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    पंजाब में दिवाली के दिन मनाया जाता है 'बंदी छोड़ दिवस', मुगलों से जुड़ा है इतिहास; जानिए क्‍या है महत्‍व

    By Himani SharmaEdited By: Himani Sharma
    Updated: Sat, 11 Nov 2023 02:15 PM (IST)

    Punjab Divali 2023 पंजाब में सिख समुदाय दिवाली के दिन बंदी छोड़ दिवस (Bandi Chhor Divas 2023) मनाते हैं। इस दिन सिख संगत की ओर से धार्मिक कार्यक्रम किए जाते हैं। इसका इतिहास मुगलों से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि इस दिन जहांगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब की रिहाई की थी। आइए इस लेख के जरिए इस दिवस से जुड़ी कुछ महत्‍वपूर्ण बातें जानते हैं।

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    दिवाली के दिन मनाया जाता है बंदी छोड़ दिवस

    जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। दिवाली भाई-चारे का एक खूबसूरत पर्व है। इसे हिंदू और सिख धर्म में बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। वहीं सिख धर्म में यह पर्व बंदी छोड़ दिवस (Bandi Chhor Divas 2023) के नाम से जाना जाता है। इसके पीछे का इतिहास मुगलों से जुड़ा हुआ है। आइए इस लेख के जरिए कुछ अहम बातों को जाना जाए।

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    बंदी छोड़ दिवस का इतिहास क्या है?

    सिख धर्म में दिपावली का पर्व बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार सिखों के तीन त्योहारों में से एक है, जिनमें पहला माघी, दूसरा बैसाखी और तीसरा बंदी छोड़ दिवस। इस त्‍योहार का इतिहास सिखों के छठे गुरू हरगोबिंद साहिब (Guru Hargobind Sahib) से जुड़ा है। कहा जाता है कि इस दिन जहांगीर ने हरगोबिंद साहिब की रिहाई की थी। मुगलों ने मध्‍य प्रदेश के ग्‍वालियर के किले को अपने कब्‍जे में कर किले को जेल में तब्‍दील कर दिया था।

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    इस जेल में मुगल सल्‍तनत के लिए खतरा माने जाने वाले लोगों को कैद करके रखा जाता था। जहांगीर ने इस किले में 52 राजाओं सहित सिखों के छठे गुरू हरगोबिंद साहिब को बंद करके रखा था। बाद में जब मुगल बादशाह को अपनी गलती का एहसास हुआ तो उन्‍होंने गुरू हरगोबिंद साहिब को जेल से रिहा करने का एलान किया था।

    वहीं हरगोबिंद साहिब ने जहांगीर की इस बात पर एतराज जताते हुए कहा था कि वह इस जेल से अकेले नहीं जाएंगे, बल्कि 52 राजाओं को साथ लेकर ही जाएंगे। इसके बाद गुरू साहिब के लिए 52 कली का चोला (वस्त्र) सिलवाया गया। 52 राजा जिसकी एक-एक कली पकड़कर किले से बाहर आ गए। इस तरह उन्हें कैद से मुक्ति मिल सकी थी।

    दीपावली के दिन क्यों मनाया जाता है बंदी छोड़ दिवस?

    दिवाली (Diwali 2023) वाले दिन ही गुरू साहिब का आगमन अमृतसर में हुआ था। इसके बाद आतिशबाजी के साथ-साथ युद्ध कौशल दिखाया गया था। पूरे शहर को दीयों की रोशनी से जगमग कर दिया गया था। इसके बाद से ही दीपावली को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

    बंदी छोड़ दिवस को सिख कैसे मनाते हैं?

    इस दिन सिख संगत की ओर से धार्मिक कार्यक्रम किए जाते हैं। समागम में कीर्तन और कथा करवाई जाती हैं। साथ ही बड़े स्‍तर पर आतिशबाजी की जाती है। गुरुद्वारों में दीप जलाए जाते हैं। इस मौके पर श्रद्धालु गुरुद्वारे में नतमस्‍तक होने के लिए पहुंचते हैं।

    कब शुरू हुआ बंदी छोड़ दिवस?

    बंदी छोड़ दिवस सिख त्योहार है, जोकि दीपावली के दिन पड़ता है। दीपावली त्योहार सिख समुदाय द्वारा ऐतिहासिक रूप से मनाया जाता है। गुरु अमर दास जी ने इसे सिख उत्सव माना है। 20वीं सदी से सिख धार्मिक नेताओं द्वारा दीपावली को बंदी छोड़ दिवस कहा जाने लगा।

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