मुआवजा देन दी बजाय, साड्डे घर ही सत्लुज तो दूर बना देओ, भारत-पाक सीमा पर बसे गांव की आवाज
फिरोजपुर के कालूवाला गांव के लोग जो सतलुज नदी की बाढ़ से हर साल परेशान हैं अब पुनर्वास की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार उन्हें सतलुज से दूर एक सुरक्षित जगह पर बसाए ताकि वे डर से मुक्त हो सकें। गांव वाले बताते हैं कि बाढ़ से खेत और घर डूब गए हैं। वे सरकार से स्थायी समाधान की उम्मीद कर रहे हैं।

गुरप्रेम लहरी, कालुवाला (फिरोजपुर)। हर साल मुआवजा देन दी बजाय, साड्डे घर ही सत्लुज तो दूर बना देओ। यह आवाज है भारत-पाक सीमा पर बसे कालूवाला गांव में रहने वाले लोगों की। तीन तरफ से पानी से घिरे इस गांव के लोग राहत सामग्री से ज्यादा पुनर्वास की मांग उठा रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार उन्हें सतलुज से दूर सुरक्षित इलाके में बसाए ताकि वे भय और तबाही से मुक्त होकर जिंदगी गुजार सकें। सवाल यही है कि क्या सरकार इन लोगों की पुकार सुनकर उन्हें सुरक्षित भविष्य देगी या फिर हर साल उन्हें बाढ़ और तबाही की मार झेलने के लिए छोड़ दिया जाएगा?
कालुवाला को भारत की तरफ तीन तरफ सतलुज ने घेरा हुआ है। जबकि एक साइड पाकिस्तान लगता है। गांव से बाहर आने के लिए नाव ही एकमात्र उनका सहारा है। उनकी लाइफलाइन कही जाने वाली लकड़ी की नाव भी अब बाढ़ की भेंट चढ़ गई है। दैनिक जागरण टीम मोटर वाली नाव से गांव में पहुंचती है। गांव का मंजर दिल दहला देने वाला है।
दरिया ने खेतों में चर-चार फीट तक रेत चढ़ा दी है। घरों में कई-कई फीट पानी होने के कारण वे गिरने की कागार पर हैं। लोगों ने अपना जरूरी सामान घरों की छत्तों पर रखा लेकिन वर्षा ने उसे भी नष्ट कर दिया। गांव के एक ऊंचे घर में लोगों ने अपने ट्रेक्टर खड़े कर रखे हैं। सिर्फ यह ही एकमात्र घर है जो पानी में डूबने से बच पाया। पानी से डूबी फसलों के गल जाने के कारण चारों तरफ से बदबू आने लगी है। जिस कारण बीमारियां फैलनी शुरु हो चुकी हैं। गांव वासी मक्खन सिंह सहित अन्य लोग जो बाढ़ में भी इसी गांव में पूरे गांव की रखवाली के लिए रहे,उनको चर्म रोग होने लगे हैं।
पानी से जूझती जिंदगी
गांव तक पहुंचने के लिए नाव और ट्रैक्टर ही सहारा हैं। कई घर आधे तक डूब चुके हैं और खेतों में खड़ी फसलें नष्ट हो चुकी हैं। पशुओं के लिए चारा और लोगों के लिए राशन की भारी कमी है। किसान मक्खन सिंह बताते हैं कि हमने जिंदगी बाढ़ के डर में गुजारी है। सरकार असली समाधान लाए, हमें यहां से कहीं और बसाए।
शिक्षा और स्वास्थ्य पर संकट
गांव में स्कूल महज तीन साल पहले ही बना है। इससे पहले बच्चे चप्पु से खुद किश्ती चला कर सतलुज पार करके स्कूल पढ़ने जाया करते थे। पानी कम होने के चलते एक- एक करके परिवार गांव को लौटने लगे हैं। महिलाएं बताती हैं कि हैंडपंप का पानी दूषित हो चुका है और पीने का पानी बाहर से लाना पड़ रहा है।
राहत कम, गुस्सा ज्यादा
जिला प्रशासन राहत पहुंचा रहा है, लेकिन लोगों के अनुसार यह जरूरत से काफी कम है। उनका कहना है कि जब तक स्थायी समाधान नहीं होगा तब तक हर साल यह संकट दोहराया जाएगा। सीमा क्षेत्र में बसे होने के कारण कालूवाला गांव की मुश्किलें और बढ़ जाती हैं।
पुनर्वास ही स्थायी समाधान
गांव के युवा सतनाम सिंह कहते हैं कि हमारी अगली पीढ़ी को इस हालात में जीने देना गलत होगा। हमें सुरक्षित जगह बसाया जाए। हमने तो जैसे-कैसे अपनी जिंदगी काट ली। बच्चों को जोखिम में नहीं देखना चाहते। मेरे पिता अनपढ़ थे। हम दरिया पार करके स्कूल जाते और पांच-सात कलासें ही पढ़ पाए। अब हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे भी आम नागरिकों की तरह अच्छी शिक्षा गृहण करें और ऊंचे पदों तक पहुंचें। गांव के किसान भी इस मांग का समर्थन कर रहे हैं।
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