श्री गुरु तेग बहादुर: कश्मीरी पंडितों की रक्षा के लिए शुरू हुआ मुगलों का विरोध, आस्था और मानव अधिकारों के लिए कभी नहीं झुका सिर
गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया। कश्मीरी पंडितों की रक्षा के लिए उन्होंने औरंगजेब के खिलाफ आवाज उठाई। फतेहगढ़ साहिब, मोरिंडा, राजपुरा, पटियाला में उन्होंने अत्याचार के खिलाफ संदेश दिया। सफाबाद में सेवा भाव का उपदेश दिया। कैथल में धर्म की रक्षा का महत्व बताया। दिल्ली में उन्हें शहीद कर दिया गया, पर उन्होंने धर्म नहीं त्यागा।

श्री गुरु तेग बहादुर जी (जागरण फोटो)
गुप्रेम लहरी, बठिंडा। धर्म की रक्षा के लिए सिर भले कट जाए पर धर्म न कटने पाए। 1675 में गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने केवल यह उपदेश नहीं दिया, बल्कि उसे स्वयं के जीवन पर उतारकर मानव इतिहास की सबसे अनोखी मिसाल स्थापित की।
श्री आनंदपुर साहिब
कश्मीरी पंडितों पर औरंगजेब के शासन में जबरन धर्मांतरण का संकट छाया हुआ था। मई 1675 में पंडित कृपाराम के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल आनंदपुर साहिब पहुंचा और गुरु तेग बहादुर जी से रक्षा की प्रार्थना की। गुरु जी ने विचार किया और बालक गोविंद राय (गुरु गोबिंद सिंह ) के वचन आपसे महान पुरुष और कौन ?' ने इतिहास बदल दिया। गुरु जी ने धर्म और मानवता के हित में बलिदान को स्वीकार किया और यात्रा शुरू की। दमन के विरुद्ध सबसे शांत पर सबसे मजबूत प्रतिरोध की शुरुआत यहीं से हुई।
फतेहगढ़ साहिब, मोरिंडा राजपुरा, पटियाला
जब श्री गुरु तेग बहादुर जी आनंदपुर से आगे बढ़े तो संगत की आखें नम थी। सभी गुरु जी से न जाने की विनती कर रहे थे, पर उनका निर्णय अटल था। इन पड़ावों पर गुरु जी ने संगत को संदेश दिया कि अत्याचार का मुकाबला करने के लिए सत्य और साहस ही सबसे बड़ा हविवार है। उन्होंने लोगों से कहा 'हम जा रहे है, ताकि आने वाली पीढ़ियां स्वतंत्रता के साथ सांस ले सके।'
भवानीगढ़ (सैफाबाद )
सफाबाद में स्थित वर्तमान गुरुद्वारा श्री गुरु तेग बहादुर साहिब उस स्थान की स्मृति सजोए है, जहां गुरु जी ने सेवा भाव और सत्य की रक्षा के महत्व पर उपदेश दिए। यहां दी गई शिक्षाएं बाद मे पत्र और पंजाब की सामाजिक चेतना में स्थायी मूल्य बन गई।
गुहला चीका- पिड़ोवा- कैथल
कैथल में भाई रोडा बादी के आग्रह पर गुरु जी उनके घर ठहरे। यहीं लोगों की बात सुनकर उन्होंने कहा कि धर्म दूसरों की रक्षा के लिए है, केवल स्वयं के लिए नहीं। कैथल और आसपास के क्षेत्रों में गुरु जी के आगमन ने संगठन, सेवा और समानता के विचार को और मजबूत किया। यहां गुरुद्वारा मंजी साहिब उन्हीं दिनों का साक्षी है।
धमतान साहिब
भाई दग्गों की विनती पर गुरु जी धमतान पहुंचे। कुछ इतिहासकार इसे पहली गिरफ्तारी का स्थान मानते हैं, हालांकि सभी सहमत नहीं है। लेकिन क्षमतान साहिब से जुड़ा महत्व यह है कि गुरु जी ने यहां से अत्याचार के खिलाफ अपने समर्थ को स्पष्ट रूप से दिशा दी। आज का विशाल गुरुद्वारा साहिब इस दृढ़ता की याद कायम रखे है।
जींद-खटकड़
जींद जिले के खटकड़ में एक सिख माता ने गुरु जी की सेवा पूरी निष्ठा से की। उनके तीन पुत्रों के नाम पर गांव में तीन मोहल्लों के नाम आज भी हैं। यहां रुककर गुरु जी ने संगत से कहा 'सच्ची श्रद्धा वही है जिसमें सेवा और मानवीय करुणा हो ।' गुरु साहिब की याद में यहां खटकड़ में सुंदर गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है। जींद मे गुरु जी ने युवाओं को अत्याचार के खिलाफ संगठित होने और निडर खड़े होने का संदेश दिया। यही विचार बाद का आधार बना, जिसने आगे चलकर पंथ में न्याय, शौर्य और खालसाई परंपरा का बीज रोपा।
लाखनमाजरा रोहतक
श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी रोहतक शहर भी गए थे। यहां तीन दिन एक तालाब के पास ठहरे थे और संगत को धर्म उपदेश दिया। कलाला मोहल्ले में गुरु साहिब की स्मृति में एक स्थान है, जिसका नाम माई साहिब है। यहां एक माई ने गुरु साहिब को श्रद्धा के साथ भोजन कराया था। गुरु साहिब को स्मृति में गुरुद्वारा बंगला साहिब नौवी पातशाही सुशोभित है।
आगरा में गिरफ्तारी
इतिहासकारों के मुताबिक श्री गुरु तेग बहादुर अपने साथियों भाई मती दास, सती दास, गुरदिता, जैता, दयाला और ऊदो के साथ आगरा पहुंचे और वहां एक तालाब के किनारे रुके। वहां आज गुरद्वारा 'गुरु का ताल सुशोभित है। चरवाहा हसन अली यहां भेड़-बकरियां चराया करता था। उसने दुआ की कि हिंदुओं के पीर को गिरफ्तारी देनी है तो वह मेरे हाथों दे, जिससे उसे इनाम मिल सके। गुरु जी ने उसे अपनी अंगूठी और दोशाला देकर मिठाई लाने को कहा। चरवाहे के पास कीमती वस्तुएं देखकर दुकानदार ने मुगल सैनिको को सूचना दे दी और सैनिको ने चरवाहे को पकड़ लिया। वह उन्हें गुरु तेग बहादुर के पास ले आया। यहां गुरु जी ने गिरफ्तारी दे दी सैनिको ने उन्हें यहां नौ दिन तक नजरबंद रखा।
दिल्ली में शहादत
आगरा से गुरु जी को दिल्ली लाया गया। इस दौरान उन पर लगातार धर्म बदलने का दबाव बनाया जाता रहा। चांदनी चौक में उनके साथियो भाई मतिदास, भाई सती दास और भाई दयाला जी को भयंकर यातनाएं दी गई, ताकि गुरु जी पर और दबाव बनाया जा सके। अंत में तीनों को शहीद कर दिया गया। इस दौरान गुरु जी बिल्कुल शांत रहे। गुरु जी पर दबाव का कोई असर न हुआ।
आस्था और मानव अधिकारों की रक्षा के लिए दी थी शहादत,
अंतत: 24 नवंबर 1675 को उन्होंने धर्म, आस्था और मानव अधिकारों की रक्षा के लिए शहादत दे दी। आज गुरुद्वारा श्री शीशगंज साहिब उस अमर बलिदान का गवाह है जहां सिर कटा, पर धर्म
न झुका

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