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    दोषी पाए जाने पर छोड़ना होता है पद, पंजाब में मंत्री अमन अरोड़ा को भी हो चुकी है सजा, फिर कैसे बच गई सदस्यता?

    Updated: Sat, 13 Sep 2025 08:54 AM (IST)

    चंडीगढ़ से जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 8 के अनुसार दोषी नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने का प्रावधान है। आप विधायक मनजिंदर सिंह लालपुरा को महिला को पीटने के मामले में 4 साल की सजा सुनाई गई। सदस्यता निलंबन के नियमों और सदस्यता बचाने के तरीकों पर भी प्रकाश डाला गया है।निचली अदालत से सज़ा मिलने पर ऊपरी अदालत में चुनौती देकर सदस्यता बचाई जा सकती है।

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    स्वास्थ्य मंत्री डॉ. बलबीर सिंह आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रधान अमन अरोड़ा (File Photo)

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 8 में दोषी नेताओं, सांसदों और विधायकों को चुनाव लड़ने से रोकने का प्रावधान है।

    खडूर साहिब से आप विधायक मनजिंदर सिंह लालपुरा को एक महिला को पीटने के मामले में स्थानीय कोर्ट ने 4 साल की सजा सुनाई। लालपुरा आप के तीसरे विधायक हैं जिन्हें कोर्ट ने सजा सुनाई हैं।

    इससे पहले कैबिनेट मंत्री व आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रधान अमन अरोड़ा को अपने जीजा के साथ मारपीट करने के लिए 2 साल की सजा, स्वास्थ्य मंत्री डॉ. बलबीर सिंह को खेतों में पानी लगाने को लेकर अपनी साली और उनके पति के साथ मारपीट करने के मामले में तीन साल की सजा सुनाई गई। हालांकि, विधानसभा से उनकी सदस्यता नहीं गई। जानिए क्यों?

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    निलंबन को लेकर यह हैं नियम

    सांसद या विधायक की सदस्यता के निलंबन को लेकर जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत नियम हैं। इसके तहत धारा (1) और (2) में प्रावधान है। जिसके मुताबिक कोई सांसद या विधायक दुष्कर्म, हत्या, भाषा या फिर धर्म के आधार पर सामाज में शत्रुता पैदा करता है या फिर संविधान को अपमानित करने के उद्देश्य से किसी भी आपराधिक षड्यंत्र में शामिल होता है या फिर किसी आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होता है, ऐसी स्थिति में उस सांसद या विधायक की सदस्यता को रद्द कर दिया जाएगा।

    इसके साथ ही धारा (3) के मुताबिक, यदि किसी सांसद या विधायक को किसी आपराधिक मामले में दोषी मानते हुए दो वर्ष से अधिक की सजा हो, तब भी उसकी सदस्यता को रद्द किया जा सकता है। साथ ही अगले छह वर्षों तक चुनाव लड़ने पर भी प्रतिबंध होता है।

    कैसे बचती है सदस्यता

    सांसद या विधायक उक्त मामलों में भी अपनी सदस्यता को बचा सकते हैं। यह तब हो सकता है, जब सजा किसी निचली अदालत से मिली है, तब मामले को उच्च या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। यदि हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट की ओर से सजा पर रोक लगती है, तब सदस्यता को बचाया जा सकता है।

    अमन अरोड़ा और डॉ. बलबीर के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ। निचली अदालत ने सजा सुनाई लेकिन उन्होंने ऊपरी अदालत में चुनौती देते हैं और उनकी सजा पर रोक लगा दी गई। जिसके कारण उनकी सदस्यता नहीं जाएगी।