चंडीगढ़ में सीएचबी अफसरों पर 13 साल चले मुकदमे का 1000 रुपये जुर्माने के साथ अंत
चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड के दो अधिकारियों को 13 साल पुराने हाउस ट्रेसपास मामले में जिला अदालत ने राहत दी। मनीमाजरा के विनोद बंसल ने अधिकारियों पर जबरन घर में घुसने और पत्नी को धमकाने का आरोप लगाया था। निचली अदालत ने सजा सुनाई थी जिसके खिलाफ अधिकारियों ने अपील की थी। अदालत ने जुर्माना लगाकर उन्हें रिहा कर दिया।

रवि अटवाल, चंडीगढ़। चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड (सीएचबी) के दो अधिकारियों पर चले 13 साल तक चले एक आपराधिक मुकदमे का आखिरकार अंत हो गया। जिला अदालत ने इन अधिकारियों को 1000-1000 रुपये जुर्माना लगाकर छोड़ दिया। वर्ष 2012 में मनीमाजरा के रहने वाले विनोद बंसल ने सीएचबी के तत्कालीन एसडीई-स्टोर कैलाश गर्ग और तत्कालीन एई किरपाल सिंह के खिलाफ हाउस ट्रेसपास की शिकायत दी थी।
उनका आरोप था कि इन अधिकारियों ने अपने पद का दुरुपयोग किया और इनके घर में जबरन घुसने की कोशिश की थी। शिकायतकर्ता ने इन पर उनकी पत्नी को धमकाने के भी आरोप लगाए थे। पिछले साल निचली अदालत ने दोनों अधिकारियों को इसी केस में छह माह की सजा सुनाई थी। सजा के फैसले को इन्होंने ऊपरी अदालत में चुनौती दी थी।
यह है मामला
शिकायतकर्ता विनोद कुमार बंसल ने आरोप लगाया था कि सीएचबी के तत्कालीन अधिकारी कैलाश गर्ग और किरपाल सिंह बिना किसी पूर्व सूचना के 28 फरवरी 2012 को उनके घर में जबरन घुस आए और उनकी पत्नी को धमकाया। उन्होंने इनके खिलाफ हाउसिंग बोर्ड के सचिव को शिकायत दी।
बोर्ड ने कोई कार्रवाई करने के बजाय उल्टा शिकायतकर्ता को ही अवैध निर्माण का नोटिस भेज दिया। ऐसे में उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया और दोनों अधिकारियों के खिलाफ आइपीसी की धारा 192, 193, 196, 441, 442, 447, 34 और 120बी के तहत केस दायर कर दिया।
लंबे समय से झेल रही मानसिक पीड़ा
अपील सुनवाई के दौरान दोनों अधिकारियों ने दलील दी कि वे अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं और अपने परिवार की जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं। इतने लंबे समय से वह मानसिक व शारीरिक कष्ट झेल रहे हैं। वहीं शिकायतकर्ता बंसल के वकील ने कहा कि आरोपितों को किसी भी तरह की नरमी नहीं मिलनी चाहिए।
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अपराधी को अपनी गलती का एहसास कराया जाना जरूरी है, ताकि वह समाज में एक उपयोगी नागरिक बन सके। लेकिन ऐसे मामलों में कठोर सजा देने के बजाय उन्हें सुधरने का मौका भी देना चाहिए।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।