बजे वह परिवार के साथ घर पर ही था। पड़ोस में ही उसका भाई संजय शाह रहता था जिसने अपने घर को स्टोर बना रखा था। वहां उस दिन 11 गैस सिलेंडर रखे हुए थे। तभी उस घर में जोरदार धमाका हुआ।

    धमाके के बाद आसपास आग लग गई जिसमें बबलू शाह की पत्नी संगीता, बेटी मुस्कान, बेटे मुन्ना, राहुल और एक डेढ़ साल के बच्चे विशाल को चोटें आई थीं। जांच के दौरान पता पुलिस को पता चला कि उस कमरे में अवैध रूप से सिलेंडर रखे हुए थे। मौके पर फायर और डिज़ास्टर मैनेजमेंट टीमें पहुंची और उन्होंने आग पर काबू पाया। पुलिस ने मौके पर सिलेंडर भी बरामद कर लिए।

    शिकायतकर्ता और घायल गवाही देने नहीं आए

    शिकायतकर्ता बबलू शाह और हादसे में घायल उसकी पत्नी संगीता अदालत में गवाही देने नहीं पहुंचे। उन्हें स्टार विटनेस माना गया था, लेकिन कई अवसर देने के बावजूद उनका बयान नहीं हुआ। इसके अलावा इस केस में किसी भी स्वतंत्र गवाह या प्रत्यक्षदर्शी की गवाही नहीं हुई।

    अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि धमाके के लिए जिम्मेदार वास्तव में आरोपित ही थे। ऐसे में आरोपितों की पहचान और उनकी भूमिका साबित न होने के कारण संदेह का लाभ देते हुए अदालत ने उन्हें बरी कर दिया।