तपस्या और साधना के प्रतीक थे बाबा किशोर दास
निकटवर्ती गांव अहमदपुर में महान संत बाबा किशोर दास की समाधि है।

संवाद सूत्र, बुढलाडा: निकटवर्ती गांव अहमदपुर में महान संत बाबा किशोर दास की समाधि है। उन्होंने कम उम्र में ही सभी मानव जाति के कल्याण के लिए तपस्या और साधना करते हुए एक दिन अपने वस्त्र त्याग दिए थे। शहर के सभी निवासियों और आसपास की संगत द्वारा हर साल बसंत पंचमी के दिन एक विशाल भंडारा लगाया जाता है। इस भंडारे में तीन दिन तक न केवल बाजारों को सजाया जाता है, बल्कि बच्चे चंडोल आदि से अपना मनोरंजन करते हैं। दूर-दूर से पहुंचे नौजवान कबड्डी मेले का आनंद लेते हैं।
बाबा किशोर दास जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए यहां के निवासी कहते हैं कि बाबा जी भगवान के विनम्र भक्त थे। वह छोटी उम्र से ही भक्ति में लीन रहते थे। एक दिन घूमता हुआ इलाके के बाहरी क्षेत्र का शिकार उनके पास आ पहुंचा। बाबा जी की कठोर तपस्या से प्रभावित होते हुए उन्होंने अपनी दुखभरी जीवन कहानी उन्हें सुनाई तो बाबा जी ने उनसे कहा कि यदि वह शिकार करना बंद कर दे तो उनकी बच्चे की मुराद पूरी हो सकती है। बाबा जी के वचन को स्वीकार करते हुए उन्होंने शिकार करना छोड़ दिया और उनका एक सुंदर और सुडौल बच्चा घर पर पैदा हुआ। वह बाबा जी का अनुयायी बन गया। उन्होंने बाबा जी को उपहार के रूप में पांच बीघा जमीन दान में दी। यह भी माना जाता है कि जब दिल्ली-फिरोजपुर रेलवे लाइन बिछाने के लिए सर्वेक्षण शुरू हुआ तो जब रेलवे ओवरसियर सर्वेक्षण के लिए आया तो रेलवे लाइन की दिशा रेखा बाबा जी के घर की ओर जा रही थी। जब वह वहां पहुंचा, तो उसकी नजर धुंधली हो गई और उसे जल्द ही पता चला कि यह वास्तव में एक महान संत और महापुरुष की तपस्या का स्थान है। उसे लाइन को मोड़ना पड़ा।
ऐसा कहा जाता है कि एक बार गांव में चेचक फैल गया था। बाबा किशोर दास ने लोगों का दुख न झेलते हुए खुद को इस बीमारी से उकसाया और एक दिन उन्होंने बच्चों को बताया के उन्हें पत्थरों से ढंकना। बाबा जी की बातों पर चलकर बच्चों ने अपनी जिम्मेदारी पूरी की। जैसे ही ग्रामीणों को पता चला तो उन्होंने तुरंत वहां पहुंचकर देखा के बाबा जी गायब थे। ग्रामीणों ने अपने महान संत बाबा किशोर दास की एक कच्ची समाधि बना दी थी। मानवता की भलाई के लिए उनकी तपस्या को देखकर दूर-दूर से लाखों भक्त अब भी उनकी समाधि पर वंदना करके अपनी मुरादों को पूरा करते हैं।
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