ये हैं चंडीगढ़ के अजेय; काम नहीं करता गर्दन से नीचे का हिस्सा, फिर भी जीते ब्रांज और गोल्ड
मोहाली स्थित चितकारा यूनिवर्सिटी में आयोजित 6वीं बोसिया नेशनल चैंपियनशिप में अजेय ने इंडविजुल कैटेगरी में ब्रांज मेडल जीता जबकि डबल्स कैटेगरी में गोल्ड मेडल जीता। यह प्रतियोगिता 17 से 21 मार्च को आयोजित की गई थी जिसमें 100 से ज्यादा पैरालाइज्ड खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था।

विकास शर्मा, चंडीगढ़। मंजिलें उन्हें मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। इन शब्दों को यर्थाथ कर दिखाया अजेय राज ने। अजेय राज का पूरा शरीर पैरालाइज्ड है, उनकी सिर्फ गर्दन से ऊपर का हिस्सा काम करता है। बावजूद इसके अजेय चंडीगढ़ स्पाइनल रिहैव सेंटर में बतौर सोशल मीडिया इंचार्ज, किचन सुपरवाइजर और बतौर काउंसलर जॉब करते हैं। अजेय ने कभी भी अपनी शारीरिक अक्षमता को अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया और हमेशा डटकर सामना किया।
मोहाली स्थित चितकारा यूनिवर्सिटी में आयोजित 6वीं बोसिया नेशनल चैंपियनशिप में अजेय ने इंडविजुल कैटेगरी में ब्रांज मेडल जीता, जबकि डबल्स कैटेगरी में गोल्ड मेडल जीता। यह प्रतियोगिता 17 से 21 मार्च को आयोजित की गई थी, जिसमें 100 से ज्यादा पैरालाइज्ड खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था।
ऐसे खेलते हैं बोसिया
अजेय ने बताया कि बोसिया खेल छह रंगों की गेंद का खेल है। इसमें सफेद रंग की गेंद टारगेट गेंद होती है। हम अपनी ठोड़ी ने एक एक कर इन गेंदों को धक्का देते हैं, ऐसे में सफेद गेंद के नजदीक जितनी गेंदें होंगी, उतने ही प्वाइंटस आपको मिलेंगे। अजेय ने बताया कि स्वस्थ व्यक्ति के लिए यह खेल रोचक नहीं हो सकता है, लेकिन जिन लोगों का पूरा शरीर पैरालाइज्ड होता है, उनके लिए गर्दन हिलाकर गेंद को धक्का देना भी बड़ी चुनौती होता है। इस खेल से जुड़ने के बाद मैंने अपने आप में अजीब शक्ति देखी है, मेरा हौसला इतना बढ़ा कि इसके बाद मैंने अपनी मोटराइज्ड व्हीलचेयर पर पैरामोटरिंग की, स्कूबा डाइविंग की, स्विमिंग की और इतना ही नहीं पांच मैराथन में भी हिस्सा लिया।
हेलमेट नहीं पहनने की मिली इतनी बड़ी सजा
अजेय बताते हैं कि 16 साल तक उनकी लाइफ बिल्कुल नार्मल थी। वह झारखंड के गढ़वा कस्बे के रहने वाले हैं। पहली जुलाई 2006 को वह जैसे ही घर से बाइक पर घूमने निकले सामने से आ रहे ट्रक से टकरा गए। हेलमेट नहीं पहना था, तो हादसे में मेरी गर्दन टूट गई। दो साल तक मैं पूरी तरह से बेड पर पड़ा रहा। दो साल बाद दिल्ली के एक प्राइवेट अस्पताल में इलाज हुआ, तो वह किसी दूसरे की मदद से बैठने के काबिल हुआ। तीन साल यह सोचने में गुजर गए कि अब करना क्या है। फिर मन बनाया और पढ़ाई शुरू की जाए। साल 2015 में मैंने इसी हालत में अपनी ग्रेजुएशन कर ली। माउथ पेंटिंग की एक प्रतियोगिता में हिस्सा लेने चंडीगढ़ पहुंचा तो चंडीगढ़ स्पाइनल रिहैव सेंटर की सीईओ निकी कौर से मुलाकात हुई। उन्होंने नौकरी का ऑफर दिया तो नौकरी करने लगा, अब मुंह से मोबाइल और लैपटॉप चलता हूं। इस नौकरी ने मेरी जिंदगी बदल दी अब मैं आत्मनिर्भर हूं और यही मेरा परिवार है। दुख सिर्फ इस बात का है कि काश मैंने उस दिन हेलमेट पहना होता, तो मैं भी आज नार्मल लाइफ जी रहा होता।
मुश्किल समय में कभी न हारे हिम्मत
अजेय बताते हैं कि आज के युवा छोटी -छोटी बातों पर निराश हो जाते हैं और नशा आदि करने लग जाते हैं लेकिन यह कोई हल नहीं है। मेरा सिर्फ दिमाग और मुंह काम करता है, इसके अलावा सारा शरीर पैरालाइज्ड है। बावजूद इसके मैं जीना चाहता हूं, मेरा परिवार है जो मुझसे बेहद प्यार करता है। मैं उनसे बहुत प्यार करता हूं। दिक्कतें हैं लेकिन मैं उन्हें रोज हराता हूं। कभी हारता भी हूं तो फिर सोचता हूं एक दिन जरूर जीतूंगा। इसी उम्मीद से आगे बढ़ रहा हूं। दिक्कतों से हारे नहीं, उनका डटकर सामना करें।
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