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    धर्म का मूल आधार विनय गुण है: डा. राजेंद्र मुनि

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 08 Oct 2021 10:11 PM (IST)

    जैन सभा के प्रवचन हाल में राजेंद्र मुनि ने आदिनाथ भगवान के वंदना स्वरूप भक्तामर का विवेचन किया।

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    धर्म का मूल आधार विनय गुण है: डा. राजेंद्र मुनि

    संस, बठिडा: जैन सभा के प्रवचन हाल में राजेंद्र मुनि ने आदिनाथ भगवान के वंदना स्वरूप भक्तामर का विवेचन करते हुए कहा कि जीवन में विनय गुण की महानता है। विनयशील व्यक्ति के जीवन में असंभव कार्य भी संभव होने लगते हैं।

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    उन्होंने बताया कि विनय जीवन का वह सुरक्षा कवच है जो हमें हर क्षेत्र में सुरक्षा प्रदान करता है। विनय में सामने वाला भी झुकने को मानने को तैयार हो जाता है। धर्म का सार ही विनय है। विनय से ही धर्म की शुरुआत होती है। विनय ही सर्वत्र सुख शांति का प्रदाता है। सभा में साहित्यकार सुरेंद्र मुनिद्वारा भक्तामर का स्वरूप वर्णन के साथ साथ साथ धर्म का विविध स्वरूप समझाया गया एवं बालकों को धर्म संस्कार की प्रेरणा प्रदान की गई। महामंत्री उमेश जैन ने स्वागत व सूचना प्रदान की। मोक्ष के द्वार की चाबी है 48 मिनट की सामयिक: साध्वी शुभिता जैन स्थानक में शुक्रवार को प्रवचन करते हुए साध्वी शुभिता महाराज ने कहा कि वैभव हो तो शालीभद्र जैसा, भक्ति हो तो राजा श्रेणिक जैसी, प्रेम हो तो जगड़ू शाह जैसा और पवित्रता हो तो स्थूलिभद्र जैसी और प्रसन्नाता हो तो पुनिया श्रावक जैसी।

    उन्होंने बताया कि पुनिया श्रावक भगवान महावीर का अनुयायी था। पुनिया बस इतना कमा पाता था की पति-पत्नी दोनों भोजन कर सके। पुनिया के मन में विचार आया कि हम साधार्मिक भक्ति नहीं कर पा रहे हैं तो पति-पत्नी ने मिलकर फैसला लिया कि वो वर्षीतप करेंगे। एक दिन पति उपवास रखेगा। एक दिन पत्नी रखेगी और जो भोजन बचेगा उससे प्रतिदिन साधार्मिक भक्ति का लाभ लेंगे। आज हमारे पास धन-वैभव है, लेकिन पुनिया श्रावक जैसी प्रसन्नता नहीं है। भगवान महावीर ने भी पुनिया श्रावक की सामायिक को अनमोल बताया है। थोड़ा-सा सुख आया तो हम फूल जाते हैं और थोड़ी-सी परेशानी-दुख आ जाए तो हम मुरझा जाते हैं। निराश हो जाते हैं। दुख तो सुख का छोटा भाई है। मुसीबत मेरा सबकुछ छीन सकती हैं, लेकिन मेरे चेहरे की प्रसन्नाता नहीं छीन सकती। ये भाव हमारे मन में रहना चाहिए। उन्होंने बताया कि समता की साधना का नाम है सामायिक। जैन धर्म में सामयिक का बहुत महत्व है। सामयिक में श्रावक 48 मिनट के लिए आंशिक रूप से संत बन जाता है। भगवान महावीर ने राजा श्रेणिक को सामयिक का मूल्य बताते हुए कहा कि तुम्हारा समस्त राज्य भी पूनिया श्रावक की एक सामयिक नहीं खरीद सकता क्योंकि समय एक अनमोल है और यह मोक्ष के द्वार की चाबी है।

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