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    पूरे पंजाब को मंडी में तब्‍दील करना चाहती है अमरिंदर सरकार, लेकिन कानून को लेकर उलझी

    By Sunil Kumar JhaEdited By:
    Updated: Sat, 26 Sep 2020 07:22 AM (IST)

    पंजाब सरकार केंद्र सरकार के कृषि विधेयकों की काट के लिए नया दांव खेलने की काेशिश में हैं। कप्‍टन अमरिंदर सिंह सरकार पूूरे पंजाब काे मंडी में तब्‍दील क ...और पढ़ें

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    पंजाब के मुख्‍यमंत्री कैप्‍टन अमरिंदर सिंह। ( फाइल फोटो )

    चंडीगढ़, [इन्द्रप्रीत सिंह]। केंद्र सरकार के कृषि विधेयकों की काट के लिए बड़ा कदम उठाने की तैयारी कर रही है। कैप्‍टन अमरिंदर सिंह सरकार कृषि विधेयकों को लागू न करने के लिए पूरे राज्य को एक मंडी घोषित करना चाहती है लेकिन वह कानून को लेकर उलझ गई है। इस पर आज भी कोई फैसला नहीं हो सका है। ऐसा न हो पाने के पीछे जहां राजनीतिक कारण सामने आ रहे हैं वहीं तकनीकी और कानूनी अड़चनें भी सामने आ रही हैं।

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    राजनीतिक कारण के साथ-साथ तकनीकी और कानूनी अड़चनें भी

    उधर, एनडीए सरकार से बाहर आने के बाद शिरोमणि अकाली दल किसानों के बीच अपनी खोई हुई साख को बहाल करने की कोश‍िश में है। शिअद के लिए लगातार कैप्टन सरकार पर यह दबाव बना रहा है कि वह नए कृषि विधेयकों को पंजाब में लागू होने से रोकने के लिए पूरे राज्य को एक मंडी घोषित कर दे। ऐसे में जब मंडी से बाहर कोई ट्रेड एरिया ही नहीं रहेगा तो प्राइवेट कंपनियां जहां से भी खरीद करेंगी , उन्हें पूरा सरकार को पूरा टैक्स देना होगा।

    नए विधेयक में कहा गया है कि मंडी की चार दीवारी (जो एरिया सरकार ने अनाज आदि की खरीद के लिए यार्ड या सब यार्ड घोषित किया हुआ है) से बाहर कोई भी खरीद करने पर कोई टैक्स, फीस आदि नहीं लगेगी। पंजाब सरकार के एक उच्च पदस्थ अधिकारी का कहना है कि पूरे राज्‍य को मंडी घोषित करना यह इतना आसान नहीं है। इस अधिकारी ने कहा, हमारी जितनी भी बार इस मुद्दे को लेकर चर्चा हुई है उसमें यही आया है कि ऐसा करना भारत सरकार के साथ सीधा पंगा लेना होगा।

    केंद्र सरकार के पास  समवर्ती सूची पर कानून  बनाने के अधिकर से भी उलझन में पंजाब सरकार

    केंद्र सरकार के पास यह अधिकार है कि समवर्ती सूची के विषयों पर अगर वह कानून बनाती है और उसी पर राज्य सरकार बनाती है तो राज्य सरकार का कानून ओवररूल हो जाएगा। पंजाब सरकार को भी यह आशंका है कि पूरे राज्य को मंडी घोषित करने पर कहीं केंद्र सरकार इस तरह का कदम न उठा ले। इसके अलावा एक बीच का रास्ता निकालते हुुए इस बात पर भी विचार किया जा रहा है कि पूरे राज्य को मंडी बनाने की बजाए राज्य के सभी शैलर, गोदामों, कोल्ड स्टोर आदि को मंडी यार्ड घोषित कर दिया जाए ताकि प्राइवेट कंपनियों को ट्रेड एरिया और खरीदे हुुए सामान को रखने के लिए जगह न मिले। इस  कारण उन्हें राज्‍य सरकार द्वारा घोषित मंडियों से अनाज खरीदना और स्टोर करना पड़े , जिससे सरकार को टैक्स आदि का नुकसान न हो।

    मुख्यमंत्री कार्यालय के सूत्रों से जानकारी मिली है कि इस मामले में सरकार जल्द ही कैबिनेट की मीटिंग बुलाने जा रही है ताकि इस मामले पर आम सहमति बनाई जा सके। चूंकि नए खेती विधेयकों पर अभी राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर नहीं किए हैं, इसलिए राज्य सरकार भी अभी जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं करना चाहती है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब के एडवोकेट जनरल अतुल नंदा को पूरे राज्य को मंडी घोषित किए जाने के मामले में सभी कानूनी पहलुओं पर विचार करने को कहा है।

    क्यों बनाना चाहती है सरकार पूरे प्रदेश को मंडी

    एपीएमसी एक्ट 1961 के तहत सरकार मंडियों का खरीद निर्धारित करती है। इस निर्धारित क्षेत्र के अंदर ही खरीद को मान्यता मिलती है। मंडी से बाहर खरीद को गैर कानूनी माना जाता है। ऐसा टैक्स सिस्टम को बनाए रखने, किसानों को उनकी फसल का मूल्य मिलने की निगरानी रखने आदि के लिए किया जाता है। नए कृषि विधेयक में कहा गया है कि मंडी की चारदीवारी के बाहर यदि कोई भी व्यापारी,कंपनी खरीद करता है तो उसे कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा।

    पंजाब में अनाज की खरीद पर तीन-तीन फीसदी मंडी फीस और रूरल डेवलपमेंट फंड लगा हुआ है। यह राशि राज्य सरकार के खजाने में न जाकर मंडी बोर्ड और रूरल डेवलपमेंट बोर्ड के पास रहती है। मंडी बोर्ड मंडियों का रखरखाव और नई मंडियों का निर्माण इसी राशि से करता है जबकि रूरल डेवलपमेंट फंड राज्य में लिंक सड़कों के निर्माण में किया जाता है। इसके अलावा ढ़ाई फीसदी कमीशन एजेंटों को आढ़त के रूप में मिलता है। ऐसे में यदि सरकार पूरे राज्य को ही मंडी बना देती है तो कहीं से कोई भी खरीद करेगा तो उसे सरकार को पूरा टैक्स अदा करना होगा।

    किसान क्यों कर रहे हैं विधेयकों का विरोध

    किसानों का मुख्यत: विरोध 'द फारमर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कार्म्स 2020' को लेकर है। उन्हें लग रहा है कि यह मंडियों को तोड़ देगा और किसानों को कंपनियों पर आश्रित होना पड़ेगा और इससे वे उन्‍हें न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं देंगी। गेहूं और धान के अलावा जिस तरह से अन्य फसलों को बाजार के सहारे छोड़ा गया है, अगर ऐसा ही गेहूं और धान के साथ हुआ तो उन्हें नुकसान होगा। इसीलिए वह केंद्र सरकार से मांग कर रहे हैं कि बेशक सरकार ये तीन विधेयक ले आए लेकिन इसके साथ एक चौथा विधेयक भी लाए कि फसल चाहे मंडी से खरीदी जाए चाहे बाहर से, उन्हें एमएसपी पर खरीदना होगा।

    केंद्र सरकार द्वारा ऐसा न किए जाने से किसान नाराज हैं। पहली बार है कि केंद्र के विधेयकों के खिलाफ ग्राम सभाओं में प्रस्ताव पारित हो रहे हैं। इसके अलावा राज्य सरकार इन तीन विधेयकों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने पर भी विचार कर रही है। वित्तमंत्री मनप्रीत बादल इसके संकेत दे चुके हैं।