चंडीगढ़ में बच्चों की सुरक्षा को लेकर अवेयरनेस कैंप, स्कूल शिक्षकों की पुलिस वेरीफिकेशन करना जरूरी
चंडीगढ़ कमीशन फार प्रोटेक्शन आफ चाइल्ड राइट्स (सीसीपीसीआर) की तरफ से (जुवेनाइनल जस्टिस) जेजे और पोक्सो एक्ट पर अवेयरनेस कैंप का आयोजन किया गया। डॉ. केपी सिंह ने कहा कि पोक्सो एक्ट के प्रति स्टूडेंट्स तभी जागरूक होंगे जब प्रिंसिपल और हेडमास्टर उसकी पूरी जानकारी रखेंगे।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। स्टूडेंट्स स्कूल कैंपस में प्रिंसिपल और हेडमास्टर की जिम्मेदारी होती है। स्टूडेंट्स की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि स्कूल स्टाफ की पुलिस वेरीफिकेशन हो। यह वेरीफिकेशन स्कूल का हेडमास्टर और प्रिंसिपल आसानी से करवा सकता है और यह काम उन्हें प्राथमिकता के आधार पर करना चाहिए। यह कहना है सेवानिवृत आइपीएस डीजीपी डा. केपी सिंह का।
चंडीगढ़ कमीशन फार प्रोटेक्शन आफ चाइल्ड राइट्स (सीसीपीसीआर) की तरफ से (जुवेनाइनल जस्टिस) जेजे और पोक्सो एक्ट पर अवेयरनेस कैंप का आयोजन किया गया। जागरूकता शिविर में चंडीगढ़ पुलिस से विभिन्न एसएचओ, इंस्पेक्टर और चाइल्ड यूनिट से 181 हेल्पलाइन, चाइल्ड वेलफेयर कमेटी, डिस्ट्रिक्ट प्रोटेक्शन यूनिट (डीसीपीयू,) 1098 बाल विकास हेल्पलाइन के अधिकारी और कर्मचारी मौजूद रहे।
डॉ. केपी सिंह ने कहा कि पोक्सो एक्ट के प्रति स्टूडेंट्स तभी जागरूक होंगे जब प्रिंसिपल और हेडमास्टर उसकी पूरी जानकारी रखेंगे। प्रिंसिपल और हेडमास्टर को प्रेरित और जागरूक करने का काम सीसीपीसीआर कर सकता है। बच्चा पांच से छह घंटे तक स्कूल में रहता है जिसमें वह अपने हमउम्र बच्चों के अलावा स्कूल स्टाफ के संपर्क में होता है। वह स्टाफ क्लास टीचर से लेकर मिड डे मील परोसने वाला भी हो सकता है और गेट पर खड़ा एक गेट कीपर भी। यदि स्टाफ अच्छा होगा तो बच्चा खुद की बात को स्कूल में आकर जरूर सांझा करता है और वह जानकारी जितनी जल्दी चाइल्ड हेल्पलाइन पर जाएगी बच्चा उतनी आसानी से बच सकता है।
हर थाने में एसपीजीयू होना अनिवार्य
डॉ. केपी सिंह ने कहा कि हर थाने में स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप यूनिट (एसपीजीयू) होना अनिवार्य है। थाने की इस यूनिट में एक वरिष्ठ महिला अधिकारी या कर्मचारी होनी भी जरूरी है। क्योंकि वह बच्चों को ज्यादा बेहतर तरीके से समझ सकती है। किसी भी बच्चे से यदि कोई अपराध होता है तो उससे पुलिस कभी भी वर्दी में पूछताछ नहीं कर सकती। इसके साथ ही 18 साल से छोटे बच्चे के साथ अरेस्ट, एफआइआर, चार्ज शीट, ट्रायल जैसे किसी भी शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। बच्चे का मेडिकल यदि पुलिस करवा रही है तो मेडिकल अधिकारी कभी भी एफआइआर या फिर चार्जशीट जैसी किसी भी चीज की मांग नहीं कर सकता। यदि पुलिस वाले बच्चे पर एफआइआर जैसी कोई चीज जारी करते हैं तो सबसे पहले पुलिस वाले पर ही कार्रवाई हो सकती है। 18 साल से पहले यदि बच्चा किसी भी प्रकार के अपराध में शामिल है तो वह सजा पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी पाने से लेकर हर स्वतंत्र भारतीय वाले हक पा सकता है।