पंजाब में बाढ़ में डूबे घर, फिर भी मोह नहीं छोड़ रहे लोग, प्रशासन की अपील भी बेअसर
फिरोजपुर में बाढ़ के कारण हालात गंभीर हैं। लोग अपने पुश्तैनी घरों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं भले ही घरों में पानी भर गया हो। वे अपने घरों से भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं और सामान चोरी होने का डर भी है। बाढ़ के खतरे के बीच यह लगाव भारी पड़ सकता है।

गुरप्रेम लहरी, जागरण। प्राकृतिक आपदाओं के समय इंसान की सबसे बड़ी जद्दोजहद होती है-जान बचाए या घर-बार। इस समय फिरोजपुर के कई इलाके बाढ़ की मार झेल रहे हैं। चारों तरफ पानी ही पानी है, सड़कों का नामोनिशान मिट चुका है, खेत डूब चुके हैं और घरों में कई-कई फीट पानी भरा हुआ है। प्रशासन लगातार लोगों से अपील कर रहा है कि वे सुरक्षित स्थानों पर चले जाएं, मगर हालात यह हैं कि लोग अपने पुश्तैनी घरों से हटने को तैयार ही नहीं। घरों का लगाव उनको खतरों के बीच लेकर बैठा हुआ है।
गांव निहाला लवेरा वासी का कहना है कि यह मकान उनकी मेहनत और यादों का नतीजा है। हमने जीवन भर पाई-पाई जोड़कर यह घर बनाया है, इसे छोड़ कैसे जाएं। यह तर्क लगभग हर प्रभावित परिवार का है। पानी भले ही दीवारों तक चढ़ गया हो, मगर परिवारों ने अस्थायी इंतजाम कर घर के भीतर ही डटे रहना चुना है। कई जगह लोग छतों पर शरण लिए हुए हैं और वहीं से प्रशासन की नावों को देखकर मदद मांग रहे हैं।
प्रशासन की चिंता यह है कि अगर पानी और बढ़ा तो हालात बेकाबू हो सकते हैं। स्वास्थ्य विभाग ने चेताया है कि पानी के बीच रहने से संक्रामक बीमारियों का खतरा और बढ़ जाता है। मगर भावनाओं के आगे तर्क बेअसर हो रहे हैं। महिला सुखदीप कौर कहती है कि घर छोड़ने पर सामान की चोरी का डर है।
बाढ़ग्रस्त इलाकों में बच्चों और बुजुर्गों की हालत सबसे नाजुक है। बच्चों के खेलने की जगह अब पानी से घिर चुकी है, वहीं बूढ़े लोग दवाइयों की कमी से परेशान हैं। फिर भी वे घर की चौखट नहीं छोड़ना चाहते। यह लगाव खतरनाक साबित हो रहा है। कई बार किश्ती देर से पहुंचती हैं और मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता। गांव धीरा घारा वासी पाल सिंह का कहना है कि उनका कल बीपी बढ़ गया था। दवा भी नहीं थी, लेकिन किश्ती न होने के चलते दवा नहीं मिल पाई। आज किश्ती आई और वह शहर से दवा लेकर आया है।
एडीसी दमनजीत सिंह मान का कहना है कि कई बार परिवारों को मनाने के लिए घंटों मशक्कत करनी पड़ती है। प्रशासन ने जगह-जगह लाउडस्पीकरों से घोषणा की है कि सभी लोग सुरक्षित स्थानों पर चले जाएं। बावजूद इसके बहुत से लोग टस से मस नहीं हो रहे। उनका कहना है कि चाहे हालात कितने भी खराब हों, घर का छोड़ना मंजूर नहीं।
साईकालोजिस्ट सीमा गुप्ता कहती हैं कि यह स्थिति मनोवैज्ञानिक जुड़ाव की मिसाल है। घर सिर्फ दीवारों और छत का नाम नहीं, बल्कि इसमें इंसान की पीढ़ियों की मेहनत, यादें और अपनापन समाया होता है। इसी कारण बाढ़ जैसी आपदाओं में भी लोग घरों से बंधे रहते हैं। अभी जरूरत इस बात की है कि प्रशासन केवल चेतावनी देने के बजाय लोगों का भरोसा जीतकर उन्हें सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाए। क्योंकि खतरे के बीच यह मोह कहीं जिंदगी पर भारी न पड़ जाए।
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