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    नील गाय: बचाव का नही सूझ रहा उपाय

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    Updated: Fri, 13 Apr 2012 10:42 PM (IST)

    (संतकबीर नगर) :

    किसानों के खेत में खड़ी फसलों को नीलगायें रौंद डाल रही है। विशेषकर दोआबा क्षेत्र के किसान इन दिनों दिन भर जहां आग के कहर को लेकर दहशतजदा रहते हैं, वहीं शाम ढलने के बाद नीलगायों की धमाचौकड़ी ने उनकी नींद हराम कर दी है।

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    जिले के दक्षिणांचल में घाघरा व कुआनो नदियों के बीच स्थित द्वाबा क्षेत्र एवं मेंहदावल के पूर्वी कछार में नील गायों के एक-दो नहीं वरन सैकड़ों झुण्ड सक्रिय है जिनसे फसलों की सुरक्षा करना किसानों के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रही है। खलीलाबाद, नाथनगर, पौली, हैसर, सेमरियावां, बघौली, सांथा एवं मेंहदावल विकास खण्ड क्षेत्रों में गेहूं की औसतन पांच से चार से पांच एकड़ फसल हर रोज नील गायें बर्बाद कर रही है। अभी पिछले खरीफ अभियान में मेंहदावल ब्लाक क्षेत्र में दो दर्जन से अधिक बार नील गायों के झुण्ड द्वारा व्यापक पैमाने पर फसलों को बर्बाद करने की घटनाएं सामने आयी जिससे क्षुब्ध क्षेत्रीय किसानों ने तहसील मुख्यालय के समक्ष धरना-प्रदर्शन भी किया था, लेकिन उनकी इस समस्या के प्रति न तो स्थानीय प्रशासन की नींद टूटी और न ही वन विभाग ने किसानों को जंगली पशुओं से मुक्ति दिलाने में कोई दिलचस्पी ली। खेती-बारी के लिए अहम समस्या बनती जा रहीं नील गायों की धमाचौकड़ी कस्बाई इलाके की तरफ भी शुरू हो गयी है। खलीलाबाद से लेकर नगर पंचायत मगहर तक रेल की पटरियों के किनारे नील गायों का झुण्ड हमेशा जमा रहता है। यहां की सार्वजनिक जमीनों पर हर साल पौध रोपण किये जाते है, लेकिन पनपने से पहले ही पशु अधिकांश पौधों को चट कर जाते है। किसानों की माने तो इस समस्या से जिले के लगभग सभी आला-अफसर परिचित है, लेकिन किसी को इसका हल ढूंढने के लिए फुर्सत तक नहीं है।

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