ऑटो चालक की तीन बेटियों ने बनाया मुकाम, पिता के संघर्ष को दिला रहीं सम्मान
सतबंत सिंह ऑटो चालक हैं, लेकिन आज उनकी पहचान एक ऐसे पिता के तौर पर है, जिसने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद तीनों बेटियों को एक मुकाम तक पहुंचाया।
चंडीगढ़ [विकास शर्मा]। सरदार सरबंत सिंह कहने को तो ऑटो चालक हैं, लेकिन आज उनकी पहचान एक ऐसे पिता के तौर पर है, जिसने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद तीनों बेटियों को एक मुकाम तक पहुंचाया। आज उनकी तीनों बेटियों में से एक इंटरनेशन हॉकी प्लेयर है तो दो में से एक नेशनल लेवल की हॉकी खिलाड़ी और दूसरी रेसलर है। उन्होंने बेटियों को बोझ नहीं समझा और उन्हें काबिल बनाकर देशवासियों के सामने मिसाल पेश की है। आर्थिक तौर पर उतना सक्षम न होने के बावजूद आज सरबंत सिंह की बड़ी बेटी राजविंदर कौर हॉकी की इंटरनेशनल खिलाड़ी हैं। वहीं मनदीप कौर हॉकी की नेशनल खिलाड़ी हैं और वीरपाल कौर नेशनल स्तर की रेसलर हैं।
दो बेटियां अभी इंडिया कैंप में
तरनतारन के मुगलचक्क पनमां गांव में रहने वाले सरदार सरबंत सिंह की दो बेटियां अभी इंडिया कैंप में कोचिंग ले रही हैं। राजविंदर कौर मौजूदा समय में बेंगलरू में चल रहे हॉकी सीनियर इंडिया कैंप में हैं। 20 वर्षीय राजविंदर कौर इससे पहले बैंकाक और थाईलैंड में आयोजित जूनियर एशिया कप में खेल चुकी हैं और वह अभी टीम इंडिया में आने की तैयारी कर रही हैं। वहीं, वीरपाल कौर लखनऊ में खेलो इंडिया कैंप में रेसलिंग की कोचिंग ले रही हैं। वीरपाल साल 2017 में जूनियर नेशनल में गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं। खेलो इंडिया में भी वीरपाल ने मेडल जीता था। वहीं मनदीप फिलहाल चोटिल हैं और डीएवी बठिंडा कॉलेज में हैं।
बेटियों पर पिता को नाज
सरदार सरबंत सिंह का कहना है कि उन्होंने सिर्फ बेटियों की जिद के चलते उन्हें खेलने दिया, उन्हें नहीं पता था कि एक दिन उनकी बेटी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने जाएंगी। आज बेटियां इंटरनेशनल और नेशनल स्तर पर खेलती हैं, बड़े-बड़े लोग उनकी प्रशंसा करते हैं और उन्हें सम्मानित करते हैं। यह सब देखकर खुशी होती है कि मेरी बेटियां आज देश के लिए खेलती हैं और मेडल जीतकर तिरंगे की शान बढ़ाती हैं।
दिखाया हुनर तो मिली मदद
मां बलविंदर कौर ने बताया कि घर के हालात ठीक नहीं थे, लेकिन हमने बेटियों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। बेटियों को घर से 10 किमी. दूर श्री गुरु अर्जन देव हॉकी एकेडमी में रोज ले जाकर हॉकी की कोचिंग दिलाई। कोच शरणजीत सिंह ने उनकी बेटियों को काबिल बनाया, तो पूर्व ओलंपियन दलजीत ढिल्लों ने हर स्तर पर उनके परिवार की मदद की। डीएवी कॉलेज बठिंडा के हॉकी कोच राजवंत सिंह ने भी उनकी बेटियों को प्रोत्साहित किया।