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    मजीठिया ने अपनी गिरफ्तारी व रिमांड को हाई कोर्ट में दी चुनौती, राजनीतिक प्रतिशोध का लगाया आरोप

    Updated: Tue, 01 Jul 2025 10:12 PM (IST)

    चंडीगढ़ बिक्रम सिंह मजीठिया ने अपनी गिरफ्तारी को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में चुनौती दी है इसे राजनीतिक प्रतिशोध बताया है। उन्होंने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज FIR को राजनीति से प्रेरित बताया और अवैध हिरासत का आरोप लगाया। मजीठिया ने रिमांड आवेदन को भी अवैध बताते हुए मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की बात कही है। उच्च न्यायालय से रिमांड आदेश रद्द करने की अपील की गई है।

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    शिअद नेता बिक्रम मजीठिया की फाइल फोटो

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पूर्व कैबिनेट मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया ने उनके खिलाफ दर्ज एफआइआर और गिरफ्तारी को अवैध और राजनीतिक प्रतिशोध की उपज बताते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। मजीठिया की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि उनकी गिरफ्तारी और रिमांड पूरी तरह असंवैधानिक, कानून की प्रक्रियाओं के विरुद्ध व मौलिक अधिकारों का हनन है।

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    याचिका में मजीठिया ने कहा कि 25 जून को मोहाली स्थित विजिलेंस ब्यूरो थाने में उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में दर्ज की गई एफआईआर राजनीति से प्रेरित और वर्तमान सत्ताधारी दल द्वारा उन्हें बदनाम करने और प्रताड़ित करने की साजिश है क्योंकि वह सरकार के मुखर आलोचक और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी रहे हैं।

    याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि उन्हें 25 जून की सुबह नौ बजे उनके आवास से हिरासत में ले लिया गया, जबकि औपचारिक गिरफ्तारी 11:20 बजे दिखाई गई। इस दो घंटे की कथित अवैध हिरासत को संविधान के अनुच्छेद 22(2) और भारतीय न्याय संहिता की धारा 187 का स्पष्ट उल्लंघन बताया गया है।

    मजीठिया ने रिमांड आवेदन को भी अवैध करार देते हुए कहा कि इसमें किसी ठोस या आवश्यक जांच का आधार नहीं दिया गया। याचिका में लिखा गया है कि जांच एजेंसी ने केवल अनुमान और अटकलों पर आधारित बातें जैसे विदेशी संबंध, दस्तावेजों का सामना आदि आधार बनाकर रिमांड मांगा।

    मजीठिया ने आरोप लगाया कि जांच एजेंसी का इरादा केवल उन्हें दबाव में लाकर कोई स्वीकारोक्ति दिलवाने का था जो अनुच्छेद 20(3) के तहत प्राप्त संरक्षणों का उल्लंघन है। साथ ही 26 जून को प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी द्वारा दिया गया रिमांड आदेश न केवल एकतरफा और मनमाना है, बल्कि इसमें अदालत द्वारा न्यायिक सोच का कोई संकेत नहीं है।

    याचिका में इस बात पर भी बल दिया गया कि सर्वोच्च न्यायालय ने 4 मार्च को दिए गए विस्तृत आदेश में राज्य सरकार की याचिका खारिज कर मजीठिया की पुलिस हिरासत से इन्कार किया था और केवल जांच में सहयोग का निर्देश दिया था, जिसे उन्होंने पूरा किया। इसके बावजूद राज्य ने तथ्यों को छुपाकर फिर से पुलिस रिमांड ले लिया।

    याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि इस पूरे घटनाक्रम में न केवल रिमांड आदेश विधिक त्रुटियों से ग्रस्त है, बल्कि यह उनके मौलिक अधिकारों अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 20 और 21 (स्वतंत्रता और जीवन का अधिकार) का घोर उल्लंघन है।

    याचिका में उच्च न्यायालय से अपील की गई है कि वह न केवल इस अवैध रिमांड आदेश को रद्द करे, बल्कि भविष्य में इस तरह की प्रक्रियाओं के दुरुपयोग को रोकने हेतु उचित दिशा निर्देश भी जारी करे। यह याचिका अभी हाई कोर्ट की रजिस्ट्री में दायर की गई है और इस आने वाले दिनों में सुनवाई की संभावना है।