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    चंडीगढ़ PGI में मृत मरीजों के नाम पर एक करोड़ 14 लाख का घोटाला, CBI ने दर्ज की एफआईआर

    Updated: Fri, 19 Dec 2025 08:43 AM (IST)

    चंडीगढ़ पीजीआई में गरीब मरीजों के इलाज के लिए आए फंड में 1.14 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया है। सीबीआई ने एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। आरोप है ...और पढ़ें

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    चंडीगढ़ पीजीआई फाइल फोटो

    जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। पीजीआइ में गरीब और गंभीर रूप से बीमार मरीजों के इलाज के लिए जारी फंड में 1.14 करोड़ रुपये से अधिक का घोटाला सामने आया था। इस मामले में सीबीआइ ने लंबी जांच के बाद वीरवार को एफआइआर दर्ज कर ली।

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    एफआइआर में कई कर्मचारियों के नाम शामिल हैं। पीजीआइ के प्राइवेट ग्रांट सेल में लंबे समय से घोटाला चल रहा था। वहां मरीजों के नाम पर फर्जी बिल जारी हो रहे थे। कुछ रकम तो ऐसे मरीजों के नाम पर भी निकाल ली गई जोकि मर चुके थे। कुछ का तो पीजीआइ में इलाज भी नहीं हुआ था, फिर भी उनके नाम पर कोई फायदा उठा गया।

    इस गड़बड़ी का पर्दाफाश सूचना के अधिकार के तहत मिली एक रिपोर्ट के आधार पर हुआ था। यह आरटीआइ संविदा कर्मियों की संयुक्त एक्शन कमेटी के अध्यक्ष अश्वनी कुमार मुंजाल की ओर से दायर की गई थी।

    इस रिपोर्ट में मृत मरीजों के नाम पर, फर्जी बिलों और जाली मेडिकल रिकॉर्ड के सहारे लाखों रुपये की हेराफेरी की बात सामने आई थी। जांच में यह भी सामने आया कि 88.12 लाख रुपये दवा विक्रेताओं को बिना किसी डाक्टर की वैध पर्ची के ट्रांसफर कर दिए गए थे।

    मृत मरीजों के नाम पर लाखों की निकासी

    सीबीआइ जांच के मुताबिक, तीन मृत मरीजों के नाम पर 27.66 लाख रुपये निकाले गए थे। एक मामले में तो मरीज की मौत के बाद भी 11 लाख रुपये से अधिक की राशि जारी कर दी गई। इसके अलावा, पीजीआइ के कुछ कर्मचारियों और उनके परिचितों को मरीजों के फर्जी रिश्तेदार दिखाकर 19 लाख रुपये की निकासी की गई। बाद में इन मामलों से जुड़े फाइल और साफ्टवेयर रिकॉर्ड भी गायब पाए गए थे।

    बिना इलाज, बिना पर्ची, फिर भी भुगतान

    जांच में सामने आया कि 50.11 लाख रुपये ऐसी दवाओं के लिए दिए गए जो कभी लिखी ही नहीं गईं। कई मरीजों ने पीजीआइ में इलाज ही नहीं कराया था। 6.96 लाख रुपये हेराफेरी वाले बिलों पर चुकाए गए। 62,328 रुपये एक ही इलाज के लिए दो अलग-अलग फाइलों से जारी किए गए, जिनमें से एक मरीज मृत था। यह सब सामने आने के बाद इस मामले की जांच सीबइआइ को सौंप दी गई थी।

    2017 से 2021 के बीच हुआ घोटाला

    यह घोटाला 2017 से 2021 के बीच हुआ था, लेकिन मामला अक्टूबर 2022 में सामने आया था। इसके बावजूद पीजीआइ ने कोई कार्रवाई नहीं की। काफी समय बाद पीजीआइ ने इस मामले में जांच समिति गठित की। कमेटी की पहली बैठक अक्टूबर 2023 में हुई। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आरोपितों में शामिल कई कर्मचारी जांच के दौरान भी पीजीआइ में काम करते रहे थे। पीजीआइ ने इस साल की शुरुआत में इस मामले की जांच सीबीआइ को सौंप दी थी।