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    'MBBS दाखिले की दंडात्मक बॉन्ड नीति तुरंत वापस लें', आईएमए पंजाब की सरकार से अपील

    Updated: Thu, 18 Sep 2025 03:39 PM (IST)

    आईएमए पंजाब ने पंजाब सरकार से एमबीबीएस दाखिले के लिए दंडात्मक बॉन्ड नीति की समीक्षा करने और जमानत की अनिवार्यता को तत्काल वापस लेने की अपील की है। आईएमए का कहना है कि सरकार की यह नीति छात्रों और उनके परिवारों के लिए आर्थिक और मानसिक संकट पैदा कर सकती है। आईएमए ने सरकार से इस नीति पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है।

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    आईएमए पंजाब ने सरकार से एमबीबीएस दाखिले के लिए बॉन्ड नीति की समीक्षा करने का आग्रह किया (प्रतीकात्मक फोटो)

    जागरण संवाददाता, बठिंडा। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) पंजाब ने पंजाब सरकार से एमबीबीएस दाखिले के लिए दंडात्मक बॉन्ड नीति की समीक्षा करने की अपील की। वहीं जमानत की अनिवार्यता को तत्काल वापस लेने की मांग की गई।

    वहीं सरकार की तरफ से नए प्रावधान की कड़ी निंदा की। आईएमए पंजाब के प्रदेश प्रधान डा. विकास छाबड़ा ने कहा कि वह शैक्षणिक सत्र 2025-26 में एमबीबीएस पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने वाले छात्रों के लिए हाल ही में शुरू की गई बॉन्ड और ज़मानत नीति की समीक्षा करे।

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    यह प्रतिगामी और दंडात्मक उपाय, जिसमें दो साल तक की अनिवार्य सेवा बॉन्ड या 20 लाख रुपये का जुर्माना, और संपत्ति-आधारित ज़मानत की शर्ते लगाई गई है, जिसे किसी भी हालत में स्वीकार नहीं किया जा सकता है और इसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।

    उन्होंने कहा कि सरकार की इस नीति ने छात्रों और उनके परिवारों, खासकर आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि के लोगों, के लिए भारी आर्थिक और मानसिक संकट पैदा कर दिया है। यह एक ऐसा कदम है, जोकि उन हजारों डाक्टरों की उम्मीद को चकनाचूर कर सकता है, जिन्होंने सरकारी मेडिकल कालेजों में सीट पाने के लिए अथक परिश्रम किया है।

    डा. विकास छाबड़ा ने कहा कि आईएमए पंजाब को इस पूरे मामले में कई आपत्ति है, जिसमें अत्यधिक 20 लाख रुपये का जुर्माना और हाल ही में हुई वार्षिक फीस वृद्धि छात्रों पर अत्यधिक वित्तीय बोझ डालती है। यह सरकारी मेडिकल कालेजों के मूल उद्देश्य के विपरीत है, जिसका उद्देश्य सस्ती और सुलभ चिकित्सा शिक्षा प्रदान करना है।

    एक मध्यम और निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाला व्यक्ति अपने एक बच्चे के लिए 20-20 लाख रुपये की दो प्रतिभूतियां कैसे दे सकता है और यहां तक कि अधिकांश लोग जिनके दो बच्चे हैं और उन्हें डाक्टर बनाने के इच्छुक हैं, उनके लिए भी दो बच्चों के लिए 4 प्रतिभूतियां जुटाना संभव नहीं होगा।

    वहीं स्नातकों को मामूली वजीफे के लिए अनिवार्य सरकारी सेवा में मजबूर करना, जोकि पड़ोसी राज्यों की तुलना में काफी कम है, बंधुआ मजदूरी के समान है। यह शोषणकारी प्रथा न केवल वर्षों के अनुभव का अवमूल्यन करती है, यह न केवल डाक्टर बनने के लिए आवश्यक कड़ी मेहनत और त्याग की बात करता है, बल्कि सार्वजनिक सेवा का भी मजाक उड़ाता है।

    इसी तरह सरकार ने अनिवार्य संपत्ति ज़मानत सहित कठोर शर्तें, शीर्ष रैंकिंग वाले छात्रों को पंजाब के मेडिकल कालेजों को चुनने से रोक सकती हैं। इससे प्रतिभा पलायन हो सकता है, क्योंकि प्रतिभाशाली छात्र अन्य राज्यों के संस्थानों का रुख करेंगे जहां नीतियां अधिक अनुकूल हैं।हालांकि सरकार इस नीति को ग्रामीण क्षेत्रों में डाक्टरों की कमी को दूर करने के एक उपाय के रूप में उचित ठहराती है, लेकिन यह मूल कारणों का समाधान करने में विफल रहती है। दंडात्मक मुचलका इसका समाधान नहीं है।

    सरकार को कामकाजी परिस्थितियों में सुधार, वेतन वृद्धि और डॉक्टरों को सार्वजनिक सेवा में आकर्षित करने और बनाए रखने के लिए अनुकूल वातावरण बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। छात्र और उनके परिवार सरकार द्वारा विश्वासघात महसूस कर रहे हैं, जिसने वजीफा वृद्धि और अन्य मुद्दों पर चिकित्सा जगत को पूर्व आश्वासन के बावजूद यह नीति लागू की है। यह पारदर्शिता की कमी और भावी स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों की चिंताओं के प्रति उपेक्षा को दर्शाता है।

    आईएमए पंजाब छात्रों और अभिभावकों के साथ एकजुटता से खड़ा है और सरकार से इस गलत नीति पर पुनर्विचार करने का आग्रह करता है। उन्होंने कहा कि आईएमए मुचलके और जमानत की शर्तों को तुरंत और बिना शर्त वापस लेने की मांग करते हैं।

    सरकार को पंजाब की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को मज़बूत करने के लिए एक स्थायी और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान खोजने हेतु चिकित्सा पेशेवरों और छात्रों के साथ रचनात्मक बातचीत करनी चाहिए। पंजाब में चिकित्सा शिक्षा का भविष्य और इसके नागरिकों के लिए स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता, सरकार की न्यायसंगत कार्रवाई करने की इच्छा पर निर्भर करती है।