पृथ्वी दिवस आज.. जिले में विकास को लगे पंख, पर पृथ्वी की सेहत भी बिगड़ी
बीते 20 साल में बठिंडा जिले की भुगौलिक स्थिति पूरी तरह से बदल गई है। शहर नगर कौंसिल से नगर निगम बना तो विकास के रास्ते खुल गए।

साहिल गर्ग, बठिडा
बीते 20 साल में बठिंडा जिले की भुगौलिक स्थिति पूरी तरह से बदल गई है। शहर नगर कौंसिल से नगर निगम बना तो विकास के रास्ते खुल गए। शहर में सड़कों का जाल बिछा, लेकिन जंगल के लिए पौधे लगाने का एरिया कम हो गया। बड़ी-बड़ी इमारतें बन गई। आबादी बढ़ने के साथ ही लोगों की मूलभूत सुविधाओं में भी बदलाव आ गया। हालांकि कोई विकास के खिलाफ नहीं है, लेकिन पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए जिले में कहीं कोई प्रयास होते दिखाई नहीं दे रहे।
आधुनिक दौर के विकास में देश के अन्य हिस्सों की तरह ही बठिडा जिले में भी भूगौलिक परिस्थितियां तेजी के साथ बदलती जा रही हैं। बढ़ती हुई आबादी के साथ-साथ सड़कों का आकार बढ़ रहा है, वहीं विशाल कालोनियों का निर्माण हो रहा है। इससे जहां खेती योग्य रकबा लगातार घटता जा रहा है। वहीं गांवों व शहरों के छप्पड़ लुप्त होते जा रहे हैं। इस सब का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। सड़कों को चौड़ा करने के लिए हजारों की तादाद में पेड़ काटे जा रहे हैं।
सड़कों के जाल ने घटाया वन का रकबा
वन विभाग के अनुसार जिले में वन का रकबा पहले के मुकाबले थोड़ा कम हुआ है। इस समय जिले में 6,621.42 हेक्टेयर जंगलात का एरिया है, जिसमें से 5,800.86 हेक्टेयर में पौधे लगे हैं। हालांकि 20 साल पहले 5,881 हेक्टेयर में पौधे लगे हुए थे। जिले में सड़कें बनने के साथ पेड़ों की कटाई होने से जंगलात का एरिया भी कम होता गया। बीते 10 साल में ही जिले से 50 हजार के करीब पेड़ों को काटा जा चुका है, जबकि आने वाले समय में तीन ओर से मुख्य सड़कें बनने के कारण 15 हजार के करीब और पेड़ों को काटा जाना है।
जिले में पानी की समस्या भी हुई गंभीर
बठिंडा जिले में बीते 10 साल के मुकाबले भूजल 11.25 मीटर नीचे चला गया है। यह अलग-अलग ब्लाकों के हिसाब से है। भूजल का सबसे ज्यादा इस्तेमाल रामपुरा व भगता ब्लाक में हो रहा है। यहां पर पानी काफी नीचे चला गया है। विभाग की रिपोर्ट के अनुसार साल 2011 में भूजल 3.30 मीटर से 20.20 मीटर नीचे थे, जो अब 4.60 से 31.55 मीटर नीचे चला गया है। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि वह किसानों को लगातार पानी बचाने के लिए धान की सीधी बिजाई के लिए जागरूक कर रहे हैं। चार हजार हेक्टेयर कम हुआ खेती का रकबा
जिले में कुल रकबा 3.36 लाख हेक्टेयर है, जिसमें 2.79 लाख हेक्टेयर में खेती होती है। साल 2005 में जिले में खेती का कुल रकबा 2.83 लाख हेक्टेयर था। इस हिसाब से 17 साल में जिले में चार हजार हेक्टेयर रकबा खेती का कम हो गया। इस बार जिले में 2.55 लाख हेक्टेयर में गेहूं की बिजाई की गई है। इसके बाद अब 80 हजार हेक्टेयर रकबे में नरमा की बिजाई का टारगेट लिया गया है तो 1.80 लाख हेक्टेयर में धान की बिजाई होगी। इसके अलावा बाकी जगह पर अन्य खेती होगी।
बीस साल में 358 छप्पड़ों का वजूद खत्म
जिले में बीते 20 साल में 358 छप्पड़ कम हो गए। अगर साल 2002 की बात की जाए तो उस समय जिले में 905 छप्पड़ थे, जिनकी गिनती अब महज 547 रह गई है। हालांकि कई जगहों पर छप्पड़ों पर कब्जा कर लिया गया तो कई जगहों पर छप्पड़ों में गंदा पानी मिक्स होने के बाद इनको बंद कर दिया गया। हालांकि पंचायती विभाग की ओर से छप्पड़ों की सफाई का काम भी करवाया जाता है। वहीं शहर में भी तीन छप्पड़ हैं, जिन पर कब्जा होने के बाद अब इनका आकार छोटा हो गया है।
विकास की राह पर चल रहा जिला
जिले में सड़कों व कालोनियों का बहुत ज्यादा विकास हुआ है। बठिडा से चंडीगढ़ व श्री अमृतसर साहिब के लिए फोरलेन सड़क बनी तो अब लुधियाना व डबवाली रोड को भी चौड़ा किया जा रहा है। इसके अलावा बीते 20 साल में जिले में 38 नई कालोनियों का भी निर्माण हुआ है। वहीं जिले में रिफाइनरी जैसी बड़ी इंडस्ट्री भी लगी है। मगर थर्मल प्लांट जैसी बड़ी इंडस्ट्री बंद भी हो गई। इसके अलावा बठिडा में ट्रांसफार्मर बनाने की सबसे ज्यादा फैक्ट्रियां हैं, जहां पर पूरे पंजाब के लिए ट्रांसफार्मरों का निर्माण किया जाता है।
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