पंजाब में आढ़तियों के विरोध से सिरे नहीं चढ़ी कृषि विविधता की योजना, कांट्रैक्ट फार्मिंग पर भी असर
पंजाब में कृषि विविधता योजना सिरे नहीं चढ़ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण आढ़तियों का विरोध है। इसका असर पंजाब में कृषि क्षेत्र में विविधता प्रभावित हो रही है। कांट्रैक्ट फार्मिंग के लिा प्राइस तय करने के नियम भी तय नहीं किए गए हैं।
चंडीगढ़, [इन्द्रप्रीत सिंह]। पंजाब में कृषि विविधता योजना आढ़तियों के विराेध के कारण सिरे नहीं चढ़ पा रही है। इससे राज्य की खेती को नुकसान हो रहा है। कांट्रैक्ट फार्मिग एक्ट-2013 की तरह प्रदेश सरकार पंजाब प्राइस स्टेबलाइजेशन फंड एक्ट के नियम कायदे बनाना भी भूल गई है। इस कारण राज्य में धान व गेहूं के अधीन रकबे को कम करके दूसरी फसलों को लगाने की योजना सिरे नहीं चढ़ रही।
सितंबर, 2018 में कैप्टन सरकार यह बिल लाई थी। इसमें कहा गया था कि मंडियों में बिकने वाले अनाज पर लगे टैक्सों का कुछ हिस्सा इस फंड के लिए रखा जाएगा, ताकि धान व गेहूं के अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बिकने वाली अन्य फसलों की बाजारी कीमत किसानों को कम मिल रही हो, तो सरकार इस फंड से उस गैप को पूरा कर दे।
कांट्रैक्ट फार्मिग की तरह प्राइस स्टेबलाइजेशन फंड एक्ट के नियम बनाना भी भूली सरकार
यह फंड केंद्र सरकार की भावांतर योजना का ही हिस्सा था, जिसमें से राशि लेने के लिए यह एक्ट लाया जाना जरूरी था, लेकिन आढ़तियों ने उनको मिलने वाली कमीशन से पैसे काटने का विरोध किया। इस वजह से अभी तक यह एक्ट लागू नहीं हो पाया है।कीमत संतुलन फंडसरकार ने सभी फसलों की कीमत को स्थिर करने के लिए यह फंड कायम किया है।
गेहूं-धान के फसल चक्र से बाहर निकालने की कवायद अधूरी, घटने के बजाय बढ़ रहा रकबा
केंद्र सरकार ने इस फंड को स्थापित करने के लिए कहा है और प्रावधान किया है कि राज्य सरकार इस फंड में जितनी राशि देगी, उतनी राशि केंद्र भी देगा। इस फंड को बाजारी कीमत व न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के बीच के अंतर को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए दाल की कीमत मंडी में 4000 रुपये प्रति ¨क्वटल है, लेकिन केंद्र सरकार ने दाल का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5700 निर्धारित किया है। बाजारी कीमत और एमएसपी का अंतर 1700 रुपये बनता है, जो सीधा किसानों के खाते में चला जाएगा।
दाल, मक्की समेत कई ऐसी फसलें हैं, जो पूरी तरह से व्यापारियों की ओर से की जाने वाली खरीद पर ही निर्भर हैं।इस तरह जुटाया जाना है फंडमंडी में बिकने वाली फसलों पर तीन-तीन फीसद देहाती विकास फंड और मार्केट फीस लगती है। इसके अलावा 2.5 फीसद आढ़तियों को फसल खरीद करवाने पर कमीशन के रूप में मिलता है। पंजाब सरकार ने जो बिल पास किए, उनमें इन तीनों फीस का कुछ हिस्सा लेकर इस फंड में डालने का प्रविधान किया है। जितना यह फंड इकट्ठा होगा, उतना ही केंद्र सरकार से मिल जाएगा।
नियम लागू हों, तो किसानों को होगा लाभइस एक्ट के नियम न बनाने के कारण न तो केंद्र सरकार से पैसा मिला और न ही फसल विविधिकरण का प्रसार हो सका। आज भी पंजाब में धान और गेहूं का रकबा बढ़ रहा है। इसका नुकसान यह हो रहा है कि अब केंद्र सरकार ने धान और गेहूं की खरीद में आनाकानी शुरू कर दी है।
इन दोनों फसलों का कुछ हिस्सा प्राइवेट व्यापारी भी खरीदें, इसके लिए तीन कृषि कानून लाए गए, जिसका पिछले साढ़े चार महीनों से विरोध हो रहा है। अगर यह कानून लागू हो जाता और सरकार धान व गेहूं के अलावा तिलहन और दलहन को बढ़ावा देने पर इसे लागू करती तो निश्चित रूप से पंजाब के किसानों को लाभ होता। यही नहीं, पंजाब का भूजल, बिजली सब्सिडी आदि की भी भारी मात्रा में बचत होती।
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