'गोद लिए बच्चे का हक सगे संतान के बराबर', 19 साल पुराने विवाद का हाईकोर्ट ने किया अंत; ब्याज सहित पेंशन देने का आदेश
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने 19 साल पुराने विवाद को खत्म करते हुए पीएसईबी को मृतक कर्मचारी के दत्तक पुत्र को पारिवारिक पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ 9% ब् ...और पढ़ें
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19 साल पुराने विवाद का अंत: हाईकोर्ट ने पीएसईबी को ब्याज सहित पेंशन देने का आदेश।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने लगभग 19 वर्षों से चले आ रहे एक कानूनी विवाद को समाप्त करते हुए पंजाब राज्य विद्युत बोर्ड (पीएसईबी) को निर्देश दिया है कि वह मृतक कर्मचारी के दत्तक पुत्र को पारिवारिक पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित जारी करे। अदालत ने स्पष्ट किया कि गोद लिए गए पुत्र के अधिकार जैविक पुत्र के समान होते हैं और केवल दत्तक होने के आधार पर उसे वैध अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।
जस्टिस सुदीप्ति शर्मा ने पीएसईबी और अन्य की ओर से दायर दूसरी अपील को खारिज करते हुए निचली अदालत और पहली अपीलीय अदालत के एकरूप निष्कर्षों को बरकरार रखा। अदालत ने कहा कि 2006 में दायर की गई दूसरी अपील का फैसला आने में करीब दो दशक लग गए, जिसके चलते जगन नाथ को लंबे समय तक अपने वैध हकों से वंचित रहना पड़ा। यह स्थिति न्याय के मूल सिद्धांतों के विपरीत है।
मामला जोखू राम से जुड़ा है, जिन्होंने लगभग 30 वर्षों तक पीएसईबी में चौकीदार के रूप में सेवा की थी और अविवाहित रहते हुए उनका निधन हो गया था। जगन नाथ ने दावा किया था कि 1990 में उनके जैविक माता-पिता की सहमति से जोखू राम ने उन्हें विधिवत गोद लिया था। इसके समर्थन में 26 दिसंबर 1990 का पंजीकृत दत्तक ग्रहण विलेख और अगले दिन की पुष्टि प्रस्तुत की गई थी।
पीएसईबी ने दत्तक ग्रहण की वैधता को चुनौती दी थी, लेकिन हाईकोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया। अदालत ने रिकॉर्ड के आधार पर माना कि दत्तक ग्रहण पूरी तरह वैध था। जैविक माता-पिता ने गवाही देकर दत्तक ग्रहण की पुष्टि की थी और दस्तावेजों से यह भी स्पष्ट था कि जोखू राम ने जगन नाथ को अपना पुत्र मानते हुए नामांकन भी किया था।
गोद लेने के समय उम्र को लेकर उठे सवाल पर अदालत ने कहा कि दत्तक ग्रहण दस्तावेज में जगन नाथ की उम्र लगभग 14 वर्ष दर्ज है, जो कानूनन स्वीकार्य है। इसके अलावा, पीएसईबी पहले ही जगन नाथ को मृतक कर्मचारी का पुत्र और कानूनी उत्तराधिकारी मानते हुए बकाया वेतन व अन्य राशियां जारी कर चुका था।
देरी पर कड़ी टिप्पणी करते हुए जस्टिस शर्मा ने कहा कि राज्य और उसके संस्थानों द्वारा की गई लंबी मुकदमेबाजी के कारण एक व्यक्ति को वर्षों तक अपने हक के लिए भटकना पड़ा। अंततः अपील खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि दो महीने के भीतर जगन नाथ को सभी देय लाभ, जिनमें पारिवारिक पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति देयताएं शामिल हैं, 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित जारी की जाएं। दोनों पक्षों को अपना-अपना खर्च स्वयं वहन करना होगा।

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