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    'Daddy आई हैव रिकैप्चर्ड, आप...', पिता के लिए क्या थे कैप्टन विक्रम बत्रा के आखिरी शब्द?

    Updated: Sat, 26 Jul 2025 09:45 AM (IST)

    कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता ने बताया कि 17 जून 1999 को विक्रम ने दुश्मनों से 5140 चोटी को छुड़ाया था। उन्होंने बताया कि विक्रम बचपन से ही देश सेवा के लिए समर्पित थे और आर्मी में अफसर बनकर उन्होंने उनका सपना पूरा किया। विक्रम ने दुश्मनों को खदेड़ने और अधिक लड़ने की इच्छा जताई थी ये दिल मांगे मोर।

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    कैप्टन विक्रम बत्रा अपने माता और पिता के साथ lफाइल फोटो

    मोहित पांडेयl, चंडीगढ़। डैडी आइ हैव रिकैप्चर्ड...आप चिंता मत कीजिए, जो दुश्मनों ने हमारी 5,140 चोटी कब्जा कर रखी थी, उसको हमने फतेह कर लिया है। यह शब्द थे कैप्टन विक्रम बत्रा के, जो उन्होंने अपने पिता से आखिरी बातचीत के दौरान कहे थे।

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    17 जून, 1999 को पाकिस्तान के सात जवानों को ढेर कर अपनी चोटी को दुश्मनों के चंगुल से छुड़ाने के बाद बत्रा ने अपने माता-पिता से आखिरी बातचीत की थी। साल 1999 में लड़ा गया कारगिल युद्ध आज भी सबके जेहन में है। कैप्टन विक्रम बत्रा एक ऐसा नाम जो हमेशा के लिए अमर हो गया।

    5140 चोटी को किया था फतेह 

    कारगिल विजय दिवस के अवसर पर दैनिक जागरण ने कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता गिरधारी लाल बत्रा से विशेष बातचीत की। कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता ने बताया कि वह दिन मेरे जीवन का सबसे खुशी का दिन था, जब विक्की (विक्रम बत्रा) ने सात हजार फीट पर स्थित 5140 चोटी को फतेह किया।

    सुबह करीब सात बजे का समय था, जब उनका फोन आया था। उस वक्त मेरी छाती गर्व से चौड़ी हो गई थी। 26 साल बीत जाने के बावजूद विक्रम को भुलाना काफी मुश्किल है।

    आज भी वह पल याद आता है, जब उनका शव पालमपुर पहुंचा था, तो आप समझ सकते हैं कि एक जवान बेटे का जाना मां-बाप के लिए कैसा होता है। हम पांच-छह महीने बाद उस सदमे से उबर गए थे, क्योंकि हम समझ गए थे कि महान चीजें हासिल करने के लिए महान बलिदान भी देने पड़ते हैं।

    बचपन से ही था देश सेवा का जुनून

    विक्की में बचपन से अतिरिक्त गुण थे। बचपन से ही उनमें देश सेवा का जज्बा था। वह बचपन से मुझसे भगत सिंह, वीर शिवाजी और गुरु गोबिंद सिंह जी की कहानियां सुनते थे।

    विक्की केंद्रीय विद्यालय में पढ़ने के चलते वह आर्मी के अफसरों से काफी अधिक प्रभावित थे, जिसके चलते उन्होंने आर्मी में जाने का तय किया था। मैं भी आर्मी में अफसर बनना चाहता था। स्वास्थ्य कारणों से मेरा चयन नहीं हो पाया, लेकिन विक्रम ने आर्मी अफसर बनकर मेरा सपना पूरा कर दिया।

    ये दिल मांगे मोर...सक्सेस

    सिग्नल बत्रा के पिता ने बताया कि विक्की के अंदर किसी भी बात का डर नहीं था। उनका केवल एक ही लक्ष्य था कि हर हालत में जीत हासिल करनी है और दुश्मनों से धरती माता को छुड़ाना है। 5,140 की चोटी रणनीतिक रूप से बहुत महत्व रखती थी। ऐसे में उसे जीतना बहुत जरूरी था।

    उस चोटी को उन्होंने फतह किया और जज्बा देखिए कि दुश्मन के सात सैनिकों को ढेर करने के बाद, उन्होंने बंकर भी नष्ट किया। एक एंटी एयर क्राफ्ट गन को भी कब्जे में लिया। इतना कुछ करने के बाद भी उनका कहना था कि ये दिल मांगे मोर...। उनके कमांडर ने उनसे पूछा कि अरे विक्की यह स्लोगन तुम क्यों रख रहे हो, तो उन्होंने कहा कि मैं दुश्मनों को पूरी तरह से खदेड़ना चाहता हूं। अभी हमको और लड़ना है।